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उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा अक्षय तृतीया पर पारंपरिक पुतरा-पुतरी विवाह में शामिल हुए, बच्चों के साथ निभाई लोक परंपरा, टीकावन कर निभाई सांस्कृतिक जिम्मेदारी

कवर्धा,असल बात कवर्धा, छत्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया, जिसे “अक्ती तिहार” के नाम से भी जाना जाता है, एक विशेष सांस्कृतिक पर्व है। इस अवसर पर ग्रा...

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कवर्धा,असल बात



कवर्धा, छत्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया, जिसे “अक्ती तिहार” के नाम से भी जाना जाता है, एक विशेष सांस्कृतिक पर्व है। इस अवसर पर ग्रामीण अंचलों से लेकर नगरों तक बच्चे मिट्टी के गुड्डे-गुड़ियों की शादी पूरी रीति-रिवाज के साथ करवाते हैं, जिसे पुतरा-पुतरी का विवाह कहा जाता है। इसी परंपरा के अंतर्गत आज कबीरधाम प्रवास के दौरान प्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा ने ग्राम खिरसाली और मोतिमपुर में बच्चों के इस आनंदमय आयोजन में सहभागिता कर सभी का दिल जीत लिया। वे पुतरा-पुतरी विवाह कार्यक्रम में शामिल हुए और टीकावन (टीका करने की परंपरा) निभा कर सांस्कृतिक सहभागिता का परिचय दिया।

उपमुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा ने कहा कि अक्ती तिहार हमारी लोक परंपरा का ऐसा उत्सव है, जिसमें बचपन से ही बच्चे हमारी संस्कृति, रिश्तों और परंपराओं को खेल-खेल में सीखते हैं। यह आयोजन छत्तीसगढ़ की जीवंतता और मूल्यों की झलक है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन हमारी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने और भावी पीढ़ी में परंपराओं को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बच्चों द्वारा इस प्रकार की परंपराओं का पालन करना हमारे समाज की सामूहिक चेतना और एकता को दर्शाता है।


बच्चों में खास उत्साह, बारात और मंडप की भी रही झलक


पुतरा-पुतरी विवाह कार्यक्रम में बच्चों ने पूरे उत्साह के साथ गुड्डे-गुड़ियों की बारात, मंडप सजाया और विवाह की पारंपरिक रस्मों का अनुकरण करते हुए अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया। जैसे ही उपमुख्यमंत्री कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, बच्चों ने तालियों और पारंपरिक गीतों के साथ उनका स्वागत किया।


पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत से जुड़ाव की अनूठी मिसाल


उपमुख्यमंत्री श्री शर्मा ने बच्चों की बारात, मंडप सजावट और विवाह की रस्मों को देखकर उनकी रचनात्मकता और परंपरागत समझ की सराहना की। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित और आगे बढ़ाने में ऐसे आयोजनों की अहम भूमिका है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में ग्रामीणजन, अभिभावक और जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। बच्चों की पारंपरिक वेशभूषा, गीत-संगीत और रीति-रिवाजों के अनुपालन ने उपस्थित लोगों को लोक परंपरा की जड़ों से जोड़ दिया।

असल बात,न्यूज