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चाकू की नोक पर व्यपहरण करने और दुष्कर्म के आरोपी को 20 साल सश्रम कारावास की सजा

  दुर्ग। असल बात न्यूज़।।       00  विधि संवाददाता   लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 एवम चाकू की नोक पर व्यपहरण करने के अपर...

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दुर्ग।

असल बात न्यूज़।।  

   00  विधि संवाददाता 

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 एवम चाकू की नोक पर व्यपहरण करने के अपराध में दोष सिद्ध पाए जाने पर अभियुक्त को 20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है। न्यायालय ने अपराध की गंभीरता को देखते हुए दंड देने में अभियुक्त के प्रति कोई सहानुभूति पूर्वक विचार करना उचित नहीं माना।अपर सत्र न्यायाधीश विशेष न्यायालय श्रीमती संगीता नवीन तिवारी के न्यायालय ने उक्त सजा सुनाई है। आरोपी ने पीड़िता को जान से मारने की धमकी देकर रात भर बंधक बनाकर रखा था। न्यायालय ने पीड़ित अभियोक्तरी के पुनर्वास के लिए क्षतिपूर्ति देने की भी अनुशंसा की है। 

यह घटना दुर्ग जिले के मोहन नगर थाना क्षेत्र के अंतर्गत 11 नवंबर 2021 की है जिसमें पीड़िता की बड़ी बहन के द्वारा दूसरे दिन मोहन नगर थाने में एफ आई आर  दर्ज कराई गई।अभियोजन के अनुसार प्रकरण के तथ्य इस प्रकार है कि  प्रार्थी के द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराई गई कि उसकी नाबालिग बहन 11 नवंबर 2021 को शाम को  मोबाइल रिचार्ज कराने बता कर घर से बाहर गई थी जो वापस नहीं लौटी।  आसपास एवं रिश्तेदारों में पता करने पर भी उसका पता नहीं चला। दूसरे दिन उसकी पीड़ित बहन ने ही फोन कर बताया कि उसको अभियुक्त चाकू की नोक पर मोटरसाइकिल पर बिठाकर उरला से राजनांदगांव में गया था और उसके साथ रात भर जान से मारने की धमकी देकर जबरदस्ती दुष्कर्म किया। 

प्रकरण में विचारण एवम सुनवाई के दौरान न्यायालय ने अभियुक्त के विरुद्ध आरोप को युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित पाया  कि अभियुक्त के द्वारा अवयस्क अभियोक्तरी को अयुक्त संभोग करने के आशय से उसके विधि पूर्ण संरक्षक उसके माता-पिता के संरक्षकता में से अवैधानिक रूप से उनकी सहमति के बिना उसे चाकू दिखाकर और प्रलोभन देकर उसका जबरदस्ती व्यपहरण किया और उसके साथ एक से अधिक बार बलातसंग एवं गुरुत्तर प्रवेशन लैंगिक हमला कारित किया गया। 

न्यायालय के समक्ष बचाव पक्ष की ओर से अभियोक्तरी के जन्मतिथि को कोई चुनौती नहीं दी गई। बचाव पक्ष के द्वारा इस आशय का कोई बचाव नहीं लिया गया कि अभियोक्तरी घटना दिनांक को अवयस्क बालिका नहीं थी। बचाव पक्ष की ओर से यह तर्क रखा गया कि अभियोक्तरी एवं अन्य अभियोजन साक्षियों के कथनों में गंभीर विसंगतियां एवं विलुप्तियां हैं जो कि उनके साक्ष्य की विश्वसनियता को  संदिग्ध बनाती हैं।

न्यायालय ने बचाव पक्ष के इस तर्क को स्वीकार योग्य नहीं माना। न्यायालय ने अभियुक्त को दोषी पाए जाने पर लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत 20 वर्ष का सश्रम कारावास और ₹5हजार रुपए अर्थदंड तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366 376,(2) (ढ ),342, 506 बी एवं आयुध अधिनियम की धारा 25(1) ख के अपराध में  क्रमशः 3 वर्ष, 1 माह और 1 वर्ष  की सजा सुनाई है। 


प्रकरण में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक संतोष कसार  ने पैरवी की। 


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