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कमियों को स्वीकार करने का साहस और विश्वास

"मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सच को स्वीकार करने का साहस दिखाया है। उन्होंने स्वीकार किया है कि स्कूल शिक्षा विभाग में उम्मीद के अनुरूप का...

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"मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सच को स्वीकार करने का साहस दिखाया है। उन्होंने स्वीकार किया है कि स्कूल शिक्षा विभाग में उम्मीद के अनुरूप कार्यों में सुधार नहीं हुआ है। यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है वरन सच को स्वीकार कर संभवता उसे सुधारने की कोशिश है।"



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 अशोक त्रिपाठी, संपादक 


आमतौर पर सत्तारूढ़ जनप्रतिनिधियों के द्वारा शासन-प्रशासन की खामियों को स्वीकार करने से बचने की कोशिश की जाती है।  जो समझ बन गई है उसी पर चलने की कोशिश की जाती है। सब जानते हैं कि गलत है, गलत हो रहा है, उसमे सुधार की जरूरत है,तो उस कमियों गलती को सुधारने के बजाय उसे ही सही बताने की कोशिश पर उतारू, आमादा दिखते हैं । सत्तारूढ़ जनप्रतिनिधि और राजनीतिक दल तो कतई नहीं चाहते कि ऐसी कमियों, की कोई जानकारी आम लोगों तक पहुंच जाए। ऐसी जानकारियां सार्वजनिक हो सके। उसमें गोलमाल करने पूरी ताकत झोंक दी जाती है। सत्तारूढ़ लोग सिर्फ यही बताना चाहते हैं कि उनके राज में सब अच्छा हो रहा है। कहीं कोई कमियां नहीं है। कोई बुराईया नहीं पनप रही है। जो योजनाएं हैं, उनका पूरा फायदा आम जनता को जस का तस मिल रहा है। कोई गड़बड़ी नहीं है।सचमुच, कमी होने के सच को स्वीकार करना  आसान काम है भी नहीं। सभी को लगता है कि वह सत्ता में है, शासन-प्रशासन चला रहे हैं तो शासन की कमियां जनता के सामने आएगी, तो उनकी ही थू -थू होगी। लोग उन्हें,कोसेंगे। सरकार को जिल्लत का सामना करना पड़ेगा।सच को स्वीकार न करने के ऐसे वातावरण के बीच छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सच को स्वीकार करने का साहस दिखाया है। उन्होंने शासकीय व्यवस्थाओं की कमियों को सार्वजनिक भी किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बारे में जो लोग करीब से जानते हैं वे जानते हैं कि वे  कितने सरल, जुझारू और संघर्षशील है तथा जमीनी हकीकत से किसने अधिक वाकिफ है। प्रदेश के ऐसे मुखिया जो अपने बिना छुपाए, सार्वजनिक तौर पर  शासन प्रशासन के जिम्मेदार लोगों को चेता रहे हैं कि व्यवस्था में उनकी यह कमियां रह गई है। अपेक्षाकृत सुधार नहीं हो रहा है। तो छत्तीसगढ़ में  आगे ऐसी कमियों के नियंत्रित होने तथा धरातल पर ठोस वास्तविक काम होने की उम्मीद की जानी चाहिए। लोगों को महसूस हो सकता है कि छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक व्यवस्थाओ में इस तरह से परिवर्तन हो रहा है।

 सब जानते हैं कि यह  मानसिकता तेजी से बढ़ गई है कि शासन-प्रशासन की कमियां उजागर होंगी लोगों तक इसके बारे में जानकारी पहुंचेगी तो विपक्ष को सरकार को कठघरे में खड़ा करने का बड़ा मौका मिल जाएगा। सरकार विपक्ष को कोसने और टोकने का कोई मौका नहीं देना चाहती, और सत्तारूढ़ लोगों के किए से तो बिल्कुल नहीं। सच्चाई को स्वीकार करने से इसलिए भी बचने की कोशिश की जाती है। यह सब किसी एक राजनीतिक दल अथवा एक सत्तारूढ़ जनप्रतिनिधियों, अथवा किसी एक राज्य पर ही  लागू नहीं होता। यह आम परंपरा, स्वीकारोक्ति भी बन गई है कि  शासन प्रशासन की खामियों कमियों को ज्यादातर दबाने, छुपाने की  पूरी कोशिश की जाती है, पूरी ताकत लगा दी जाती है कि ये खामियां -कमियां सार्वजनिक ना हो सके। आम लोगों तक इसकी खबर ना पहुंच सके। शासन पशासन के कार्यों में कमियां हैं तो उसे वही दफ्तर में कागजों में दबे रहने दिया जाए। और यह तो बिना बताए ही सबको मालूम होगा कि जो कुर्सी पर बैठे लोग हैं है ऐसी कमियों- खामियों को छुपाने में कंधे से कंधा मिलाकर पूरा साथ देने मैं काफी आगे निकल जाते हैं अथवा कहा जाए कि सब कुछ किया धरा उनका ही होता है तो इसे दबाने कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सच्चाई को सामने लाया है। उन्होंने शासन प्रशासन में बैठे जिम्मेदार लोगों को बताया है कि उनकी कमियां क्या है और उसे सुधार करना भी जरूरी है। पिछले 3 वर्षों से अपने मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल के दौरान वे प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार पर लगातार जोर दे रहे हैं। ऐसे में बालोद जिले के गुंडरदेही विकासखंड में उन्होंने स्कूली शिक्षा में अव्यवस्था और अनियमितताये की बातें उनके सामने आए तो उन्हें जरूर पीड़ा हुई होगी। प्रदेश का मुखिया कोई योजना बनाकर काम करता है उन व्यवस्थाओं को हर जगह पहुंचाना चाहता है और उस पर अमल होता ना दिखे तो उसे पीड़ा पहुंचना, मन आहत होना स्वभाविक है। और वह जब ऐसे जनहित के मुद्दों पर नाराजगी दिखा रहे हैं तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इसमें सुधार की कोशिश  के लिए कदम उठाया जा सके तो छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए भी काफी बेहतर होगा।

 मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का व्यावहारिक अनुभव, उनके लगातार काम आया है। गांव- गांव में संपर्क से उन्होंने समस्याओं को करीब से देखा है। प्रशासनजनित समस्याएं, अव्यवस्था किस तरह से धीरे-धीरे बढ़कर नासूर बन जाती हैं, उन्होंने इसे भी समझा है।उनकी पार्टी राज्य में जब विपक्ष में रही थी तब उसमें वे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे हैं।इस दौरान भी उन्होंने, शासकीय कामों में कैसी कमियां होती है इसे बेहतर समझा है।संभवत उन्होंने यह भी समझा है कि ऐसी कमियों को लगातार छुपाने दबाने की कोशिश ही होती रहेगी इसे, सार्वजनिक करने से बचते रहेंगे, तो यह सिर्फ किसी को बचाने की कोशिश भर होकर रह जाएगी। इससे इन समस्याओं का निराकरण नहीं होने वाला। उन्होंने राज्य के एक अत्यंत ग्रामीण कृषि बाहुल्य इलाके गुंडरदेही विकासखंड में अधिकारियों की समीक्षा बैठक में यह स्वीकार किया है कि शिक्षा के स्तर में  अपेक्षाकृत कम सुधार हुआ है। राज्य के मुखिया के द्वारा सरकारी कामों की चौतरफा तारीफ की जाती है। ऐसा बताया,दिखाया जाता है कि पूरा "राम राज्य"यहीं आ गया है। इसके उलट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वहां उस सच को स्वीकार किया जो कमी वहां बनी हुई है, उसे बिना लाग लपेट स्वीकार किया। राज्य का मुखिया योजनाओं में कमी की बात को स्वीकार करता है, योजनाओं का फायदा राज्य की जनता तक नहीं पहुंचने की बात करता है, इस सच्चाई को स्वीकार करता है तो इससे यह भी समझ लिया जा सकता है कि उस मुखिया के मन के एक कोने में कहीं ना कहीं ऐसी कमियों से लड़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति है। उन कमियों से वह मुंह मोड़ने को तैयार नहीं है। 

छत्तीसगढ़ राज्य में निश्चित रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है। इन क्षेत्रों में अभी तक जो कुछ किया गया है उसे बिल्कुल पर्याप्त नहीं  माना जा सकता है। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की तनखा बहुत अधिक होती है लेकिन यहां बिल्कुल सच है कि सरकारी स्कूल कहीं भी प्राइवेट स्कूलों का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। गांव-गांव में जिनके पास साधन है,जो फीस चुकाने वे सक्षम है वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही दाखिला दिला रहे हैं। यह आम धारणा बन गई है कि सक्षम नहीं होने की वजह से ही कोई परिवार अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भर्ती करा देता है अथवा प्राइवेट स्कूल उसकी पहुंच से बहुत दूर है। यह भी सच्चाई है कि सरकारी स्कूलों की ऐसी हालत हमेशा नहीं रही है। एक समय था कि "सरकारी स्कूलों "पर गर्व किया जाता था। हम सब गर्व करते थे।बड़ी बोर्ड परीक्षा में सरकारी स्कूल के छात्र ऐसे रिजल्ट लाते थे कि वह बड़ी मिसाल बन जाती रही थी। उस समय गुरुजी की आज के जैसी मोटी तनखा नहीं होती थी। आधुनिकता की दौड़ में सरकारी स्कूल पिछड़ गए। आदर्श गुरु जी की कमी हो गई। कहीं ऐसे हालात नहीं रहे गए हैं कि कोई छात्र अपने गुरु जी को "मॉडल" समझता है और उनका अनुकरण करना चाहता है। बच्चों और अभिभावकों को यह समझ में आया कि सरकारी स्कूल के गुरुजी ऊंचाइयों को छूने में पीछे होते जा रहे हैं जोकि बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए बहुत जरूरी है।

