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चुनावी साल में अभी से चुहचूहाने लगा है पसीना, शह और मात के खेल में हर दिन पटखनी देने की कोशिश

  रायपुर।  असल बात न्यूज़।।  00 राजनीति गलियारा              00  अशोक त्रिपाठी      वर्ष 2023 का बेशकीमती एक महीना बीत गया है और दूसरा महीना...

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 रायपुर।

 असल बात न्यूज़।। 

00 राजनीति गलियारा             

00  अशोक त्रिपाठी     

वर्ष 2023 का बेशकीमती एक महीना बीत गया है और दूसरा महीना बीतने की ओर तेजी से बढ़ रहा है। राजनीतिक विश्लेषक और राजनीतिक दलों से जुड़े हुए लोग जानते हैं कि दूसरे दिनों की तुलना में इस साल का एक-एक दिन कितना अधिक कीमती हो गया है। किसी भी एग्जाम की तैयारियो करने की तरह यह एक-एक दिन राजनीतिक दलों के लिए कुछ नया अधिक हासिल करने जी तोड़ मेहनत करने का हो गया है और निश्चित रूप से जो अपनी तैयारी करने में चूक गया तो उसे आगे चलकर  बड़ा नुकसान होता दिख सकता है। बाहर भले ही कुछ नहीं दिख रहा हो लेकिन राजनीतिक दलों की पर्दे के पीछे बड़ी तैयारियां शुरू हो गई हैं। शह और मात देने की घमासान तैयारियां शुरू हो गई हैं। पूरे साल भर के कार्यक्रम तय कर लिए गए हैं। बहुत संभावना है अगर कोई बड़ा नया कुछ नहीं हुआ तो, यहां आने वाले विधानसभा चुनाव में भी मुख्य राजनीतिक दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच ही सीधा मुकाबला होगा और कांटेदार टक्कर नजर आएगी। जोगी कांग्रेस,यहां पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में अभी अपने आप से ही जूझती नजर आ रही है तो आप पार्टी को छत्तीसगढ़ में जिस तेजी से आगे बढ़ना चाहिए था उसकी यह बढ़त अभी यहां नहीं दिखी है। 

बहुत सारे को लोगों को लग रहा होगा कि नया साल,चुनावी वर्ष 2023 शायद बहुत जल्दी आ गया। और शायद अचानक ही सिर पर आ गया है। नई सरकार में दो साल का समय तो covid संकट में बीत गया। यह घड़ी सरकार के लिए अधिक मुश्किल भरी होती है कि  वह ऐसे समय में अपने कार्यक्रमों को आगे नहीं बढ़ा पाती तो उसके कई कार्यक्रम पीछे छूट जाते हैं। पिछले चुनाव के जो चौंकाने वाले परिणाम सामने आए उसके बाद ज्यादातर लोगों की यही प्रतिक्रिया रही थी कि लगातार एक सरकार के 15 साल से जनता हो गई थी और चुनाव में ऐसा परिणाम आया। तमाम राजनीतिक विश्लेषक ऐसा कहने से भी नहीं चूकते कि जनता ही नहीं, तमाम कार्यकर्ता भी ऊब गए थे और कार्यकर्ताओं ने ही ऐसे परिवर्तन की लहर खड़ी की। तो अब बात हो रही है कि,ऐसा था तो अब क्या ? क्या आम मतदाताओं ,कार्यकर्ताओं के ऐसे "ऊब" में परिवर्तन आया है।जो नाराजगी पनपी थी, क्या वह दूर हुई ? लेकिन अब इससे गाने क्या घटा के राज्य में नई राजनीतिक परिस्थिति अभी बनी है। सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस ने पिछले हालात, परिस्थितियों को बदलते हुए पार्टी की लाइन को दूसरों के मुकाबले में लंबा खींचने की कोशिश की है। कांग्रेस इस दौरान यहां कई सारे कार्यक्रम को लेकर आई है जिससे आम लोगों को सीधे जुड़ने लाभान्वित करने की कोशिश की गई है। कांग्रेस ने यह जो लाइन खड़ी की है अभी यहां, विपक्ष को पहले उसे पार करना होगा। 

