तिरंगा ऊंचा रहे सदा, यही हमारा संकल्प महान है. जब तक सांसों में प्राण रहे, मां की रक्षा धर्म है. वंदे मातरम का उदघोष जीवन का अभिमान है. ...
तिरंगा ऊंचा रहे सदा, यही हमारा संकल्प महान है.
जब तक सांसों में प्राण रहे, मां की रक्षा धर्म है.
वंदे मातरम का उदघोष जीवन का अभिमान है.
यही हमारा कर्तव्य बने, यही हमारा अभियान है.
राष्ट्रगीत "वंदे मातरम "के 150 वर्ष पूरे होने पर विधानसभा में विशेष चर्चा
छत्तीसगढ़ .
असल बात news.
छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए यह ऐतिहासिक दिन था.1870 के दशक में महान साहित्यकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित गीत राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम स्वतंत्रता आंदोलन मैं राज प्रेम की भावना के संचार का सशक्त माध्यम बन गया था. यह चर्चा इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गई लगती है क्योंकि इसे अपने इतिहास पर गौरव करने के साथ-साथ यह चर्चा इसलिए भी जरूरी के आज हम नए युग नए भारत के ओर बढ़ रहे हैं जिस तरह वंदे मातरम ने 1870 के दशक में नव चेतना स्वतंत्रता, स्वाधीनता की भावना को भारत भूमि में प्रसारित किया आज पुनः एक नव भारत के निर्माण में एक राष्ट्र प्रेम राष्ट्रगीत के लिए स्वजागरण की आवश्यकता है. कहा जा सकता है कि ऐसी चर्चाओं से राजनीतिक विशेषता के अनुरूप छत्तीसगढ़ के विधानसभा में एक सकारात्मक संवाद स्थापित हुआ और अच्छी बात रहेगी इसमें पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी भावनाओ को व्यक्त किया.
आसंदी से स्पीकर डॉ रमन सिंह ने इस पर बोलते हुए कहा कि ब्रिटिश शासन काल में जब भारत में घर-घर अंग्रेजी राष्ट्रगान 'गॉड द सेव' को थोपने का प्रयास किया गया, तब बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी ने उनके समक्ष वंदे मातरम के माध्यम से भारत की अस्मिता,भारत के गौरव को संरक्षित करने का काम किया. वर्ष 1896 में गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने कोलकाता के कांग्रेस के अधिवेशन में वंदे मातरम गाया. यह वंदे मातरम के प्रति गुरुदेव का प्रेम था. लेकिन इसके बाद 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया गया. बंग भंग की विभीषिका की पीछे की साजिश सब जानते हैं. उसके पीछे की अंग्रेजों की कूटनीतिक चाल को सब समझते हैं. इस देश को विभाजित करने के लिए आजादी के पहले ही विखंडित कर दिया गया. जब बंगाल का विभाजन हुआ तो उस समय वंदे मातरम इस विभाजनकारी योजनाओं के बीच चट्टान की तरह खड़ा रहा. जब वंदे मातरम हर भारतीय की जुबान बनने लगा तब ब्रिटिश हुकूमत ने इस गीत से जागृत होती राष्ट्र प्रेम की भावना को समझ कर 1905 से 1908 के बीच इसे प्रतिबंधित करने का प्रयास किया. लेकिन हमारे अमर वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने ऐसे गीत से प्रेरित होकर आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और अपने प्राणों को मातृभूमि के लिए न्योछावर कर दिया. आज यह वीर अमर शहीदों को याद करने का अवसर है शाहिद खुदीराम बोस शाहिद मदनलाल थीघ्र शहीद राम प्रसाद बिस्मिल जैसे साईं करो अमर शहीदों ने और अंतिम चरणों में वंदे मातरम का उद्धघोष करते हुए हंसते-हंसते हुए देश के लिए अपना बलिदान दिया. स्पीकर डॉक्टर रमन सिंह ने कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि राष्ट्र की चेतना और आत्मा के इस गीत वंदे मातरम के जब 50 वर्ष पूर्ण हुए थे भारत देश अंग्रेजों की गुलामी में था. जब वंदे मातरम के 100 साल पूरे हुए उस समय देश में आपातकाल थोपा गया था.लेकिन इसके आज 150 वर्ष पूरे होने पर देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार है.यह देश का सौभाग्य है कि हम यहां पर राष्ट्रगीत को गौरव के साथ चिंतन कर रहे हैं, मंथन कर रहे हैं, गांव-गांव तक गली-गली तक जोश के साथ उत्साह के साथ पूरी चेतना के साथ इस वंदे मातरम गीत को दोहराने का काम हो रहा है. भारत देश में आज कोई बाहरी ताकत नहीं है लेकिन इस नवभारत को स्वदेशी और आत्मनिर्भर की ओर आगे बढ़ते हुए वैश्विक पटेल पर एक नए आयाम स्थापित करना है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता की ओर हम आगे बढ़ रहे हैं बल्कि अपने विस्तृत संस्कृति अपने गौरव को पूरा स्थापित करने में लगे हुए हैं. यह अवसर है जब हम अपनी संस्कृति गौरव को अपना स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने आह्वान किया कि वंदे मातरम को जिस भावना के साथ हमारे पूर्वजों में प्रयुक्त किया उसी को हम आत्मसात करें.
