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चीन दुनिया की दूसरी बड़ी इकॉनमी जबकि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही बड़ी इकॉनमी, इस सेक्टर में चुपचाप हो रहा 'हिंदी-चीनी भाई-भाई

  नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन और भारत के पीछे पड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी कंपनियों के चीन में सामान बनाने और...

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 नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन और भारत के पीछे पड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी कंपनियों के चीन में सामान बनाने और भारत में हायरिंग करने के दिन अब लद गए हैं। ट्रंप की खीझ समझ में आती है। चीन दुनिया की दूसरी बड़ी इकॉनमी है जबकि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही बड़ी इकॉनमी है। चीन भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। हालांकि भारत और चीन के बीच भी रिश्ते अच्छे नहीं हैं। चीन ने हाल में भारत को रेयर अर्थ मैग्नेट्स और स्पेशिएलिटी फर्टिलाइजर की खेप रोक दी है। लेकिन एक सेक्टर ऐसा है जिसमें दोनों देशों की कंपनियां चुपचाप हाथ मिला रही हैं।


ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली कई कंपनियां अब चीन की कंपनियों के साथ मिलकर काम करने की सोच रही हैं। इसकी वजह यह है कि सरकार ने ठेके पर इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली कंपनी डिक्सन टेक्नोलॉजीज और चीन की लॉन्गचीयर इंटेलीजेंस के बीच हुए समझौते को मंजूरी दे दी है। डिक्सन भारत की सबसे बड़ी इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली कंपनी है। कंपनी ने गुरुवार को बताया कि चीनी कंपनी के साथ उसके जेवी को सरकार की मंजूरी मिल गई है। इस वेंचर में डिक्सन की हिस्सेदारी 74% और लॉन्गचीयर की 26% होगी।



इंडस्ट्री में उत्साह


इससे देश की दूसरी कंपनियां भी उत्साहित हैं। इनमें Epack Durable, PG Electroplast, Amber Enterprises और Karbonn Mobile शामिल हैं। ये कंपनियां भी चीन की कंपनियों के साथ इसी तरह के समझौते करने की योजना बना रही हैं। दरअसल डिक्सन को मिली मंजूरी से घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उद्योग को लग रहा है कि चीन को लेकर मोदी सरकार का रुख अब थोड़ा नरम पड़ गया है। अब चीनी कंपनियां भी भारत में आसानी से सामान बना सकेंगी। डिक्सन के समझौते पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं।


चीन की किसी भी कंपनी को भारत में काम करने के लिए सरकार से मंजूरी लेनी होती है। एक बड़ी इलेक्ट्रॉनिक कंपनी के सीईओ ने कहा कि चीनी कंपनियां सिर्फ टेक्नोलॉजी देने के बजाय संयुक्त उद्यम में ज्यादा सहज महसूस करती हैं। मोबाइल फोन बनाने वाली देसी कंपनी कार्बन भी एक चीनी कंपनी के साथ मिलकर काम करने की योजना बना रही है। एसी और टीवी बनाने वाली कंपनी PG Electroplast के एमडी (ऑपरेशंस) विकास गुप्ता ने कहा कि डिक्सन को मिली मंजूरी उद्योग के लिए अच्छी खबर है। भारतीय इलेक्ट्रॉनिक उद्योग को चीनी कंपनियों से टेक्नोलॉजी और मदद की जरूरत है।



चीन की अहमियत


ईटी ने 21 जुलाई को बताया था कि सरकार इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर में चीनी निवेश को सपोर्ट कर सकती है। सरकार केवल असेंबली यूनिट ब बनाने के बजाय टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर जोर दे रही है। सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने भी हाल ही में भारत में चीनी निवेश पर प्रतिबंधों को कम करने का प्रस्ताव दिया है। सरकार का यह कदम विदेश मंत्री एस जयशंकर की चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ बीजिंग में हुई मुलाकात के बाद आया है। इस मुलाकात के बाद भारत ने पांच साल में पहली बार चीनी नागरिकों को पर्यटक वीजा जारी करना फिर से शुरू कर दिया है।


भारत ने जून 2020 गलवान घाटी में चीन की सेना के साथ हुई झड़पों के बाद प्रतिबंध लगाए थे। PN3 नियमों के तहत, चीन जैसे पड़ोसी देशों के व्यवसायों और उद्यमियों को निवेश करने के लिए कई विभागों से मंजूरी लेनी होती है। भारतीय कंपनियां चीन के साथ व्यापार संबंधों की समीक्षा करने के लिए दबाव डाल रही हैं। भारत में आयात होने वाले सभी इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स में से 70-75% चीन से आते हैं। बाकी कंपोनेंट मुख्य रूप से ताइवान, थाईलैंड, वियतनाम, दक्षिण कोरिया और जापान से आते हैं। ताइवान, थाईलैंड और वियतनाम से आने वाले कंपोनेंट भी ज्यादातर चीनी कंपनियों द्वारा बनाए जाते हैं।