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गोधन न्याय योजना करती है आर्थिक-सामाजिक क्रांति का उद्घोष

  रायपुर गोधन न्याय योजना छत्तीसगढ़ में एक नई आर्थिक-सामाजिक क्रांति का उद्घोष करती नजर आती है। बहुत कम समय में इस योजना ने न केवल अपनी म...

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रायपुर

आर्थिक-सामाजिक क्रांति का उद्घोषगोधन न्याय योजना छत्तीसगढ़ में एक नई आर्थिक-सामाजिक क्रांति का उद्घोष करती नजर आती है। बहुत कम समय में इस योजना ने न केवल अपनी महत्ता और सार्थकता साबित की है, बल्कि समूचे देश का ध्यान आकर्षित किया है। 

गोधन न्याय योजना छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में नई सरकार बनने के तत्काल बाद से ही छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों और खेती-किसानी पर व्यापक रूप से जोर दिया गया । नरवा, गरवा, घुरूवा और बाड़ी जैसे योजना ने जल शक्ति, पशुओं की महत्ता, जैविक खाद और उसके माध्यम से खेती-किसानी को पर्यावरण के अनुकूल, अधिक उत्पादक और लाभकारी, पौष्टिकता लिए हुए स्वास्थ्यवर्धक खाद्यान्न उत्पादन की मुहिम शुरू हुई। इसकी केन्द्र बिंदु गौठान ने अपने बहुआयामी इन कार्यों को गति प्रदान की। इसी की अगली कड़ी हमें गोधन न्याय योजना के रूप में देखने को मिलती है, जिसमें गौ पालकों से 2 रूपए किलो में गोबर की खरीद की जाती है और हाल ही में राज्य शासन ने 4 रूपए लीटर की दर से गौमूत्र भी खरीदना शुरू किया गया है। 
सरसरी दृष्टि से यह एक छोटी सी योजना नजर आती है। लेकिन जब इसे दूरवर्ती समग्र नजरिए और इससे छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों तथा महिलाओं, भूमिहीन और गौपालक परिवारों के जीवन में पड़ रहे प्रभाव को देखा जाता है, तो हम इसके माध्यम से कौशल विकास, रोजगार सृजन, हानिकारक रासायनिक की जगह जैविक खेती को बढ़ावा देने, पर्यावरण तथा ऊर्जा संरक्षण जैसे व्यापक कार्यों को एक साथ होते देखते हैं।  
भारतीय दर्शन, परम्परा और मान्यता के अनुसार ’गौ’ को ’गौमाता’ के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है और इसमें सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से खेती-किसानी और ग्रामीण क्षेत्रों में मशीनीकरण जैसे विभिन्न कारणों ने ’गौ’ को एक तरह से हाशिये में लाकर उपेक्षित सा बना दिया था। विशेषकर दूध नहीं देने वाले गायांे को खुला छोड़ देने के कारण फसल बरबाद होती थी और उनके आवारा घुमने के कारण वे सड़क दुर्घटनों का कारक भी बनती थी। 
छत्तीसगढ़ सरकार ने 20 जुलाई 2020 को गोधन न्याय योजना का शुभारंभ किया। आज यह एक लोकप्रिय योजना बन चुकी है। इससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गोपालकों को आय का अतिरिक्त जरिया मिला है। अब तक प्रदेश में करीब 72 लाख क्ंिवटल गोबर की खरीदी की गई है और गोबर विक्रेताओं को 144 करोड़ रूपए की राशि का भुगतान किया गया है। इसी तरह दिनांक 8 अगस्त 2022 से गौमूत्र खरीदना प्रारंभ किया गया है। 
कम्पोस्ट क्रांति- योजना के तहत क्रय किए गए गोबर से छत्तीसगढ़ के हजारों गौठानों में महिला स्व सहायता समूहों द्वारा वर्मी कम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट खाद तथा गौमूत्र से जीवामृत और ब्रम्हास्त्र कीटनाशक तैयार किया जाता है। वर्मी कम्पोस्ट को सोसायटियों के माध्यम से 10 रूपए प्रति किलोग्राम की दर से विक्रय किया जाता है। इन प्रयासों ने महिलाओं को नये कौशल से रू-ब-रू कराया है और जैविक उपज के माध्यम से स्वस्थवर्धक पौष्टिक खाद्यान्न के लिए लोगों को एक बेहतरीन अवसर भी दिया है।  
इससे भी बड़ी बात है कि छत्तीसगढ़ के किसान हानिकारक दुष्प्रभाव देने वाले रासायनिक खाद को दरकिनार करते हुए कम्पोस्ट क्रांति की आहट ला रहे हैं। इसमें देश में आसन्न रासायनिक खाद संकट को हल करने में मदद मिल रही है। महिला समूहों द्वारा लगभग 15 लाख 28 हजार क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट और 5 लाख 8 हजार क्विंटल से अधिक सुपर कम्पोस्ट खाद और 18 हजार 935 क्ंिवटल सुपर कम्पोस्ट का निर्माण किया जा चुका है। 
गोबर से बिजली उत्पादन और प्राकृतिक पेंट बनाने की अभिनव पहल- छत्तीसगढ़ के गौठानों में गोबर से बिजली उत्पादन और प्राकृतिक पेंट बनाने की अभिनव पहल की गई है। गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने के लिए कुमारप्पा नेशनल पेपर इंस्टिट्यूट जयपुर, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय भारत सरकार के खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के मध्य एमओयू हो चुका है। रायपुर के नजदीक हीरापुर-जरवाय गौठान में गोबर से प्राकृतिक पेंट और पुट्टी का निर्माण किया जा रहा है।
आय और रोजगार के नये अवसर- गोधन न्याय योजना गांवों में आर्थिक सशक्तिकरण का माडल बनकर उभरी है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों विशेषकर महिलाओं और भूमिहीन परिवारों के लिए आय और रोजगार के नये अवसर उपलब्ध हुए हैं। गोबर बेचकर अतिरिक्त आय अर्जित करने वालों में 45.19 प्रतिशत महिलाएं हैं। लाभान्वितों में एक लाख 18 हजार 977 भूमिहीन परिवार भी शामिल है। 
एक बहुत बड़े नजरिए से यह ग्रामीण परिवेश के व्यापक क्षेत्रों को प्रभावित कर रही है। इस योजना ने एक बार फिर से महात्मा गांधी के ग्रामीण अर्थव्यवस्था के महत्व को रेखांकित किया है और इसके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और विकास के व्यापक कार्यों को बल मिला है।