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छत्तीसगढ़ में भाजपा कन्फ्यूजन में, पिछड़ा वर्ग की राजनीति करें कि, अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग को साधे ?

पंद्रह साल में कार्यकर्ताओं के साथ "भाई साहब" से "ए भाई" पर उतर आने का लगता रहा है आरोप,  अब पार्टी, जातिगत समीकरण में द...

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पंद्रह साल में कार्यकर्ताओं के साथ "भाई साहब" से "ए भाई" पर उतर आने का लगता रहा है आरोप,  अब पार्टी, जातिगत समीकरण में देख रही है आगे बढ़ने का रास्ता  

"एक्स्ट्रा एटीट्यूड" से नुकसान की हकीकत को स्वीकार करने से अभी भी परहेज 

नहीं कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की परेशानियां अभी भी हुई है कुछ कम

 रायपुर।

 असल बात न्यूज़।। 

 राजनीति गलियारा

    00   विशेष संवाददाता 

छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी अपने को संगठनात्मक तौर पर मजबूत करने लगातार नए प्रयोग करते दिख रही है। लग रहा है कि यहां अब यह पार्टी क्षेत्रीय दलों की तरह ही जातिगत समीकरण के आधार पर कार्यकर्ता और आम लोगों को आकर्षित करने में लग गई है। पार्टी को अपना जनाधार बढ़ाने और लोकप्रियता हासिल करने का यह तरीका आसान लग रहा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा करके ही भारतीय पार्टी को अधिक कुछ हासिल नहीं होने वाला है। पार्टी को अधिक कुछ नहीं तो सिर्फ इस बात को ही अत्यंत गंभीरता से समझना होगा कि विधानसभा चुनाव में जब उसने आम जनता का विश्वास खो दिया तो उसके सिर्फ 5 महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में उसे इतनी बड़ी जीत कैसे हासिल हुई। इसकी समीक्षा उस से निकले निष्कर्षों से पार्टी को अपने जनाधार को आगे बढ़ाने का मंत्र मिल सकता है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि पार्टी सीधे रास्ते पर आगे बढ़ने के बजाय इधर-उधर हाथ मारकर, कैसे भी अपनी लोकप्रियता को वापस पाना चाहती है। 

भारतीय जनता पार्टी की सरकार, को "गए" छत्तीसगढ़ में अब 4 साल हो गए हैं और उसके लिए यह समीक्षा का सही वक्त है कि  उसने 15 साल तक छत्तीसगढ़ में सत्ता में रहने के बाद जिन कारणों से आम जनता का विश्वास खो दिया और पिछले विधानसभा चुनाव में आम मतदाताओं में उसे बुरी तरह से नकार दिया तो क्या वह इस नकारात्मक माहौल से पिछले 4 वर्षों में कुछ हद तक पार पा सकी है। अब राज्य में विधानसभा के चुनाव  सिर पर आते जा रहे हैं। इस चुनाव के लिए अब सिर्फ 10 महीने शेष रह गए हैं। कहा जा सकता है कि यह कोई बहुत अधिक बड़ा समय नहीं है। पार्टी की समीक्षा में ही यह बात सामने आई है कि पिछले विधानसभा चुनाव में उससे आम मतदाता तो नाराज हो ही गए थे पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी बढ़ गई थी जिसकी वजह से भी उसे इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा था। उस दौरान भाजपा के सरकार के द्वारा प्रदेश में अरबों रुपए के विकास कार्य होने का दावा किया जाता रहा, विकास की गंगा बह रही है ऐसा कहा जाता रहा, उसके बावजूद आम मतदाताओं ने उसे खारिज कर दिया, आसमान से जमीन पर बुरी तरह से पटक दिया, तो इसकी क्या वजह रही है इसे पार्टी के नेता आसानी से जानते और समझते हैं। लेकिन शायद पार्टी में अब भी सच और वास्तविक कारणों को स्वीकार करने से बचने की कोशिश की जा रही है।

