बिलासपुर, हसदेव अरण्य में आवंटित खदानों से कोयला निकालने के लिए राजस्थान सरकार ने अडानी की कंपनी के साथ जो उदारता बरती है वह किसी को भी ...
बिलासपुर, हसदेव अरण्य में आवंटित खदानों से कोयला निकालने के लिए राजस्थान सरकार ने अडानी की कंपनी के साथ जो उदारता बरती है वह किसी को भी हैरान कर सकता है। अनुबंध ऐसा किया गया है कि निकाले गए कोयले में से एक चौथाई से अधिक अडानी की कंपनी को खुद इस्तेमाल करने और बेचने के लिए मिल रहा है, वह भी मुफ्त में सन् 2021 में इस तरह से मुफ्त उठाया गया कोयला करीब 30 लाख टन है।
रेलवे की ओर से आरटीआई के तहत मांगे गए दस्तावेजों तथा राजस्थान सरकार के बिजली निगम और अडानी की कंपनी के साथ हुए अनुबंध की पड़ताल करने से यह जानकारी सामने आई है। रेलवे ने जानकारी दी है कि जनवरी 2021 से दिसंबर 2021 के बीच परसा केते माइंस से एक लाख 87 हजार 579 वैगन धुले हुए कोयले का परिवहन किया गया है । धुले हुए कोयले का परिवहन कोटा राजस्थान के पीसीएमसी साइडिंग में 82931 वैगन, केपीआरजे में 62928 वैगन, एटीपीबी में 38941 वैगन तथा जीटीपीएस साइडिंग में 4779 वैगन कोयले की सप्लाई की गई है। ये सभी बिजली संयंत्र राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के अधीन संयंत्र की साइडिंग हैं। पर इसी में रेलवे जानकारी देता है कि पांच और बिजली कंपनियों को परसा केते से कोयला गया है जो न तो राजस्थान में स्थित हैं न ही आरआरवीयूएनएल के अधीन है। इन कंपनियों में जैतहरी मध्य प्रदेश का एमबीपीजे, छत्तीसगढ़ का एमजीएमटी, बीईएफ, विमला इंफ्रास्ट्रक्चर तथा एएलपीएस साइडिंग शामिल है। इन कंपनियों को 49 हजार 229 वैगन कोयला रेलवे ने परसा केते माइंस से भेजा। रेलवे से मिली जानकारी यह भी बताती है कि यह सब रिजेक्ट कोयला है। इसका मतलब यह है कि परसा केते खदान से निकाले गए कोयले का करीब 26.6 प्रतिशत कोयला राजस्थान के बिजली संयंत्रों के लिए तो अनुपयोगी है, लेकिन उसी कोयले का इस्तेमाल छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के दूसरे निजी संयंत्रों ने किया और अपने संयंत्रों से बिजली पैदा की। इनमें सर्वाधिक वैगन 39 हजार 345 एमजीएमटी साइडिंग में भेजे गए। ये जीएमआर छत्तीसगढ़ पॉवर प्रोजेक्ट तिल्दा की रेलवे साइडिंग है, जिसे अडानी पॉवर ने अधिग्रहित किया है। इसके अलावा मध्यप्रदेश के निजी बिजली संयंत्र मोजरबियर को 7 हजार 484 वैगन कोयला भेजा गया है, जाहिर है कि बेचा गया। यह सभी जानकारी अधिवक्ता व आरटीआई कार्यकर्ता डीके सोनी को रेलवे ने दी है।
राजस्थान बिजली बोर्ड इस समय छत्तीसगढ़ में आवंटित नए खदानों को शुरू कराने के लिए उतावली है। परसा केते के एक्सटेंशन को तत्काल शुरू करना चाहता है। पर हैरानी है कि वह अपने मौजूदा परसा केते खदान का एक चौथाई से अधिक कोयले का वह इस्तेमाल नहीं कर रहा है, बल्कि उदारता बरतते हुए अडानी के हवाले कर रहा है।
