नई दिल्ली, छत्तीसगढ़। असल बात न्यूज़।। 00 विशेष संवाददाता इस साल देश में 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे समय में आम ल...
इस साल देश में 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे समय में आम लोग दैनिक जरूरत की चीजें के दामों में लगातार बढ़ोतरी से भयंकर तरीके से त्रस्त हैं। गेहूं, चावल और तेल के दामों में लगातार बढ़ोतरी, लोगों को रुला रहे हैं। जो जानकारी है उसके अनुसार केंद्र सरकार ने इन चीजों की कीमतों को नियंत्रित करने लाख कोशिशें की हैं। निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया गया है। ओपन मार्केट डिस्पोजल स्कीम के तहत लगभग 30 लाख मैट्रिक टन गेहूं बाजार में लाया गया है जिससे आटा और गेहूं सस्ता होने की उम्मीद की गई है। लेकिन सरकार को निराशा हो सकती है कि ऐसे प्रयासों का बाजार में कहीं कोई असर नहीं दिख रहा है। गेहूं की कीमतें, कम होने के बजाय अब भी रोज बढ़ रही हैं। कालाबाजारी और मुनाफाखोर तत्व जमकर मुनाफावसूली कर रहे हैं।
गेहूं और आटा की कीमतों में खुले बाजार में पिछले 4 महीनों से लगातार बढ़ोतरी दिख रही है। इसके दाम हर जगह बढ़े हुए दिख रहे हैं। कीमत बढ़ जाने के बाद गेहूं के स्टॉक का कृत्रिम अभाव पैदा कर दिया गया है। कई दुकानों से क्यों गायब हो गया है। आटा ₹40 प्रति किलो तक बिक रहा है। किसी के पास कोई जॉब नहीं कि गेहूं का ऐसा शोर्टेज कहां से आ गया। ब्रांडेड गेहूं पर जीएसटी लगाने के बाद से मुनाफाखोरी को बाजार में यह मुनाफा वसूली करने का नया मौका मिल गया है। कहा जा रहा है कि सरकार ने ब्रांडेड खाद्य चीजों पर जीएसटी लगाया तो उसके बाद बाजार में मुनाफावसूली का नया तरीका निकाल लिया गया।मुनाफाखोरी को इस निर्णय के बाद से काली कमाई करने का एक तरह से सुनहरा अवसर मिल गया।
हालांकि,केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने खाद्य वस्तुओं की कीमतों को कम करने के लिए बफर से रिलीज, स्टॉक सीमा को लागू करने, जमाखोरी को रोकने के लिए संस्थाओं द्वारा घोषित स्टॉक की निगरानी के साथ-साथ आयात शुल्क के युक्तिकरण, आयात कोटा में बदलाव जैसी व्यापार नीति के साधनों में बदलाव किया है।इसी कड़ी में एक किस्म के भारतीय गेहूं के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया गया।आटा (गेहूं) के निर्यात पर निर्णय लेने का अधिकार को अंतर-मंत्रालयी समिति (आईएमसी) की सिफारिश के अधीन लाया गया है। टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। 9 सितंबर , 2022 से उसना चावल को छोड़कर गैर-बासमती चावल पर 20% का निर्यात शुल्क लगाया गया है।सरकार ने ओपन मार्केट डिस्पोजल स्कीम (ओएमएसएस) के तहत 30 लाख मीट्रिक टन गेहूं को राज्य सरकारों, केंद्रीय भंडार, राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ (एनसी सीएफ), भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड ( नेफेड ) को बिक्री करने का फैसला किया है।
दालों की घरेलू उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों को संतुलित करने के लिए तूर और उड़द के आयात को 31.03.2024 तक 'मुक्त श्रेणी' में रखा गया है और मसूर पर आयात शुल्क को घटाकर 31.03.2024 तक शून्य कर दिया गया है। तूर के संबंध में जमाखोरी और प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं को रोकने के लिए सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत अरहर के स्टॉकहोल्डर्स द्वारा स्टॉक प्रकटीकरण को लागू करने और स्टॉक की निगरानी और सत्यापन करने के लिए एक निर्देश जारी किया है। मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) बफर से चना और मूंग की कीमतों को कम करने के लिए इसकी बाजार में लगातार आपूर्ति की जाती है।
प्याज की कीमतों में उतार-चढ़ाव को स्थिर करने के लिए सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के तहत रबी-2022 और सितंबर, 2022 और जनवरी, 2023 के दौरान रिकॉर्ड 2.51 लाख मीट्रिक टन की खरीद और प्रमुख खपत केंद्रों में जारी की गई है।
खाद्य तेल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए, सरकार ने कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर मूल आयात शुल्क घटाकर शून्य कर दिया और इन तेलों पर कृषि उपकर को घटाकर 5% कर दिया गया है। रिफाइंड सोयाबीन तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर मूल शुल्क 32.5% की पिछली दर से घटाकर 17.5% कर दिया गया है और रिफाइंड पाम तेल पर मूल शुल्क 17.5% से घटाकर 12.5% कर दिया गया है। रिफाइंड पाम ऑयल के आयात को भी 'मुक्त' श्रेणी में रखा गया है।
परंतु वास्तविकता यह है कि बाजार में मुनाफा खोर और कालाबाजारी करने वाले तत्व अधिक हावी है कि इन फायदों को आम जनता तक, आम उपभोक्ताओ तक पहुंचने हो नहीं दिया जा रहा है। आम लोगों को आज की तारीख में भी वैसी ही महंगाई से जूझना पड़ रहा है। सरकार के द्वारा रिलीज किया गया सस्ता गेहूं और आटा कहां चला गया किसी को समझ नहीं आ रहा है। जब आम उपभोक्ता बढ़ती महंगाई की भयंकर पीड़ा से जूझ रहा है तो महंगाई को नियंत्रित करने वाले शासन प्रशासन के किसी भी तरह के तंत्र का पूरी तरह से अभाव नजर आता है। और महंगाई को कम करने की नीतियां और योजनाएं कागजों में सिमटी नजर आ रही हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि सरकारी खजाने से तनख्वाह पाने वाले वर्ग के लोगों को बढ़ती महंगाई से कोई लेना देना नहीं है और महंगाई के इस वर्ग पर कोई प्रतिकूल असर नजर भी नहीं आता है। क्योंकि इस वर्ग का महंगाई भत्ता साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। वह वर्ग जिसे सीमित तनखा मिलती है, उसके घर की हालात देखकर महगाई की पीड़ा समझी जा सकती है। एक तो उसकी आय, मासिक आमदनी अत्यंत सीमित होती है, दूसरी तरफ उसे कभी भी कोई भी भत्ता मिलने की कभी उम्मीद नहीं होती।
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