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बहुचर्चित रावलमल जैन हत्याकांड मामले में खुले न्यायालय में दिनभर चला अंतिम मौखिक तर्क, बचाव पक्ष ने दिए ढेर सारे तर्क, कई साक्षयों और दस्तावेजों के फर्जी होने का दिया तर्क, सुनवाई के दौरान खचाखच भरा रहा न्यायालय

  दुर्ग,भिलाई । असल बात न्यूज़।।         00  विधि संवाददाता  दुर्ग जिले के बहुचर्चित हत्याकांड रावलमल जैन हत्याकांड मामले में आगे क्या हो रह...

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 दुर्ग,भिलाई ।

असल बात न्यूज़।।  

      00  विधि संवाददाता 

दुर्ग जिले के बहुचर्चित हत्याकांड रावलमल जैन हत्याकांड मामले में आगे क्या हो रहा है को जानने को लेकर जिले ही नहीं पूरे प्रदेश के लाखों जागरूक लोगों की नजर लगी हुई है। विशेष न्यायाधीश शैलेश कुमार तिवारी के न्यायालय में अभी इस मामले में अंतिम मौखिक तर्क चल रहा है जिसमें पिछले लगातार दो दिनों से सुनवाई चल रही है। न्यायालय में आज दिन भर मामले में सुनवाई चली,तर्क दिया गया। प्रकरण में बचाव पक्ष के अधिवक्ता की ओर से टी टाइम के पहले और उसके बाद आरोपी के बचाव में ढेर सारे तर्क दिए गए हैं और तमाम दस्तावेजों और साक्ष्यों को उन्होंने फर्जी होने का संदेह जारी किया है। पूरी सुनवाई के दौरान न्यायालय कक्ष में पूर्णता पिन ड्रॉप साइलेंस के जैसी स्थिति थी। न्यायालय के द्वारा एक एक तर्क को बारीकी से सुना गया। बचाव पक्ष के अधिवक्ता द्वारा बताया गया कि मामले में जंग लगा ताला प्रस्तुत नहीं किया गया है, उसकी फोटो का पंचनामा बनाया गया है तो न्यायालय ने गंभीरतापूर्वक पूछा कि ताला पेश किया गया है कि नहीं।

बचाव पक्ष के अधिवक्ता के द्वारा न्यायालय में बचाव में मौखिक तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा गया कि रावलमल जैन जी देश के प्रतिष्ठित सामाजिक व्यक्ति थे। इस पूरे मामले की ओर पूरे देश की नजर लगी हुई है। उनके अंतिम संस्कार के कार्यक्रम में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह भी शामिल हुए थे। ऐसा लगता है कि पुलिस अनुसंधान में कई सारी खामियां रह गई है। इसमें जो तमाम साक्ष्य और दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं ये सब कहीं ना कहीं फर्जी कार्रवाई की पोल खोलते हैं। ऐसे में आरोपी संदीप संदेह का लाभ प्राप्त करने का अधिकारी है। विधि के अनुसार आरोपी को ही संदेह का लाभ दिया जाता है।

बचाव पक्ष अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि मृतक रावल मल जैन के शरीर में जो गोली रह गई थी वह नहीं मिली। लेकिन तीन गोलियां तो मिली तो क्या उसका बायोलॉजिकल परीक्षण कराया गया। इन गोलियों का बायोलॉजिकल परीक्षण क्यों नहीं कराया गया। उन्होंने सवाल खड़े करते हुए कहा कि वह गोलियां आई कहां से जो बंदूक में भरी गई। जो गोलियां चलाई गई। इसमें कोई जांच क्यों नहीं की गई। कहीं इसमें फर्जी गोलियां और फर्जी पिस्टल तो नहीं दिखाया जा रहा है। गोलियों को सीरम वैज्ञानिक के पास परीक्षण के लिए भेजा जाना चाहिए था। बयान में पूछे जाने पर कि सीरम परीक्षण के लिए कि नहीं भेजा गया तो जवाब दिया गया है कि जरूरत नहीं समझी गई। ऐसे में एफ आई आर, मर्ग, शव, पंचनामा, घटनास्थल पंचनामा की कार्रवाई संदिग्ध लगना स्वाभाविक है। उन्होंने पुलिस अनुसंधान के दौरान घटनास्थल से कपड़ों की जो जब्ती बनाई गई है उस पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि जो जब्ती बनाई गई है वे महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं। लेकिन इसमें भी कई तरह का संदेह पैदा होता है। कपड़ों की जो जब्ती बनाई गई उसका सील बंद पैकेट डॉक्टर के पास भेजते हैं और उसे डॉक्टर को ही खोलना होता है लेकिन डॉक्टर ने कहा है कि उसके पास पहुंचे कपड़े सीलबंद नहीं थे। ऐसे में या तो उसे सील बंद नहीं किया गया अथवा उसका सील खोल दिया गया। यह सील कुर्ता बदल देने के लिए खोला गया या फिर उसे सील करने में लापरवाही की गई। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि चिकित्सक के पास वह दाग लगा कपड़ा पहुंचता है तो वह बदल जाता है। वह आसमानी रंग चेक गोलदार गले का कुर्ता था जिसमें पेट के पास और जेब में खून के दाग लगे थे और डॉक्टर के पास जो कुर्ता गया वह लाइट ब्लू कलर का सफेद कुर्ता हो गया। मतलब जप्तशुदा कपड़ा डॉक्टर के पास भेजा ही नहीं गया। सील कर कुर्ता भेजा जाए और चिकित्सक के पास सील खुला हुआ पहुंचे और उसमें कुर्ता बदल जाए यह कैसे संभव सकता है। यह सब तथ्य परिस्थितियों की चैन की श्रृंखला को तोड़ते हैं। 

