रायपुर।
असल बात न्यूज़।।
00 विधि संवाददाता
बकरी व्यवसाय के लिए कंपनी में लुभावनी स्कीम का प्रचार प्रसार कर निवेशकों से करोड़ों रुपए जमा कराने और उसके बाद कंपनी को बंद कर राशि वापस नहीं करने के मामले में अभियुक्त को न्यायिक अभिरक्षा में व्यतीत की गई अवधि की सजा सुनाई गई है। आरोपी ने 3 वर्ष 6 माह 11 दिन की अवधि न्यायिक अभिरक्षा में बिताई है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रायपुर भूपेंद्र कुमार वासनीकर के न्यायालय ने यह सजा सुनाई है। प्रकरण में एक आरोपी को दोषमुक्त घोषित कर दिया गया है। प्रकरण में एक अन्य अभियुक्त के खिलाफ स्थाई गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है। वही एक अन्य अभियुक्त फरार है जिसके खिलाफ धारा 299 के तहत कार्रवाई की गई है।
इस जालसाजी के मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट 22 नवंबर 2013 को दर्ज कराई गई थी तथा यह पूरी घटना वर्ष 2008 से 2013 के बीच की है। आस्था गोट फार्मिंग का जगह-जगह कार्यक्रम रखा जाता था जिसमें एक बकरी पालने पर साल भर में 10 गुना बढ़ोतरी होने की जानकारी दी जाती थी तथा उससे होने वाले मुनाफे में से निवेशक रकम के अनुसार 2 गुना रकम देने का प्रलोभन दिया जाता था। निवेशकों को सूरत के बैंक के खाते का नंबर दिया गया था।पांच साल बाद जब पैसा वापस लेने का समय आया तो निवेशकों को यह कंपनी बंद मिली। जिन लोगों ने लाखों रुपए जमा किया था उन्हें कंपनी की ओर से तीन-चार साल में रकम दोगुना हो जाने का प्रलोभन दिया था। निवेशकों को रकम निवेश करने पर बॉन्ड पेपर दिए गए थे। कंपनी ने रकम जमा करने वाले एजेंटों को सिल्वर गोल्ड डबल गोल्ड और डायमंड पर्ल देने तथा उसमें महंगी कारें देने का भी प्रलोभन दिया था। कंपनी का करंट अकाउंट यहां रायपुर में एक्सिस बैंक रायपुर शाखा में खोला गया था जिसके ओपनिंग फार्म से पता चलता है कि उसे सबकाले संतोष व चौहान चंद्र शिवाजी के द्वारा आस्था गोट फार्मिंग इंडिया लिमिटेड अकाउंट कलेक्शन रायपुर के टाइटल से खोला गया था।
प्रकरण में आरोपी संतोष किशन सकपकडे उर्फ सकपकडे, चंद्र सिंह शिवाजी भाई चौहान उर्फ चंद्रेश व मुकेश केसरवानी के विरुद्ध धारा 420, 406, 120 बी तथा इनामी चिट एवं धन परिचालन स्कीम पाबंदी अधिनियम 1978 के धारा 3,4,5,6 के तहत अभियोग पत्र प्रस्तुत किया गया।
न्यायालय ने मामले में पाया कि उक्त कंपनी गैर वित्तीय कंपनी का व्यवसाय करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से पंजीकृत नहीं है। उसके द्वारा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अहमदाबाद गुजरात से कारवार के संचालन की भी कोई अनुमति नहीं ली गई है। कंपनी के द्वारा रायपुर, भिलाई में सेमिनार भी आयोजित किया जाता था जिससे भी कई लोगों ने प्रभावित होकर उक्त कंपनी में राशि निवेश किया। न्यायालय ने साक्षियों के बयान के आधार पर आरोपी चंद्र सिंह शिवाजी चौहान को कंपनी में डायरेक्टर के रूप में कार्य करना तथा आरोपी मुकेश केसरवानी को रायपुर शाखा प्रभारी एवं एजेंट के रूप में अभियोजित किया जाना प्रमाणित पाया।
नया गाना माना कि उक्त कंपनी के द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक या सेबी से अनुमति/पंजीयन के बिना ही बकरी पालन के नाम से रजिस्टार आफ कंपनीज से रजिस्टर करा कर विभिन्न स्कीमों से रकम को प्राप्त कर उक्त संपत्ति का बेईमानी पूर्वक दुर्विनियोग करते हुए अपराधिक न्यास किया गया। अभियोजन पक्ष,अभियुक्त शिवाजी चंद्र सिंह के विरुद्ध मामला संदेह से परे प्रमाणित करने में सफल रहा है।
आरोपी मुकेश केसरवानी को साक्ष्य के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए धारा 420 409 120b एवं इनामी चिटफंड धन परिचालन स्कीम पवन जी अधिनियम के अपराध से दोषमुक्त कर दिया गया। न्यायालय ने अपराध की प्रकृति तथा प्रकरण की परिचय को ध्यान में रखते हुए अभियुक्त चंद्रेश को धारा तीन व चार अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 का लाभ देना न्यायोचित नहीं माना। अभियुक्त को धारा 420 के अपराध में न्यायिक अभिरक्षा में व्यक्ति की गई अवधि तथा ₹1000 अर्थदंड से दंडित करने का फैसला सुनाया गया है।
प्रकरण में अभियोजन पक्ष की ओर से एडीपीओ पंकज सिंह केसर ने पैरवी की।