ताजा समीकरण में भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ में फिलहाल जातिगत समीकरण के कार्ड पर खेलने को उतारू दिख रही है। पूरे देश के जो राजनीतिक हालात रहे हैं जिन वजहों से भाजपा आगे बढ़ी है उसमें पिछली परिस्थितियों को देखा जाए तो कहीं भी नहीं लगता कि जातिगत समीकरण का उसे कहीं कोई फायदा मिला है अथवा जातिगत समीकरण के आधार पर वह कहीं आगे बढ़ सकी है। छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ महीने पहले भाजपा, अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लोगों पर डोरे डालती नजर आई। राज्य में कुछ ऐसे कारण भी बने जिससे इस वर्ग के लोगों में राज्य सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ती दिख रही थी, जिससे, इस वर्ग पर डोरे डालना पार्टी को आसान लग रहा था। लेकिन पार्टी को अब पता नहीं कैसे लग रहा है कि पिछड़ा वर्ग को साधे बिना उसे फायदा नहीं मिल सकता। ऐसे में, पार्टी यहां वास्तव में क्षेत्रीय दलों की तरह जातिगत समीकरणों के मकड़जाल में उलझती दिख रही है। इसका आगे उसे कितना फायदा मिल पाएगा कहना मुश्किल है।पार्टी को संगठनात्मक तौर पर मजबूत करने तथा कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने लगातार नई रणनीति बनाई जा रही है लेकिन ऐसी रणनीति आगे चलकर कहीं ना कहीं अपने आप फेल,फ्लॉप हो जा रही है। इससे कहा जा सकता है कि पार्टी को मजबूत बनाने का जो ताना-बाना बुना जा रहा है उसमें कहीं ना कहीं कोई कमी जरूर है।

असल में छत्तीसगढ़ राज्य के पिछले 4 वर्षों के राजनीतिक परिदृश्य को देखा जाए तो यहां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच तू डाल डाल मैं पात पात का खेल लगातार चल रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में, कांग्रेस पार्टी सत्ता में आने के बाद भी राजनीतिक तौर पर लगातार आक्रामक बनी हुई है। सत्ताधारी दल कांग्रेस, यहां पग पग पर फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ाते हुए नजर आई है।  कांग्रेस पार्टी असल में यहां जिस तरह से कार्यक्रम बनाकर आगे बढ़ रही है उससे वह यहां विपक्षियों को कहीं भी हावी नहीं होने देना चाहती। यहां राजनीतिक गलियारे में हमेशा यह चर्चा रही है कि दूसरे मंत्रियों का भले कुछ भी काम हो वह किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं वह अलग बात है लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जो योजना बनाई है जिन योजनाओ पर प्राथमिकतापूर्वक काम आगे बढ़ाया है उससे भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे पर काफी आघात पहुंचा है। भाजपा के लोग दबे तले यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि कांग्रेस ने उसके तमाम एजेंडे को हथिया लिया है। भाजपा, गोवंश गौ माता की सुरक्षा की बड़ी बात करती रह गई, तो राज्य में सरकार ने इस दिशा में अपने इरादे साफ करते हुए पिछले 4 वर्षों के दौरान गांव-गांव में गौठान खोलकर  सिर्फ बात करने के बजाए काम करके भी दिखा दिया है और बता दिया है कि हिंदुत्व की बात करना सिर्फ किसी पार्टी का कोई राजनीतिक मुद्दा बस नहीं है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार हिंदुत्व के कई मुद्दों पर सिर्फ बात करने के बजाए उन मुद्दों को वास्तव में जमीन पर उतारती नजर आई है। छत्तीसगढ़ में तो जय श्रीराम का जय घोष भी भाजपा से छीनता नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कौशल्या माता के मंदिर के निर्माण कार्य को जिस तेजी से आगे बढ़ाया है और जन जन तक इस मुद्दे पर अपने इरादों को पहुंचाया है हिंदूवादी संगठन भी इसकी प्रशंसा करते नजर आए हैं। दूसरी बात है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तमाम निर्णय निर्णय लेने में कभी भी डलवा दी रुख अपनाते नजर नहीं आए हैं। वे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की भी तमाम मुद्दों पर प्रशंसा करते दिखे हैं। उन्होंने इससे यह स्पष्ट करने की कोशिश जरूर की है कि राजनीतिक मतभेद जरूर हो सकते हैं लेकिन वे देश के प्रधानमंत्री हैं तो उनका पूरा सम्मान किया जाना चाहिए। पाकिस्तान के मंत्रियों के प्रधानमंत्री श्री मोदी कर दिए गए तथाकथित विवादित मामलों के बारे में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ऐसे पाकिस्तानी मंत्रियों की तीखी आलोचना की और यहां तक कह दिया कि उन मंत्रियों के खिलाफ आक्रामक होकर विधि पूर्ण कार्रवाई की जानी चाहिए। राजनीतिक गलियारे में तो यहां तक कहा जा रहा है कि ऐसे मामलों में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में जो बात भाजपा के नेता भी कहने से बचते रहे हैं वह बात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कह दी। वे जब निर्विवाद तरीके से कहते हैं कि हमारे देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई भी अमर्यादित बयां नहीं दे सकता तो स्वभाविक रूप से उनकी ओर तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का सहज ही ध्यान खिंचा चला जाता है।

