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छत्तीसगढ़ डॉक्टर्स फेडरेशन ने राज्य कोटे के बंटवारे को बॉन्डधारी डॉक्टरों के साथ विश्वासघात बताया है और प्रदेश-व्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है

  रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार की नई गजट अधिसूचना को लेकर छत्तीसगढ़ डॉक्टर्स फेडरेशन (CGDF) ने कड़ी निंदा करते हुए इसे राज्य के चिकित्सा भविष्य क...

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 रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार की नई गजट अधिसूचना को लेकर छत्तीसगढ़ डॉक्टर्स फेडरेशन (CGDF) ने कड़ी निंदा करते हुए इसे राज्य के चिकित्सा भविष्य के लिए “डेथ वारंट” करार दिया है। फेडरेशन का कहना है कि सरकार द्वारा मनमाने ढंग से राज्य कोटे (State Quota) को “ओपन मेरिट” और “संस्थागत प्राथमिकता” में बांटने से “75-25 का ऐसा असंतुलन” पैदा हो गया है, जिससे स्थानीय डॉक्टरों के पास देश में सबसे कम सीटें बची हैं।


अन्याय का गणित


सुप्रीम कोर्ट के सौरभ चौधरी केस के नियम के अनुसार 50% सीटें (AIQ) नेशनल मेरिट के लिए होती हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की नई अधिसूचना में 50% ऑल इंडिया कोटा (बाहरी छात्रों के लिए खुला) है और इसके अतिरिक्त 25% स्टेट ओपन मेरिट को भी अब बाहरी छात्रों के लिए उपलब्ध कर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप कुल 75% सीटें बाहरी छात्रों के कब्जे में चली गई हैं, जबकि स्थानीय छात्रों के लिए केवल 25% सीटें बची हैं।


सीजीडीएफ अध्यक्ष ने कहा कि यह एक गंभीर नीतिगत भूल है। सुप्रीम कोर्ट नेशनल मेरिट और संस्थागत निरंतरता (Institutional Continuity) के बीच 50-50 का संतुलन बनाने का आदेश देता है। राज्य सरकार ने इसे बदलकर 75-25 कर दिया है, जो छत्तीसगढ़ की सेवा करने वाले छात्रों के साथ घोर अन्याय है।

  1. “दोहरी नाकेबंदी” : अपने ही राज्य में शरणार्थी बने छात्र

फेडरेशन का कहना है कि यह नीति छत्तीसगढ़ के स्नातकों को दोहरी मुसीबत में डालती है-

बाहर रास्ता बंद : हम मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा के स्टेट कोटे में आवेदन नहीं कर सकते क्योंकि वहां की सीटें सिर्फ उनके छात्रों के लिए आरक्षित हैं।





अंदर रास्ता बंद : अब, हमारे अपने ‘स्टेट कोटे’ में भी हमें उन राज्यों के छात्रों द्वारा विस्थापित किया जा रहा है जो हमें अपने यहां घुसने नहीं देते। फेडरेशन के प्रवक्ता ने कहा कि जिन मेडिकल कॉलेजों को छत्तीसगढ़ की जनता के टैक्स, शासन के बजट और यहां के निवासी होनहार डॉक्टरों ने अपनी मेहनत से सींचा है, आज उन्हीं संस्थानों में हमें दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है।


  1. बॉन्ड का विरोधाभास : बस्तर में सेवा क्यों दें?

राज्य सरकार एमबीबीएस स्नातकों के लिए 2 साल का अनिवार्य ग्रामीण सेवा बॉन्ड लागू करती है। वर्तमान में सैकड़ों डॉक्टर पीजी सीटों की उम्मीद में नक्सल प्रभावित और दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में सेवा दे रहे हैं।

फेडरेशन ने सवाल उठाया, “सरकार हमसे गांवों में सेवा करने का बॉन्ड भरवाती है, लेकिन हमारे इनाम (पीजी सीटों के लिए बोनस अंक) से मिलने वाली सीटें उन ‘मेडिकल टूरिस्टों’ को सौंप रही है जिन्होंने छत्तीसगढ़ में एक भी मरीज का इलाज नहीं किया है। यह अधिसूचना ग्रामीण सेवा के प्रोत्साहन को खत्म करती है। अब कोई डॉक्टर दूरस्थ पीएचसी (PHC) में सेवा क्यों देगा? वे जुर्माना भरकर राज्य छोड़ना पसंद करेंगे।”


  1. जनस्वास्थ्य संकट : सेवारत विशेषज्ञों (In-Service) का भविष्य खत्म

इसके सबसे बड़े पीड़ित सिर्फ छात्र नहीं, बल्कि मरीज होंगे। नई अधिसूचना ने सेवारत प्रत्याशियों (Medical Officers) के लिए सीटों का दायरा खत्म कर दिया है। फेडरेशन ने चेतावनी दी, “अगर सीटों का पूल ही आधा कर दिया जाएगा, तो बोनस अंकों का कोई मतलब नहीं रह जाता। यदि इन-सर्विस डॉक्टर विशेषज्ञ (Specialist) नहीं बन पाएंगे, तो जिला अस्पतालों और सीएचसी को कौन चलाएगा? यह नीति आदिवासी स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ तोड़ देगी।”


मध्य प्रदेश मॉडल लागू करने की मांग

सीजीडीएफ ने सरकार से तत्काल नीति सुधार की मांग की है। साथ ही मांग है कि 1 दिसंबर 2025 की अधिसूचना को तत्काल वापस लिया जाए।फेडरेशन ने कहा ​”मध्य प्रदेश मॉडल” (Exhaustion Clause) लागू करें: राज्य कोटे (जो कि कुल सीटों का शेष 50% है) को विशेष रूप से संस्थागत/इन-सर्विस उम्मीदवारों के लिए सुरक्षित रखें। इसे बाहरी छात्रों के लिए तभी खोलें जब स्थानीय उम्मीदवारों की सूची समाप्त हो जाए। हम यह मांग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कुल सीटों का 50% हिस्सा (AIQ) पहले ही ओपन मेरिट के लिए दिया जा चुका है, अतः शेष 50% पर स्थानीय छात्रों का पूरा हक बनता है। फेडरेशन ने यह भी कहा कि “हम सुरक्षा के ‘दिल्ली मॉडल’ की मांग करते हैं। यदि राष्ट्रीय राजधानी अपने छात्रों के लिए 100% राज्य कोटा सुरक्षित रख सकती है, तो छत्तीसगढ़ अपने डॉक्टरों के हितों को क्यों बेच रहा है?”