 पिछले तीन वर्षों में राज्य में स्कूली शिक्षा की हालत को सुधारने बड़ा काम किया गया है। इसमें राज्य सरकार की शिक्षा नीति की भी बड़ी भूमिका रही है।यह समझा गया है कि अब अंग्रेजी को अपनाने से इनकार नहीं किया जा सकता बल्कि यह छात्राओं के उज्जवल भविष्य बनाने के लिए बहुत जरूरी हो गई है। छत्तीसगढ़ के बच्चे बड़े "कॉन्पिटिटिव एग्जाम" में इसीलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उनकी अंग्रेजी कमजोर है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी अपने भाषणों में  छत्तीसगढ़ के  बच्चों की इन कमियों का उल्लेख करते हैं। कमजोर अंग्रेजी की समस्या को दूर करने के लिए स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय खोलने की शुरुआत की गई है। बच्चों के भविष्य को चमकदार बनाने का बीड़ा उठाया गया है। इसमें यह भी मंशा है कि यह सुनाएं सिर्फ शहरी इलाकों में नहीं रहेंगे बल्कि गांवों में सुधार पहुंचाए जाएंगे। गांव गांव में स्कूलों की हालत सुधारी जाएगी। सरकार जब इस अनुकरणीय मंशा के साथ काम कर रही हो उस समय व्यवस्था में खामियां नजर आए, कार्यों में शिकायत मिले तो जो इन योजनाओं को लेकर आगे बढ़ रहा है इस पर अच्छे परिणाम देखना चाहता है उसका नाराज होना स्वाभाविक है।

राज्य के मुखिया भूपेश बघेल ने वर्तमान परिस्थितियों को समझते हुए गुंडरदेही विकासखंड में स्कूल शिक्षा के संबंध में बड़ी बातें कही है। उन्होंने सच को स्वीकार करने का साहस दिखाते हुए कहा है कि - शिक्षा के स्तर में  अपेक्षाकृत कम सुधार आने स्थिति ठीक नहीं है।-स्कूल कॉलेजों की नियमित जांच हो।उन्होंने जिला मुख्यालय में नहीं रहने वाले अधिकारियों को मुख्यालय में अनिवार्य रूप से रहने के सख्त निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री श्री बघेल निश्चित तौर पर आधुनिक शिक्षा की अच्छाइयों को समझ रहे है और वे इस बात पर हर जगह जोर दे रहे हैं कि स्वामी आत्मानंद स्कूल में वे सभी सुविधाएं जो एक अच्छे स्कूल में होनी चाहिए। इसे भी समझा जाना चाहिए कि वह स्कूली बच्चों को अंग्रेजी में बोलने के लिए प्रेरित करते हुए नजर आ रहे हैं। भेंट मुलाकात अभियान में वे गांव गांव पहुंच रहे हैं तो  गांव के बच्चों से वे कहते हैं कि वे छत्तीसगढ़ी में पूछ लूंगा और आप अंग्रेजी भी जवाब देना। एक मुख्यमंत्री, का गांव के बच्चों से इस तरह से बातचीत करना उसका उत्साह वर्धन करना निश्चित रूप से यह एक नई शुरुआत है और  आने वाले समय में इसके काफी सकारात्मक परिणाम नजर आ सकते हैं।

छत्तीसगढ़ को लूटने -खसोटने की दृष्टि से ना देखा जाए तो यह सच्चाई है कि छत्तीसगढ़ हर मामले में काफी संपन्न राज्य है। यह खनिज संसाधनों के मामले में प्रचुर संपन्न है, तो वहीं वन के मामले में भी यह संपन्न राज्य है । यहां पानी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। यहां कोयला में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है जिस से कई राज्यों को इसके बारे में जानकार जलन होती है। छत्तीसगढ़ राज्य के लोग कितने सीधे सरल और परिश्रमी है इसकी हर जगा चर्चा होती है।वास्तव मे  हमें अपने बुनियादी शिक्षा को मजबूत करना अत्यंत अनिवार्य हो गया है।  उसके स्तर को सुधारना होगा। उसकी गुणवत्ता को उच्च स्तरीय बनाने के प्रयास करने होंगे। 

राज्य का मुखिया शासन प्रशासन की कमियों को सामने लाएं उसे सार्वजनिक करें तो कई लोगों को अचरज हो सकता है। अब जमाना बदल रहा है सिर्फ विकास की बात करने से कुछ नहीं होने वाला। हकीकत में क्या हो रहा है उसे समझना होगा और शिकार करना होगा। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने संभवत इसकी शुरुआत की है। उन्होंने संभवत कार्यपालिका को यह संदेश देने की कोशिश की है कि काम सही करने होंगे। प्रत्येक खामियां- दोष दबाया नहीं जा सकता। कहा गया है कि जो वास्तविकताओं से मुंह नहीं मोड़ते, किस्मत भी उनका साथ देती है। छत्तीसगढ़ बदल रहा है। नया जज्बा दिख रहा है। सच के साथ आगे बढ़ने का साहस दिख रहा है।   जब गुणवत्ता को समझा जा रहा है, कमियों को स्वीकार किया जा रहा है तो इन्हे दूर कर  शिक्षा के क्षेत्र में  सरल, शांत,हरे भरे छत्तीसगढ़ राज्य को नई ऊंचाइयों की ओर जाने की नई शुरुआत होने की उम्मीद की जानी चाहिए।