हसदेव में नई खदानों की मंजूरी निरस्त करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव का कहना है कि आरआरवीयूएनएल के साथ किया गया अनुबंध अडानी समूह को एकतरफा फायदा पहुंचाने वाला है। रास्ता निकाला गया है कि ज्यादा से ज्यादा कोयला खराब निकले जिसे अडानी बेच सके। राजस्थान ने अनुबंध किया है कि 4000 कैलोरी प्रति किलोग्राम से नीचे के स्तर का कोयला उसे नहीं चाहिए। इससे नीचे के स्तर का कोयला हटाने, उठाने का काम अडानी कंपनी करेगा। जबकि देश के दूसरे पावर प्लांट इस ग्रेड का कोयला काम में ला रहे हैं। खुद छत्तीसगढ़ के सरकारी और निजी बिजली संयंत्रों में इस्तेमाल किया जाने वाले कोयले की औसत गुणवत्ता 3400 कैलोरी प्रति किलोग्राम है औसत का तात्पर्य यह है कि 3400 कैलोरी से भी कम स्तर का कोयला संयंत्रों को चलाने के काम आ जाता है। एसईसीएल के खदानों में ग्रेड एक से ग्रेड 17 तक का कोयला संयंत्रों को जाता है। सबसे नीचे का ग्रेड 2200 से 2400 कैलोरी प्रतिकिलो है। ऐसे में गुणवत्ता का ऊंचा मापदंड रखकर बाकी कोयला छोड़ देना, अडानी ग्रुप को अतिरिक्त लाभ पहुंचाने का रास्ता निकालने के अलावा कुछ नहीं है। श्रीवास्तव का आरोप है कि केंद्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारें अडानी हर तरह से फायदा पहुंचाने में लगी हुई है। राजस्थान जिस कोयले को खराब बताकर नहीं मंगा रहा है, खनन होने के कारण उसकी रायल्टी भी बिजली बोर्ड ही दे रहा है। यानि अडानी समूह के लिए यह कोयला पूरी तरह मुफ्त है।
कितने का कोयला मुफ्त मिला
रेलवे की ढुलाई के आंकड़े से पता चलता है कि खराब (रिजेक्टेड) कोयला 49 हजार 299 वैगन है। एक वैगन में औसत 60 टन कोयला आता है। इस तरह से एक एक साल में उठाया गया कोयला करीब 29 लाख 58 हजार टन है। रायल्टी, डीएमएफ की राशि, जीएसटी आदि को नहीं भी जोड़ते हैं तो एसईसीएल की दरों पर जाएं तो यह कोयला करीब 900 रुपये प्रति टन में उपलब्ध होता है। यदि इसकी कीमत लगाई जाए तो यह 266 करोड़ 22 लाख का कोयला होता है।
उल्लेखनीय है कि हसदेव अरण्य की जंगलों को कोयला खनन से बचाने के लिए वहां के प्रभावित आदिवासियों के अलावा देश और देश के बाहर पर्यावरण प्रेमी आंदोलन कर रहे हैं। राज्य सरकार ने केंद्र से खनन स्वीकृति निरस्त करने का अनुरोध केंद्र से किया है। जन विरोध को ही इसका कारण बताया गया है। दूसरी तरफ राजस्थान सरकार और खनन के लिए एमडीओ करने वाली अडानी की कंपनी नए खदानों को जल्द शुरू करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार दोनों पर दबाव बनाए हुई है। छत्तीसगढ़ सरकार के पत्र पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया भी आ चुकी है, जिसमें उसने खनन अनुमति निरस्त करने से इंकार कर दिया है। आंदोलनकारी राज्य सरकार से मांग कर रहे हैं वे अपने हिस्से के अधिकारों का इस्तेमाल कर आगे की प्रक्रिया पर रोक लगाए।