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“हँसी – सबसे असरदार दवा”,सकारात्मक भावनाएँ शरीर के भीतर चिकित्सकीय रासायनिक परिवर्तन उत्पन्न करती हैं

   — मनोविज्ञान की दृष्टि से एक अद्भुत सच्ची कहानी 🖋️ मोनिका साहू,काउंसलिंग एवं रिहैबिलिटेशन साइकोलॉजिस्ट रिलेशनशिप कोच तीन दशक पहले, प्रसि...

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मनोविज्ञान की दृष्टि से एक अद्भुत सच्ची कहानी

🖋️मोनिका साहू,काउंसलिंग एवं रिहैबिलिटेशन साइकोलॉजिस्ट रिलेशनशिप कोच

तीन दशक पहले, प्रसिद्ध पत्रकार और Saturday Review के संपादक नॉर्मन कसिंस को अचानक एक गंभीर बीमारी ने घेर लिया — कॉलेजन डिज़ीज़।

यह एक दुर्लभ ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की अपनी ही प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) उसके ऊतकों पर हमला करने लगती है।

धीरे-धीरे उनका शरीर जकड़ गया — वे न तो सिर घुमा सकते थे, न जबड़ा खोल सकते थे, न ही अपने हाथ-पैर हिला सकते थे।

जब उन्होंने डॉक्टर से पूछा कि उनके ठीक होने की कितनी संभावना है, तो उत्तर था —

> “पाँच सौ में से केवल एक व्यक्ति ही जीवित रह पाता है।

उस रात नॉर्मन ने एक असाधारण निर्णय लिया।

अगर दवाइयाँ उनका इलाज नहीं कर सकतीं — तो वे अपने मन की शक्ति से खुद को ठीक करेंगे।

वे जानते थे कि नकारात्मक भावनाएँ जैसे भय, निराशा और तनाव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती हैं, जबकि सकारात्मक भावनाएँ शरीर के भीतर चिकित्सकीय रासायनिक परिवर्तन उत्पन्न करती हैं।

और तभी उनके मन में एक विचार कौंधा —

👉 “यदि नकारात्मक भावनाएँ हमें बीमार बना सकती हैं, तो क्या सकारात्मक भावनाएँ — विशेषकर हँसी — हमें स्वस्थ कर सकती हैं?”

नॉर्मन ने अस्पताल छोड़ दिया और एक होटल के कमरे में चले गए। वहाँ उन्होंने कॉमेडी फिल्में, मज़ेदार किताबें और चुटकुले इकट्ठे किए।

फिर शुरू हुआ उनका लाफ्टर थेरेपी एक्सपेरिमेंट।

पहली बार जब उन्होंने ज़बरदस्ती दस मिनट तक हँसी, तो कुछ चमत्कारी हुआ —

उनका दर्द गायब हो गया, और वे बिना दवा के दो घंटे तक गहरी नींद में सो गए।

धीरे-धीरे यह हँसी चिकित्सा (Laughter Therapy) उनकी दिनचर्या बन गई।

हर दिन वे हँसते, मुस्कराते और खुद को सकारात्मक ऊर्जा से भरते।

डॉक्टरों ने उनके रक्त परीक्षण में पाया — हर “हँसी सत्र” के बाद उनके शरीर में सूजन और दर्द के संकेतक घट जाते थे।

कुछ हफ्तों बाद, वे फिर से अपने हाथ-पैर हिलाने लगे।

धीरे-धीरे वे बैठने लगे, और अंततः सामान्य जीवन में लौट आए।

जिस बीमारी ने उन्हें असहाय बना दिया था, उसी बीमारी के सामने उन्होंने मन और मुस्कान की शक्ति से जीत हासिल की।

बाद में उन्होंने अपनी यात्रा पर एक प्रसिद्ध किताब लिखी —

📘 “Anatomy of an Illness” — जिसमें उन्होंने बताया कि सकारात्मक भावनाएँ और हँसी शरीर की प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली को सक्रिय कर सकती हैं।

वे आगे चलकर UCLA मेडिकल स्कूल में व्याख्याता बने और डॉक्टरों को सिखाने लगे कि हर रोगी के भीतर एक “हीलिंग स्पिरिट” छिपा होता है, जिसे केवल जागृत करने की आवश्यकता होती है।

🌼 मनोवैज्ञानिक संदेश:

हँसी सिर्फ़ एक प्रतिक्रिया नहीं — यह भावनात्मक रिहाई (Emotional Release) का एक शक्तिशाली माध्यम है।

यह शरीर में एंडॉर्फिन्स और सेरोटोनिन जैसे “हैप्पी हार्मोन्स” को बढ़ाती है, जो दर्द, तनाव और अवसाद को कम करते हैं।

जब हम मुस्कराते हैं, तो हमारा मस्तिष्क शरीर को यह संकेत देता है कि “सब कुछ ठीक है” — और यही संदेश भीतर से स्वास्थ्य की ऊर्जा को जगाता है।

✨ नॉर्मन कसिंस की कहानी हमें यह सिखाती है:

> “जीवन में कभी-कभी दवाइयाँ नहीं, बल्कि मुस्कान, उम्मीद और सकारात्मक सोच सबसे बड़ी औषधि बन जाती हैं।