वंदे मातरम् की गौरव गाथा का स्मरण हर भारतीय के लिए गर्व का विषय – मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय
राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में आयोजित विशेष चर्चा में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने वंदेमातरम के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि वंदे मातरम् देशप्रेम का वह जज्बा था जिसकी गूंज से ब्रिटिश हुकूमत तक कांप उठती थी। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह उद्घोष करोड़ों भारतीयों के हृदय में साहस, त्याग और बलिदान की अग्नि प्रज्वलित करता रहा। उन्होंने कहा कि यह वही स्वर था जिसने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की शक्ति प्रदान की।
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के अमर बलिदानियों को स्मरण करते हुए कहा कि भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस सहित असंख्य क्रांतिकारी वंदे मातरम् का जयघोष करते हुए मां भारती के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए। उनका बलिदान आज भी हर भारतीय को राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का स्मरण कराता है।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि वंदे मातरम् की गौरव गाथा का स्मरण करना हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है। यह गीत हमें उस संघर्ष, उस पीड़ा और उस अदम्य साहस की याद दिलाता है, जिसने भारत को स्वतंत्रता दिलाई। यह हमारी राष्ट्रीय चेतना का आधार स्तंभ है।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की पहचान केवल उसकी भौगोलिक सीमाओं से नहीं होती, जो मानचित्र पर अंकित होती हैं। किसी राष्ट्र की वास्तविक पहचान उसकी सभ्यता, संस्कृति, परंपराओं और उन मूल्यों से होती है, जो सदियों से उसके आचार-विचार और जीवन पद्धति का हिस्सा रहे हैं। भारत की यह सांस्कृतिक निरंतरता विश्व में अद्वितीय है।
उन्होंने कहा कि विधानसभा में वंदे मातरम् पर विशेष चर्चा आयोजित करने का उद्देश्य यह भी है कि हम इतिहास की उन गलतियों को कभी न भूलें, जिन्होंने देश को गहरे घाव दिए, जिनकी पीड़ा आज भी हमारे समाज में कहीं-न-कहीं महसूस की जाती है। इतिहास से सीख लेकर ही हम एक सशक्त और समरस भारत का निर्माण कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री श्री साय ने इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के उन सभी वीर सपूतों को नमन किया, जिन्होंने वंदे मातरम् के भाव को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर भारत माता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् हमें हमारी विरासत, हमारी सांस्कृतिक चेतना और हजारों वर्षों की सभ्यता से जोड़ता है। यह उन आदर्शों की सामूहिक अभिव्यक्ति है, जिन्हें हमने युगों-युगों में आत्मसात किया है।
उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में धरती को माता के रूप में पूजने की भावना रही है, जिसे हम मातृभूमि कहते हैं। वंदे मातरम् इसी भाव का सशक्त और पवित्र स्वरूप है, जो हमें प्रकृति, भूमि और राष्ट्र के प्रति सम्मान और कर्तव्यबोध सिखाता है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने राष्ट्रगीत वंदे मातरम् की 150वीं जयंती के अवसर पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस विशेष चर्चा के आयोजन के लिए विधानसभा अध्यक्ष तथा सभी सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे विमर्श नई पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम, सांस्कृतिक गौरव और ऐतिहासिक चेतना से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सदन में नेता प्रतिपक्ष डॉ चरण दास महंत ने इस विषय पर बोलते हुए सर्वप्रथम वंदे मातरम के 150 वर्ष पूर्ण होने पर सदन