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कृकृत्य के अपराध में एक बच्चे के पिता अभियुक्त को 10 साल के सश्रम का आवास की सजा, पोक्सो एक्ट का अपराध सिद्ध नहीं हो सका

  दुर्ग.  असल बात न्यूज़.                   0 विधि संवाददाता  यहां न्यायालय ने कृकृत्य के अपराध में एक बच्चे के पिता अभियुक्त को 10 साल के स...

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 दुर्ग. 

असल बात न्यूज़. 

                0 विधि संवाददाता 

यहां न्यायालय ने कृकृत्य के अपराध में एक बच्चे के पिता अभियुक्त को 10 साल के सश्रम का आवास की सजा सुनाई है. अभियुक्त के विरुद्ध पोक्सो एक्ट का अपराध सिद्ध नहीं हो सका. अभियुक्त की उम्र लगभग 30 साल है और गिरफ्तारी के बाद से वह न्यायिक हिरासत में है. अपर सत्र न्यायाधीश   चतुर्थ एफटीएससी दुर्ग श्रीमती संगीता नवीन तिवारी के न्यायालय ने यह सजा सुनाई है. न्यायालय ने पीड़ित अभियोक्तरी के पुनर्वास हेतु आहत प्रतिकर योजना से विधि अनुरूप राशि प्रदान करने का भी आदेश सुनाया है.

यह प्रकरण  आरक्षी केंद्र अमलेश्वर दुर्ग क्या अंतर्गत 1 जुलाई 2022 का है जिसमें 18 सितंबर 2022 को फर्स्ट इनफॉरमेशन रिपोर्ट दर्ज कराई गई. अभियोजन पक्ष के अनुसार प्रकरण का सार यह है कि वीरता की आरोपी से इंस्टाग्राम पर जान पहचान हुई फिर मोबाइल पर बातचीत होने लगी. प्रकरण में स्वीकृत तथ्य है कि अभियुक्त एवं अभियोक्तरी एक दूसरे को पहले से जानते पहचानते हैं. ऐसे ही बातचीत आगे बढ़ी तो आरोपी, मैं तुमसे प्यार करता हूं तुमसे शादी करना चाहता हूं कहकर पीड़िता को घुमाने ले जाने के बहाने हाउसिंग बोर्ड के एक सुनने मकान में ले गया और शारीरिक सम्मान स्थापित किया. शादी करने का प्रलोभन देकर फिर इसके बाद उसने और भी कई बार शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किया. आरोपी ने उसका मोबाइल से फोटो खींचकर रख लिया था उसे वायरल करने की धमकी देकर उसके साथ कई बार शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किया.

विचारण एवं सुनवाई के दौरान न्यायालय के समक्ष प्रकरण में बचाव पक्ष में यह तर्क लिया की घटना की प्रथम रिपोर्ट घटना के 14 मा पक्ष  दर्ज कराई गई और उक्त विलंब का कोई कारण नहीं दर्शाया गया है न्यायालय ने माना कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने मात्र से अभयोजन के संपूर्ण कथानक की  सत्यता खंडित नहीं हो जाती है. न्यायालय ने बचाव पक्ष के इस तर्क को भी स्वीकार योग्य नहीं माना कि अभियोक्तरी के परिजनों द्वारा अभियुक्त के साथ विवाह हेतु दबाव बनाए जाने का प्रयास किया जा रहा था. न्यायालय के समक्ष अभियोक्तरी एवं अन्य साक्षयों के कथनों में कुछ विसंगतियों एवं विलुप्तियां नजर आई जिस पर न्यायालय ने माना कि किसी भी साक्ष्य से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह भिन्न-भिन्न समयो में घटना के संबंध में एकदम एक जैसा  विवरण दे बल्कि भिन्नता ही स्वाभाविक है.

 न्यायालय में माना कि अभियुक्त के द्वारा अभिव्यक्ति को विवाह का झूठा आश्वासन देकर इस तथ्य के भ्रम में रखकर सम्मति प्राप्त की गई.इस मामले में न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दीपक गुलाटी वर्सेस स्टेट आफ हरियाणा के प्रकरण के निर्णय को अवधारित किया. पोक्सो एक्ट की धारा 6 का अपराध युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित नहीं पाए जाने पर अभियुक्त को इस अपराध.से दोष मुक्त कर दिया गया.



 अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक संतोष कसर ने पैरवी की.