छत्तीसगढ़ के बड़ी संख्या में किसान इस समय फौती उठाने के आवेदनों पर धीमी गति की कार्रवाई से जूझ रहे हैं। ऐसे किसानों को खाद बीज लोन जैसी सुव...
देश में दलहन व तिलहन का उत्पादन बढ़ाए जाने का सपना देखा जा रहा है। इन चीजों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की कल्पना की जा रही है। इसके लिए सभी प्रदेशों में निधि योजना शुरू की गई है। छत्तीसगढ़ में भी इस योजना पर काम शुरू हुआ है।दलहन व तिलहन के उत्पादन को बढ़ाकर इसके उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र के द्वारा राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श के बाद एक रोडमैप बनाया गया है। इस पर आगे चलते हुए निश्चित ही बहुत फायदा होने की उम्मीद की जा रही है। वास्तव में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ने से देश क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकेगा और इससे आयात पर खर्च होने वाली बड़ी मुद्रा भी बच सकेगी, जो देश में विकास के अन्य कार्यों में उपयोग हो सकती है। पूरे देश में दलहन और तिलहन का रकबा बढ़ाने के लिए क्षेत्रों की पहचान की गई है व नई किस्मों के अवरोध को भी पार कर लिया गया है।
माना जा रहा है कि ताजा परिस्थितियों में गेहूं व धान की खेती के बजाय दलहन-तिलहन की ओर फसल डायवर्सिफिकेशन समय की मांग है। इसके लिए राज्यों के मजबूत संकल्प की भी जरूरत है। किसानों को दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने (केवीके) के ज्ञान को हर किसान के दरवाजे तक पहुंचाने का भी प्रयास शुरू किया गया है। किसानों को भी दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने से होने वाले फायदे की बात समझ में आई है। परंतु विडंबना देखिए, अभी अच्छी बारिश हो रही है। खेतों में पानी भर गया है। ऐसे में कौन किसान यहां धान की अधिक से अधिक फसल नहीं लेना चाहेगा। किसानों को मानसून केसरी के देखते हुए लालच आ रहा है।अच्छी बारिश हो रही है तो धान का उत्पादन भी बहुत अधिक बढ़ने की संभावना है।और राज्य सरकार के द्वारा किसानों को धान के उत्पादन पर बोनस सहित अन्य कई फायदे दिए जा रहे हैं। धान की फसल लेना किसानों को फायदेमंद नजर आ रहा है।केंद्र सरकार ने भी इस साल धान के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है। यह सही है कि धान 20 से 25 में प्रति किलो तक बिक रहा है और दाल 100 से ₹120 प्रति किलो तक बिक रही है।ऐसे में दलहन तिलहन की फसल लेने से किसानों को अत्यधिक फायदा है। लेकिन किसान जल्दबाजी में धान की फसल लेकर ही फायदा कमाना चाहते हैं।परिस्थितियों को देखकर किसान तात्कालिक तौर पर अधिक फायदा कमाना चाहते हैं।
दलहन और तिलहन के उत्पादन को बढ़ा कर देश को इसके उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने केंद्र सरकार दलहन व तिलहन की नई किस्मों के अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों की आपूर्ति करने किसानों को mini kit निशुल्क उपलब्ध करा रही है। प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में सरकार के दूसरे कार्यकाल के दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य में केंद्र सरकार 300 करोड़ रूपए खर्च कर 13.51 लाख मिनी किट मुफ्त वितरित करने की योजना है। उम्मीद की जा रही है कि केंद्र व राज्यों ने जो संकल्प किया है, इसमें उत्साही व परिश्रमी किसानों के साथ मिलकर अवश्य ही सफल हासिल होगी।