भाजपा पिछले 4 वर्षों के दौरान संगठनात्मक तौर पर स्वयं को मजबूत करने लगातार नई रणनीति पर काम करती दिख रही है परंतु हालात ऐसे बने हुए कि उसे कुछ महीनों के बाद पुरानी रणनीति को बदलना पड़ रहा है।किसी एक रणनीति पर आगे बढ़ते हुए संभवत उसे वह सफलता नहीं हासिल हो रही है जो कि उसे चाहिए। कहा जा रहा है कि अब ऐसे हालत में उसे पिछड़ा वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने का सुझा है। वैसे राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 15 वर्षों में भाजपा छत्तीसगढ़ में जो सरकार बनाने में सफल रही है उसमें यहां पिछड़े वर्ग का बड़ा योगदान रहा है। कुछ महीनों पहले अनुसूचित जाति वर्ग की राज्य सरकार से आरक्षण के मुद्दे पर नाराजगी बढ़ी दिखी थी तो भाजपा को लगा कि वह इस वर्ग के लोग आसानी से साध सकती है। यह माना भी जा रहा था कि ऐसा आसान भी हो सकता था, लेकिन लग रहा है कि भाजपा ने स्वयं ही इस रास्ते पर आगे बढ़ने का इरादा त्याग दिया। छत्तीसगढ़ में पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की बात की जाए तो इस वर्ग के मतदाता कभी भी किसी एक राजनीतिक दल से बंधे हुए नहीं दिखे हैं। यहां पिछड़ा वर्ग शिक्षित वर्ग रहा है जिसे आसानी से भ्रम जाल में फंसा लेना आसान भी नहीं है।असल में भाजपा को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसकी एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में पहचान है और सभी वर्ग के मतदाताओं का सहयोग मिलने पर ही उसे कभी भी उसे बड़ी जीत हासिल हुई है। जातिगत समीकरण के चक्कर में उसकी क्षेत्रीय दलों के जैसी हालत ना हो जाए और यहां उसे लगातार नुकसान ही ना उठाना पड़े। 

सिर पर फिर से विधानसभा चुनाव आ गए हैं और फिलहाल भाजपा ऐसे ही कशमकश में फंसी हुई दिख रही है। यह भी आशंका जाहिर की जा रही है कि कही वह अपने मूल कार्यक्रमों से भटककर सिर्फ कुछ वर्ग विशेष को साधने के चक्कर में फंस कर कहीं और नुकसान उठाने की स्थिति में ना पहुंचने लगे। फिलहाल उसके पुराने कार्यक्रमों में जिस तरह से तब्दीली आई है यह भी माना जा रहा है कि उसकी नई प्लानिंग भी बदल सकती है। लेकिन इस चक्कर में उसके विवादों में भी फंसने की आशंका है।

 


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