इससे बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता है कि दूसरे आम चुनाव की तरह इस चुनाव में भी कैंडिडेट का चेहरा काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। यह सच्चाई है कि नए चेहरे भी जीत सकते हैं लेकिन किसी चेहरे से मतदाता में नाराजगी रही तो उसके लिए चुनाव स्वयंमेव दिक्कतें पैदा हो सकती है और यह किसी भी पार्टी के हार का कारण बन सकती है। इस मामले में अभी कांग्रेस की तुलना में भाजपा अधिक विवादों में नजर आती है। भाजपा के कई चेहरे पर पिछले कई वर्षों से अंगुलियां उठ रही है। उनमें से कई को पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कैंडिडेट बनाया, चुनाव मैदान में उतारा तो उन्हें हार का सामना भी करना पड़ा। राजनीतिक गलियारे में कहा जा रहा है कि ऐसे चेहरों से जनता की आम मतदाताओं, कार्यकर्ताओं की नाराजगी अभी भी खत्म नहीं हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव के समय भाजपा ने मीडिया विभाग में भी अकुशल, अव्यावहारिक, कम अनुभवी, नेता टाइप के लोगों को लोगों को आगे कर दिया था जिसका भी उसे काफी नुकसान उठाना पड़ा लेकिन लग रहा है कि पार्टी ने इससे सबक लिया और इसमें सुधार करने की काफी कोशिश की गई है। 

अब चुनावी वर्ष शुरू हो गया है तो चुनाव के हालात पर चर्चाओं का दौर भी शुरू हो गया है। सत्तासीन पार्टी कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में कहीं कमजोर नहीं आता जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक भी मान कर चल रहे हैं कि कांग्रेस ने यहां अपना प्रदर्शन सुधारने की कोशिश की है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के साथ प्लस यह है कि वह कैडर बेस्ड पार्टी है,एक विचारधारा वाली पार्टी है। इसका फायदा भाजपा को यह मिल जाता है कि भले ही इस विचारधारा को मानने वाले लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं है लेकिन वह चुनाव में भाजपा को और दे देते हैं।इसको छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों से आसानी से समझा जा सकता है। छत्तीसगढ़ में जिस पार्टी की पिछले 15 वर्षों से सरकार थी उसके चेहरों से उबकर मतदाताओं ने उसे सिर्फ 14 सीट पर सिमटा कर सत्ता से बाहर कर दिया। लेकिन इसके सिर्फ 5 महीने बाक चुनाव होते हैं तो आम मतदाता लगता है कि उस चुनाव में भाजपा को अपने सिर पर बिठा लेते हैं। जिस पार्टी को मतदाताओं ने राज्य में सत्ता से बाहर कर दिया और जहां विरोधी पार्टी कांग्रेस मजबूत होने के तेजी से आगे बढ़ने लगी थी वहां उन्हें मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में उस पार्टी के 10 लोकसभा प्रत्याशियों को जिता दिया। भले ही कोई कितना दमखम भरे लेकिन यह जीत उसी विचारधारा वाले लोगों के फलस्वरूप हुई जिन्होंने विधानसभा चुनाव में अपनी नाराजगी जाहिर की और लोकसभा चुनाव में भारी मतों से जीता दिया। भाजपा के लिए यह फायदा है। इसीलिए यहां चेहरों को बदलने पर जोर दिया जा रहा है और कहा जा सकता है कि कार्यकर्ताओं की तरफ से इसकी मांग भी उठ रही है। लेकिन जो टिकट वितरण में लगे होते हैं उनको मालूम है कि जिनकी टिकट कट जाती है वे और उनके समर्थक, नए चेहरों को हराने का काम करने में पूरी तरह से जुड़ जाते हैं। इससे वोटों का समीकरण गड़बड़ा जाना तो स्वभाविक है और जिस परिणाम की उम्मीद की जाती है वैसे परिणाम नहीं आ आते। इससे नए चेहरे को चुनाव मैदान में उतारने का समीकरण भी हर बार सही नहीं बैठता।