उन्होंने अभियोग पत्र के विभिन्न पैराओं में दिए गए साक्ष्यों पर आपत्तियों के साथ अपना तर्क रखते हुए कहा कि यह स्वीकार किया गया है कि घटनास्थल पर मिट्टी मिली हैं। मृतक रावल मल जैन के निवास से जहां उनका मृत शरीर मिला था वहां मिट्टी मिली है। मतलब जिस तरह के ट्रैक पर चला जाता है वैसे ही मिट्टी के अंश पाया जाना लिख दिया गया। इस सबसे फैब्रिकेटेड डॉक्यूमेंट की रचना होने की पुष्टि होती है। वह जगह घटनास्थल इतनी भी चिकनी नहीं थी कि वहां से कोई गिर पड़े। 

बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने महत्वपूर्ण तर्क देते हुए कहा कि आरोपी संदीप जैन के नाखूनों  का परीक्षण नहीं कराया गया। मृतक रावलमाल जैन के शरीर पर चोटों के निशान थे। इसमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह चोटे एंटी मार्टम थी कि ये पोस्टमार्टम के बाद की है। मृत्यु के बाद लाश को उठाते रखते समय भी उसे चोटे आ सकती हैं। आरोपी संदीप जैन के नाखूनों का परीक्षण होता तो उसे पता चल जाता कि उससे मृतक को कहीं चोटे पहुंचाई गई है कि नहीं। मारने वाले पर भी चोट के निशान जरूर आएंगे। यह इश्क ना हो जाए कि संदीप जैन के नाखून पर कोई निशान नहीं मिला धब्बा नही पाने की पुष्टि न हो सके इसलिए उसके नाखून के कतरनों का परीक्षण नहीं कराया गया। सबूतों को सामने नहीं आने दिया गया है।  यहां चोट का इन्वेस्टिगेशन ना कर एकतरफा कार्रवाई की गई लग रही है। ऐसे में कहीं ना कहीं लगता है कि साक्षय का संकलन नहीं किया गया है अपितु मामले में साक्ष्य गढ़ा गया है। 

बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने इस दौरान मामले में प्रस्तुत किए गए जंग लगे ताले की फोटो पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि जंग लगा ताला फोटो में दिखाई दे रहा है, उसका पंचनामा बनाया गया है। ताले में फोटो में जंग का निशान स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा है। ताले की जब्ती नहीं बनाई गई है। उन्होंने संदेह जाहिर किया कि साक्षय स्पष्ट ना हो सके इसलिए ऐसा किया गया है। 

न्यायालय ने प्रकरण में ताला को साक्षी के तौर पर प्रस्तुत ना करने को संज्ञान में लिया है और न्यायालय के द्वारा यह प्रश्न पूछा गया कि ताला पेश किया गया है कि नहीं। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि साक्ष्य नष्ट हो जाएगा, कह कर पेश नहीं किया गया है। उन्होंने संदेह जाहिर करते हुए कहा कि जाली की फोटो में ताला बदलकर पेश किया गया है। ताला को जब्ती बनाया जाता तो उसके अधिक सुरक्षित रहने की संभावना थी ना कि उसे खुला छोड़ दिया गया है तो वह अधिक सुरक्षित रहेगा। इससे ऐसा लग रहा है कि प्रकरण में साक्षी संकलित करने में बिल्कुल गंभीरता नहीं है। उन्होंने आशंका जाहिर की कि कहीं ताला ही ना बदल दिया गया हो। वहां से कोई आता जाता नहीं, सिर्फ यह दिखाने के लिए जंग लगा ताला दिखाया जा रहा है। 

बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने मामले में डॉग एक्सपर्ट के द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि डाल एक्सपर्ट को किस तहरीर से बुलाया गया, वह तहरीर संलग्न नहीं है। जो बयान प्रस्तुत किए गए हैं उसमें आई ओ और डॉग एक्सपर्ट दोनों के बयान अलग-अलग हैं। इसमें किसे सही माना जाए, यह सवाल खड़ा हो गया है। डॉग एक्सपर्ट कहता है कि प्रतिवेदन उसके कहने पर नहीं लिखा गया है। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि इसमें किसी को भी गवाह नहीं बनाया गया है। डॉग ने संदीप को देखकर भौंका था तो किसी को गवाह नहीं बनाया गया। इससे यह सवाल उठता है कि किसने देखा कि कुत्ते ने संदीप को देखकर भौंका और उसकी तरफ गया। कई साक्षयों को देखकर लगता है कि विधिक नियमों को ताक पर रखकर कार्रवाई की गई। 

उन्होंने इस पर भी सवाल उठाया कि जो सामान जप्त किए गए उसकी वैज्ञानिक अधिकारी के द्वारा जांच की गई है अथवा नहीं। सामानों की जब्ती दस, 10:30 बजे तक की गई तो वैज्ञानिक अधिकारी 11:30 बजे तक वहां आते हैं। जब वैज्ञानिक अधिकारी बाद में आए तो परीक्षण तो नहीं कर सकते। 

 सुनवाई के दौरान आज वहां न्यायालय कक्ष में पिन ड्रॉप साइलेंस के जैसी स्थिति थी। तर्को को सुनने बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं के साथ आम लोग भी उपस्थित थे और एक एक तर्क को बारीकी से सुना जा रहा था। लंच के बाद जब सुनवाई शुरू हुई तो न्यायालय कक्ष में और भीड़ बढ़ गई थी। न्यायालय को सुनने कुछ रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी भी पहुंचे थे।