में इस पर चर्चा स्वीकृत करने के लिए बधाइयां दी और इसके इतिहास के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने कहा कि हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने, महापुरुषों ने जिन्होंने फांसी के फंदे को चुमा,उन सब ने इस नारे के साथ ही हंसते-हंसते अपने जीवन को बलिदान दे दिया. उन्होंने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी को प्रणाम करते हुए कहा कि आज पीड़ा होती है क्योंकि वंदे मातरम को आज भारत को बांटने में और इतिहास को दूषित करने में कुछ लोग लगे हैं. उन्होंने वंदे मातरम के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्ष 1875 में इस गीत की रचना के बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी ने की जो की मातृभूमि की पूजा है. हम भारत को माता मानते हैं तो मातृशक्ति की पूजा और माता के लिए तो सभी बराबर होते हैं. 1882 में जब आनंदमठ लिखा गया तब इसमें चार अंतरे और जोड़ दिए गए. जब संन्यासियों का विद्रोह शुरू हुआ और संन्यासियों को जिस कारण से ज्यादा प्रेरणा मिल सकती थी उन शक्तियों के नाम, माता के नाम, देवी देवताओं के नाम उसमें और जोड़े गए. वंदे मातरम हमारा बल बना, हमारी चेतना बनी और सब की बुद्धि को प्रभावित किया. कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस की समिति जिसमें नेहरू जी शामिल थे, सुभाष चंद्र बोस जी शामिल थे, मौलाना आजाद शामिल थे, इन सब लोगों ने सुझाव लिया कि अब राष्ट्रीय गीत कैसे बनना चाहिए और इसके लिए क्या किया जाए. तब यह बात चलती रही और संविधान सभा में एक नेशनल एंथम कमेटी बनाई गई जिसमें तीन गानों को राष्ट्र में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत बनाने के लिए चयन के लिए उसमें पहला गाना..सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा था, दूसरा गाना..जन- गण- मन,अधिनायक जय हे था, तीसरा गाना वंदे मातरम था. सारे जहां से अच्छा,.. गाना की रचना मोहम्मद इकबाल ने की थी मगर उनका झुकाव पाकिस्तान की ओर चला गया इसलिए उसे गीत पर पूरा विचार नहीं हुआ. और जन- गण- मन,अधिनायक,जय हे और वंदे मातरम का चुनाव किया गया. वर्ष 1940 का मुस्लिम लीग जिसमें मोहम्मद अली जिन्ना भी नेता थे उन्होंने आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान विभाजन की मांग रखी. विषय पर बोलते हुए डॉक्टर महंत ने आगे कहा कहा कि आज 150 वर्ष पर चर्चा हो रही है वह निवेदन करते हैं कि इस तरह से हम इतिहास को न बिगाड़े,इतिहास को जो की जो मूल भावना है उसको पढ़ें, लिखे, और समझे. हम लोग तो चले आएंगे 150 साल हो रहे हैं जब इसे हमारे बच्चे,बच्चियां नौजवान पीढ़ी इसे मनाने आएंगे हम उन को एक गलत इतिहास देंगे यह मेरे ख्याल से उचित नहीं होगा.आज भी संविधान सभा का जिक्र आता है सरकार पटेल जी,बाबा साहब अंबेडकर, कन्हैयालाल जी, मुंशी जी जैसे लोगों की हम चर्चा करते हैं और उनसे पाते हैं कि राष्ट्रगीत वंदे मातरम में दो अंतरे को शामिल किया गया और बाकी के चार अंतरे को शामिल इसलिए किया गया कि देश में जो मुस्लिम की आबादी थी उस समय काफी झगड़ा शुरू हो गए थे लड़ाइयां शुरू हो गई थी इस तरह से उस वातावरण को शुद्ध और शांत करने के लिए माननीय बंकिम चंद्र जी ने 6 लाइन आनंद मठ में जोड़े थे,वह सिर्फ उस दिन की आवश्यकता थी. डॉ महंत ने राष्ट्रगीत वंदे मातरम के पहले के चार अंतरे एवं बाद के छह अंतरे, दोनों को सदन में प्रस्तुत किया. और कहा कि इस हमारे पुरखों ने बड़ा सोच- समझकर इस देश को सौंपा है.यह हमारी संपत्ति है. हमारा धन है. यह बना रहे.आने वाले दिनों में हम इसे और बेहतर ढंग से,इनके गीतों को, इनके शब्दों को, उनके भावनाओ को समझें और आने वाले वर्षों में 200 वर्ष पुराने, ढाई सौ वर्ष पुराने एक इतिहास का गठन करें. वंदे मातरम का राजनीति करके दुरुपयोग ना करें.
उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए यह ऐतिहासिक दिन है. गौरव शाली दिन है जब हम वंदे मातरम की 150वीं जयंती पर चर्चा कर रहे हैं. वंदे मातरम की महिमा को जन-जन पहुंचाने के लिए यह चर्चा है. हम सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती मना रहे हैं. हम भगवान बिरसा मुंडा जी की 150 वीं जयंती का उत्सव मना रहे हैं. गुरु तेग बहादुर सिंह जी के 350वां शहीदी दिवस को जन्म जन्म तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माता भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी का जन्म शताब्दी वर्ष में मना रहे हैं. ऐसे में वंदे मातरम के 150 सी जयंती का उद्घोष निश्चित रूप से हम सबके लिए प्रेरणा दाई है. वंदे मातरम केवल शब्द नहीं है यह महामंत्र है यह वह मंत्र है जिसे बोलकर देश की आजादी में नौजवान हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए. यह वह महामंत्र है जो एक-एक युवा के रग-रग में देशभक्ति का जुनून, देशभक्ति का जज्बा पैदा करता है. यह वह शब्द है जिसने देश की आजादी में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. आज भी हमारे देश के सैनिक देशभक्ति का जज्बा लेकर युद्ध के मैदान में जाते हैं वंदे मातरम का जयघोष करते जाते हैं. हमारे लिए स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की तरह वंदे मातरम के 150 सी जयंती भी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि वंदे मातरम के सौ वर्ष पूरे होने के समय देश में आपातकाल इमरजेंसी लगी थी. उसे समय भी वंदे मातरम करने वालों को ऐसी यात्रा दी गई जैसे अंग्रेजो के जमाने में भारतीयों ने इस तरह से प्रताड़ना झेली थी. केवल और केवल अपनी सत्ता बचाने के लिए देश में आपातकाल लगा दिया गया. देश के संविधान की हत्या हुई. लोकतंत्र की हत्या हुई. हजारों, लाखों लोगों को जेल के पीछे धकेला गया. मीडिया तक की स्वतंत्रता छीन ली गई. यह वंदे मातरम की रचना की जयंती हमेशा 7 नवंबर 1875 को मानते हैं. वह कितना पवित्र दिन था. उसे दिन अक्षय नवमी थी भारतीय संस्कृति में यह अक्षय नवमी का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण और पावन दिन माना जाता है. उप मुख्यमंत्री श्री साव ने कहा कि हमें उन परिस्थितियों, किन कठिन समय में बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम गीत की रचना की उसको भी ध्यान में रखना चाहिए. उसे समय अंग्रेजों का अत्याचार चरण पर था. अंग्रेज घर-घर तक अपना राष्ट्रीय गीत पहुंचने तक लगे थे. वंदे मातरम गीत का महत्व केवल देश की आजादी तक ही सीमित नहीं है वर्णन हमारी भारत माता हैं, तब तक वंदे मातरम का महत्व रहेगा. वंदे मातरम क्या है,.. माता की आराधना.. माता की पूजा.. माता को नमस्कार करना माता को सम्मान देने का.. यह शब्द है. इस पर भी लोगों ने राजनीति की. इस पर भी अपनी कुत्सित मानसिकता दिखाई. आज देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने वंदे मातरम के माध्यम से देश को एकजुट करने, देश को आगे बढ़ाने, देश को जोड़ने का एक बड़ा उपक्रम शुरू किया है.उनके इस अभियान में पूरा देश उनके साथ खड़ा है. उन्होंने कहा हम छत्तीसगढ़ में अपने राज्य गीत में भी माता की पूजा करते हैं. महू पांव परव तोर भुईया.. जय हो.. जय हो छत्तीसगढ़ी मैया. यह हमारी संस्कृति का परिचायक है.यह हमारी सभ्यता का परिचायक है. माता की आराधना करना हमारी संस्कृति और हमारी परंपरा का हिस्सा है. रामानंद चट्टोपाध्याय जी एक राष्ट्रवादी चिंतक थे उन्होंने कहा था कि यदि वंदे मातरम गीत को विभाजित किया जाएगा तो यह देश विभाजित हो सकता है. लेकिन ऑन सोते हैं 37 में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक होती है और पंडित नेहरू इसकी अध्यक्षता करते हैं मोहम्मद जिन्ना के दबाव में वंदे मातरम के केवल दो पद स्वीकार किए जाते हैं वह चार पद अलग हटा दिया जाता है.

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