अब जो चुनाव होगा उसमें आम मतदाता कांग्रेस के कार्यों की समीक्षा भी करेंगे। कांग्रेस के पास अपनी सरकार की उपलब्धियों को बताने के लिए तो बहुत कुछ हो सकता है लेकिन जो शराबबंदी का मुद्दा है वह उसके गले की फांस बन सकता है। विपक्ष की पूरी तैयारियां निश्चित रूप से इसी पर जोर देने की रहेगी। छत्तीसगढ़ के निवासी बहुत सरल और संयमित जीवन वाले हैं। हालांकि दारु पीने वालों की संख्या भी काफी अधिक है लेकिन यहां शराब का घर घर में विरोध होता है। शराब से यहां, लोगों ने घर परिवार को बर्बाद होते देखा है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि यहां महिलाएं भी शराब की भारी विरोधी हैं और महिलाओं का ऐसा वर्ग चुनाव परिणाम को बड़े तक प्रभावित करता दिख सकता है। प्रधानमंत्री आवास का मुद्दा भी चुनाव में बड़ा मुद्दा साबित हो सकता है। 

जब छत्तीसगढ़ के ताजा राजनीतिक हलचल,हालातों की बात होगी तो यह बात निश्चित रूप से मंत्री टी एस सिंहदेव की चर्चा के बिना पूरी नहीं रह सकती। राजनीतिक विश्लेषकों की नजर अभी इस और लगी हुई कि इस विधानसभा चुनाव में श्री सिंहदेव की कैसी भूमिका हो सकती है। यह तो सबको मालूम है कि पिछले विधानसभा चुनाव में श्री सिंहदेव महत्वपूर्ण भूमिका में थे। कांग्रेस का जो चुनावी घोषणा पत्र तैयार हुआ था उन्हीं के नेतृत्व में तैयार हुआ था और उस चुनाव में उन्होंने पूरे छत्तीसगढ़ में चुनावी सभाएं की थी जनसंपर्क किया था। और एक बात यह भी कि अंबिकापुर संभाग के सभी 14 सीटों पर उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस के प्रत्याशी तय किए गए थे और उन को जिताने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत भी की थी। लेकिन अब स्थिति काफी कुछ बदली हुई नजर आती है। श्री सहदेव सत्ता में है, मंत्री भी हैं लेकिन कहीं ना कहीं ऐसा जरूर महसूस होता है कि वे हसिए पर है। पिछले विधानसभा चुनाव के समय जो संगठनात्मक नेतृत्व, उनके पास था, लगता है कि वह अब उनके पास नहीं है। तो सवाल होता है किसका छत्तीसगढ़ के राजनीतिक परिदृश्य पर क्या असर दिख सकता है और खासतौर पर अंबिकापुर संभाग, इससे किस तरह से प्रभावित हो सकता है। 

राज्य में आसन्न विधानसभा चुनाव के मध्य यार राजनीतिक विश्लेषकों की नजर आम आदमी पार्टी की ओर भी लगी हुई है। आम आदमी पार्टी ने अभी दिल्ली पंजाब और हरियाणा के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है। छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है लेकिन इस पार्टी ने अभी यहां अपना प्रदर्शन सुधारने की कोशिश की है। पार्टी यहां मार्च से अपना चुनाव अभियान शुरू करने जा रही है। बताया जाता है कि इसी कड़ी में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पहली बार रायपुर आ रहे हैं. आप पार्टी की ओर से छत्तीसगढ़ में 19 से 23 मार्च तक प्रदेश कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया गया है, जिसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करेंगे। कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी के यहां तीसरी शक्ति के रूप में अपने आप को खड़ा करने की कोशिश जरूर करेगी।

                                             cont.