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एक ही नदी 16 बार पार करके और दुर्गम रास्तों से होते हुए पहुंचते यहां… अंदर है महादेव का मंदिर, जहां रहते है ‘पूंछ वाले चमगादड़’

  छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी धार्मिक गुफा है. इस गुफा का नाम मंडीप खोल गुफा है. अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले अगले सोम...

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 छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी धार्मिक गुफा है. इस गुफा का नाम मंडीप खोल गुफा है. अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले अगले सोमवार को मंडीप खोल गुफा को खोला जाता है. इस गुफा में महादेव का मंदिर है. मंदिर साल में एक बार खुलता है तो महादेव के दर्शन के लिए लोग 1 नदी को 16 बार पार कर यहां तक पहुंचते हैं. सोमवार को जब मंदिर का पट खुला तो हजारों की संख्या में कठिन डगर पर चलते हुए लोग यहां तक पहुंचे हैं. ये गुफा इस बार 5 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोली जा रही है. खैरागढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर मैकल पर्वतमाला और सघन जंगलों के बीच स्थित यह गुफा हर वर्ष अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार को खुलती है. इस अवसर पर एक दिवसीय मेले का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दुर्लभ और प्राकृतिक स्वरूप के दर्शन के लिए यहाँ पहुँचते हैं. इसी मेले की परंपरा के चलते इस स्थान को ‘मंडीपखोल’ कहा जाने लगा ‘मंडी’ अर्थात मेला और ‘खोल’ यानी गुफा. यह वास्तव में एक दो-स्तरीय गुफा प्रणाली है, जो भूगर्भीय रूप से पृथ्वी के प्रारंभिक युग प्री-कैम्ब्रियन युग से अस्तित्व में है.



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गौरतलब है कि कई दशकों से यह गुफा वर्ष में केवल एक बार ही श्रद्धालुओं के लिए खोली जाती है. इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएँ और किवदंतियाँ हैं, लेकिन जब इसके वैज्ञानिक कारणों की पड़ताल की जाती है, तो सनातन परंपरा की वैज्ञानिक दृष्टि और प्रकृति के साथ संतुलन का गहरा संदेश सामने आता है. मंडीपखोल की अनूठी जैव विविधता को शायद प्राचीन लोग भी भलीभांति समझते थे, इसलिए उन्होंने इसे वर्ष में केवल एक बार खोलने की परंपरा बनाई, ताकि इसका प्राकृतिक इकोसिस्टम संरक्षित रह सके.

वैज्ञानिक अध्ययन क्या कहते हैं मंडीपखोल को लेकर

मंडीपखोल गुफा में नेशनल केव रिसर्च एंड प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन और इटालियन केव रिसर्च ग्रुप द्वारा विस्तृत अध्ययन किया गया है. रिसर्च टीम के सदस्य डॉ. जयंत विश्वास के अनुसार, इस गुफा में दुर्लभ जैव विविधता पाई जाती है जैसे पूंछ वाले चमगादड़, ब्लैंडफोर्ड रॉक अगामा (छिपकली), विभिन्न प्रजातियों की मकड़ियाँ, पिल बग और अनेक प्रकार के मेंढक. ये सभी जीव सूरज की रोशनी के बिना एक विशिष्ट खाद्य श्रृंखला का हिस्सा हैं, जो गुफा के भीतर कीड़ों और अपघटकों पर निर्भर करती है. शोध में यह भी सामने आया कि जब बड़ी संख्या में श्रद्धालु गुफा में प्रवेश करते हैं, तो वहां का तापमान बढ़ जाता है, जिससे कई जीव अस्थायी रूप से गुफा के भीतरी हिस्सों या किसी अन्य स्थान पर चले जाते हैं. हालांकि ये जीव बाद में लौट आते हैं, लेकिन गुफा के इकोसिस्टम पर इसका असर ज़रूर पड़ता है. साथ ही गुफा की प्राकृतिक जलधारा और पारंपरिक गतिविधियों के बीच संतुलन बनाए रखने की भी ज़रूरत है. गर्मियों में आसपास के ग्रामीण केसरिया टोमेंटोसा के फल का उपयोग पारंपरिक मछली पकड़ने में करते हैं, जो पानी में मिलाने पर मछलियों को बेहोश कर देता है. यह गुफा के जलीय इकोसिस्टम के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है, जिस पर पर्यावरणविद भी चिंता जाहिर कर चुके हैं.संभवतः इसी जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के उद्देश्य से ही पूर्वजों ने वर्ष में एक दिन ही यहाँ आने की परंपरा स्थापित की, ताकि न केवल मानव जाति, बल्कि गुफा में निवास करने वाले असंख्य जीव-जंतुओं की रक्षा भी की जा सके.

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5 मई को खुलेगी गुफा, होगा वार्षिक मेला

इस वर्ष मंडीपखोल गुफा 5 मई को खुलेगी. श्वेतगंगा, जिसे पायथन गुफा भी कहा जाता है, से निकलने वाली जलधारा को सत्रह बार पार करके हजारों श्रद्धालु मंडीपखोल तक पहुंचेंगे और प्रकृति के बीच बाबा भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करेंगे. परंपरा के अनुसार सुबह सबसे पहले ठाकुरटोला के जमींदार परिवार द्वारा पूजा की जाएगी, इसके बाद दिनभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहेगा. खैरागढ़ कलेक्टर इंद्रजीत चंद्रवाल ने बताया कि हर वर्ष की तरह इस बार भी हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के आने की संभावना है. इसे ध्यान में रखते हुए प्रशासन द्वारा सभी तैयारियाँ पूरी कर ली गई हैं और पुलिस प्रशासन को भी सुरक्षा के निर्देश जारी किए गए हैं, ताकि यह आयोजन शांति और सुव्यवस्था के साथ संपन्न हो सके.