हमारे परिश्रमी कृत संकल्पित किसानों की ताकत को ऐसी ताकत माना जाता है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी देश को अपने कंधों पर खड़ा रखने का माद्दा रखते हैं। कहा जाता है कि कृषि प्रधान हमारे देश में कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी ताकत है, यह बढ़ती रहे तो निश्चित रूप से देश की बुनियाद को और मजबूत होने से कोई रोक नहीं सकता। आज किसान के परिश्रम, वैज्ञानिकों के अनुसंधान व सरकार की कृषि हितैषी नीतियों का संयुक्त परिणाम है कि कृषि उत्पादन की दृष्टि से दुनिया में भारत पहले या दूसरे नंबर पर है, लेकिन हमें निर्यात और बढ़ाने की जरूरत है। खेती के विकास को लेकर समग्र, संतुलित व दूरगामी विचार एक साथ करना आवश्यक है। देश में खेती के प्रति रूचि व रकबा बनाए रखना व इसे बढ़ाना भी जरूरी है।
लेकिन कागजों पर किसानों के हित के लिए जो योजनाएं बनती है वह धरातल पर वास्तव में उतरती नहीं है।गरीब-छोटे किसानों की ताकत बढ़ाने के लिए कई योजनाएं लाने की बात की जाती है।लेकिन किसानों को अभी धान बीज लोन के लिए भटकते देखा जा रहा है। कई जगह से खबरें आ रही है कि कोरोना संकट के काल में जिन किसानों की मृत्यु हो गई है उनके परिवार के लोगों का खाते में नाम चढ़ाने में कई सारी दिक्कतें, अड़चने आ रही हैं।
छत्तीसगढ़ के कई जिलों से अभी फौती उठाने के आवेदनों पर धीमी गति से कार्रवाई होने की शिकायतें सामने आ रही है जिससे किसानों को धान की फसल लेने के लिए ही खाद बीज लेने में दिक्कत है आ रही है। दलहन तिलहन तो दूर की बात है, उन्हें धान की फसल के लिए भी खाद और बीज नहीं मिल रहे हैं। हालात ऐसे ही रहे,फौती उठाने के आवेदनों का निराकरण नहीं हो सका,तो बहुत सारे किसान इस बार संभूता धान की फसल भी नहीं ले सकेंगे। और ऐसे किसानों ने अन्यत्र कहीं से व्यवस्था कर बीज, खाद, लोन उठाकर धान की फसल ले भी ली तो उसे मंडियों में समर्थन पर देश पाना मिलना मुश्किल ही रहेगा। क्योंकि खाते में उसका नाम चढ़े बिना मंडियों में धान बेचने के लिए उसका registration हो पाना संभव नहीं है।
कोविड एवं अन्य मामलों में पिछले महीने के भीतर दुर्ग जिले में 300 से अधिक किसानों की मौत हुई है। मृत किसानों के परिजनों ने फौती उठाने के लिए आवेदन किया हैं। अभी उन्हें प्रक्रिया में देरी होने कारण भटकना पड़ रहा है।वैसे जिले के कलेक्टर ने ऐसे मामलों में प्रक्रिया अनुसार शीघ्रता शीघ्र हल निकालने को कहा है ताकि किसानों को खाद बीज लेने में किसी तरह की दिक्कत ना हो। लॉकडाउन की वजह से तहसीलों का कार्य प्रभावित हुआ है।
नामांतरण, पट्टे तथा त्रुटि सुधार संबंधी सभी आवेदनों पर प्रमुखता से कार्य करने तथा रजिस्ट्री प्रक्रिया को स्ट्रीमलाइन करने को कहा गया है। गिरदावरी का काम अभी शुरू होग।, गिरदावरी से आने वाले आंकड़े से खेती किसानी के बारे में अहम जानकारी प्रशासन को उपलब्ध होती है। रिकॉर्ड दुरुस्ती का काम भी बेहद अहम कार्य है।
कई बार कागजों में जो योजनाएं बनती है धरातल पर ऐसा हो नहीं पाता। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है। कृषि के क्षेत्र में यहां आगे बढ़ने की बहुत अधिक संभावना है। लेकिन पिछले 10-15 वर्षों के दौरान यहां कृषि भूमि को औद्योगिक, व्यापारिक, व्यवसाय के उपयोग के लिए बेचने का सिलसिला बढ़ गया है। किसान अपनी कृषि भूमि को बेच दे रहे हैं। उन्हें कृषि कार्य में अधिक फायदा नजर नहीं आता। जमीन बेच देने से उन्हें तात्कालिक तौर पर मोटी रकम मिल जाती है। हालांकि कृषि जमीन कृषि भूमि उनके हाथ से छिन जाती है।छत्तीसगढ़ दलहन और तिलहन का बड़ा उत्पादक प्रदेश बन सकता है। इस दिशा में किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए व्यावहारिक तौर पर जमीनी स्तर पर कदम उठाए जाने चाहिए। ज्यादातर योजनाएं किसानों तक पहुंच ही नहीं पाती। ऐसे ही हालात रहे तो सारी योजनाएं जहां है वहीं दम तोड़ देने वाली है।
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