Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Pages

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

ब्रेकिंग :

latest

Breaking News

Automatic Slideshow


चार दशकों में बस्तर में नहीं पहुंची मूलभूत सुविधाएं, रात में सोते हैं तो सुबह जिंदा उठने का नहीं रहता भरोसा, नक्सली हिंसा में कई लोग खो चुके हाथ-पैर, कई बच्चे हुए अनाथ

  रायपुर.   छत्तीसगढ़ के नक्सल पीड़ित परिवार की आपबीती सुनकर आपका भी रुह कांप उठेगा. दिल्ली से लौटे इन परिवारों ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत ...

Also Read

 रायपुर. छत्तीसगढ़ के नक्सल पीड़ित परिवार की आपबीती सुनकर आपका भी रुह कांप उठेगा. दिल्ली से लौटे इन परिवारों ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में अपनी पीड़ा साझा की. नक्सल पीड़ितों का कहना है कि दूसरे लोग जैसे जी रहे हैं वैसे हम बस्तर में भी जीना चाहते हैं. चार दशकों से बस्तर में मूलभूत सुविधा नहीं पहुंची है. बच्चा स्कूल जाता है तो नक्सली उन्हें रोकते हैं. हिंसा में धकेला जाता है. रात में सोते हैं तो सुबह जिंदा उठेंगे की नहीं ये भी भरोसा नहीं होता है.

दिल्ली में राष्ट्रपति और केंद्रीय गृहमंत्री से मुलाकात कर अपना दुख दर्द बताकर 50 से अधिक नक्सल पीड़ित परिवार छत्तीसगढ़ लौट आए हैं. प्रेस कांफ्रेंस में बस्तर शांति समिति ने कहा, राष्ट्रपति और केंद्रीय गृहमंत्री से नक्सलवाद खत्म करने की मांग की है. गृहमंत्री ने नक्सलवाद खत्म करने का आश्वासन दिया है. 2026 तक का समय दिया गया है. नक्सल पीड़ित जेनएयू भी गए थे. जेनएयू में माओवादियों के शहरी पैरोकार बैठे हैं. वहां अपनी पीड़ा सुनाते हुए जेनएयू परिसर में जमकर नक्सल विरोधी नारे लगाए. बस्तर शांति समिति ने बताया कि नक्सली हिंसा में 8 हजार से ज्यादा ग्रामीणों की मौत हो चुकी है. 1 हजार से ज्यादा लोग अपने हाथ पैर खो चुके हैं. छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो गए हैं.


बम विस्फोट में आंख खो चुकी है राधा

नक्सल पीड़ित ने बताया, राधा सलाम तीन साल पहले टिफिन बम के विस्फोट में अपनी आंख खो चुकी है. वर्ष 2013 के आखिरी महीने देशभर की ही तरह बस्तर में भी कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. नारायणपुर जिले के ग्राम कोंगेरा में आंगनबाड़ी के नजदीक सैनू सलाम का घर है. वहां अपने घर के बाहर सैनू सलाम की 3 वर्षीय बेटी राधा अपने 5 साल के चचेरे भाई रामू के साथ दोपहर की गुनगुनी धूप में खेल रही थी. खेलते-खेलते रामू को केटली जैसी कोई चमकदार चीज दिखाई पड़ी. दोनों भाई-बहन कौतुहलवश उसे देखने गए. रामू ने उसे अपने हाथों में उठा लिया पर न जाने क्या अहसास हुआ कि रामू ने उसे अपने हाथों से छोड़कर नजरें फिरा ली पर तब तक देर हो चुकी थी. धमाका हो गया. राधा और रामू दोनों गम्भीर रूप से घायल हो गए.

राधा की एक आंख खराब हो गई और बम के छर्रों ने चेहरे पर अमिट दाग छोड़ दिए हैं. रामू के हाथों और पैरों में गम्भीर चोटें आई है. आज इस घटना को दस साल से ज्यादा हो गए पर इसकी याद आज भी राधा को झकझोर कर रख देती है. राधा की माताजी का निधन हो चुका है और अब उसके पिता ही उसकी देखभाल कर रहे हैं. बिना किसी अपराध के जीवनभर की सजा भुगत रही राधा भी अपनी व्यथा सुनाने दिल्ली गई थी.

नक्सलियों ने पिता के सामने बेटे को टंगिये से काटा

कलारपारा के रहने वाले दयालुराम बैद से गांव के लोग अपनी बीमारियों के लिए दवा लेते हैं. 16 जून 2018 को भीड़ थोड़ी ज्यादा थी. घड़ी में आठ बज रहे थे. घर में खाना बनकर तैयार था. उनका छोटा बेटा गेंदलाल सो भी चुका था, तभी घर में 50-60 वर्दी-बन्दूकधारी माओवादी घूसे. पहले तो उन्होंने दयालुराम के बड़े बेटे के कमरे को बाहर से बंद कर दिया, फिर छोटे बेटे गेंदलाल और दयालुराम को बांधकर घर से ले गए. उन्होंने गांव के बाकी घरों को पहले से ही बाहर से बंद कर दिया था. फिर दयालुराम के सामने उनके 30 वर्षीय जवान बेटे को टंगिये से काट डाला गया. दयालुराम को भी बेसुध होते तक पीटा और बाद में मरा हुआ समझकर वहां से चले गए.

अपने जवान बेटे को अपनी आंखों के सामने असहाय होकर कटते देखने की पीड़ा शब्दों में शायद ही बताई जा सकती है. दयालुराम भी ऐसे बेहोश हुए कि अपने बेटे का दशकर्म तक नहीं देख सके. उन्हें फिर से अपने पैरों पर खड़े होने में 2 साल का समय लग गया. वे आज भी स्वयं को कोसते हैं कि ऐसा भयानक दिन देखकर भी वह जिन्दा क्यों हैं. बार-बार मौत को याद करते हैं, पर फिर अपने नन्हे नाती नातिनों को देखकर मन कड़ा करते हैं. इस वारदात को सुनाते हुए दयालुराम के आंखों से आंसू एक पल भी नहीं रुका.