रायपुर।
असल बात न्यूज़।।
00 विधि संवाददाता
अपराधिक षड्यंत्र रचकर छल पूर्वक दूसरे की जमीन को बेच देने के आरोपी को तीन साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है। न्यायालय ने आरोपी के अधिक उम्र की महिला होने को देखते हुए सजा सुनाई है। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी रायपुर पल्लव रघुवंशी के न्यायालय में यह सजा सुनाई है। न्यायालय में प्रकरण में 3 आरोपियों को दोषमुक्त घोषित कर दिया है। वही एक आरोपी अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैफरार है।
यह घटना 6 फरवरी 2009 की पूर्व और उसके आसपास की है। मामले में रायपुर के गोल बाजार थाना में भारतीय दंड संहिता की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 120 बी के तहत अपराध कायम किया गया था। अभियोजन के अनुसार प्रकरण के तथ्य इस प्रकार है कि प्रार्थीया श्रीमती मुक्ता राठौर की 62,पुजारी नगर टिकरापारा रायपुर पटवारी हल्का नंबर 114/ 45 के खसरा नंबर तीन/ चार का रकबा 0.016 हेक्टेयर 17 40 वर्गफुट की भूमि आरोपी श्री गणेशी बाई उम्र 60 वर्ष ने तहसील कार्यालय रायपुर से फर्जी ऋण पुस्तिका बनाकर अपने आप को फर्जी श्रीमती मुक्ता राठौर बताकर बिक्री कर दी। बैनामा विक्रय विलेख में पहचान कर्ता के रूप में आरोपी युसूफ अतहर फजली एवं श्री निवास राव ने हस्ताक्षर किया। वहीं इस बिक्री से मिली राशि को निकालने के लिए बैंक में खाता खुलवाने एवं ऋण पुस्तिका बनाने में आरोपी राजाराम साहू पर सहयोग करने का आरोप है जो कि घटना के बाद से फरार है। मामले में कुल 5 आरोपी बनाए गए।
न्यायालय में प्रकरण में विचारण एवम सुनवाई के दौरान तत्कालीन अतिरिक्त तहसीलदार पुलक भट्टाचार्य के बयान का भी परीक्षण किया जिसमें उन्होंने बताया कि उसके न्यायालय में डुप्लीकेट ऋण पुस्तिका प्राप्त करने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गया था परंतु इस आवेदन में आवेदक के हस्ताक्षर थे के बारे में उन्होंने जानकारी नहीं होना कहा।उन्होंने धोखाधड़ी के आधार पर डुप्लीकेट ऋण पुस्तिका जारी होने का कथन किया है तथा बताया कि डुप्लीकेट ऋण पुस्तिका को निरस्त करने कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
न्यायालय में प्रकरण में अंगुल शाखा रायपुर के प्रमाण पत्र को स्वीकार करने योग्य माना जिसमें आरोपी गणेशी बाई के बाएं हाथ के अंगूठे चिन्ह का उल्लेख किया गया है।
प्रकरण में बचाव पक्ष की ओर से मौखिक तर्क मैं यह बचाव लिया गया कि प्रार्थीगणों को वर्तमान प्रकरण में कोई आर्थिक स्थिति ही नहीं हुई है एवम इस कारण कोई अपराध प्रमाणित नहीं होता है पर न्यायालय ने माना कि छल के अपराध के लिए आरोपी द्वारा प्रवंचित व्यक्ति को कपटपूर्वक या बेईमानी से उत्प्रेरित करना जिससे कि प्रभावित होकर व्यक्ति कोई संपत्ति प्रदत्त कर दे या कोई कार्य या कोई लोप करें जिससे उसे शारीरिक, मानसिक ख्याति संबंधी या संपत्तिक नुकसान या अपहानि कारित हो या कारित करना संभव हो एवं इस प्रकार के छल के अपराध से प्रार्थी को संपातीक नुकसान या शारीरिक मानसिक या ख्याति के नुकसान को भी छल के अपराध में शामिल किया गया है। अपराध की पूर्णता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उत्प्रेरित व्यक्ति को वास्तविक नुकसान हो।
मामले में अभियोजन की ओर से एडीपीओ प्रकाश यादव ने पैरवी की।