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जातीय आधार पर वर्गों को साधने की कयावद

  नई दिल्ली, छत्तीसगढ़। असल बात न्यूज़।।                00 न्यूज़ विश्लेषण   देश में जातीय वर्गों को राजनीतिक तौर पर अपनी और साधने की नई कोश...

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 नई दिल्ली, छत्तीसगढ़।

असल बात न्यूज़।। 

             00 न्यूज़ विश्लेषण  

देश में जातीय वर्गों को राजनीतिक तौर पर अपनी और साधने की नई कोशिश होती नजर आ रही है। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और लग रहा है कि राजनीतिक तौर पर देश में अपने आप को मजबूत करने के लिए भाजपा अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को अपनी और आकर्षित करने के लिए अधिक मेहनत करने में भिड़ी हुई है। कभी अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग को कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक माना जाता रहा है लेकिन पिछले वर्षों में जिस तरह से राजनीतिक समीकरण बदले हैं यह वर्ग अब किसी का वोट बैंक नजर नहीं आता। वैसे तो संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2022 के प्रारूप को मंजूरी देने में राजनीति कहीं नहीं दिखती और इसे आदिवासी वर्ग को सुविधा देने में  व्यवस्था में जो कमियां थी उसे दूर करने का प्रयास कहा जा सकता है लेकिन पूरे देश भर में एक सामाजिक वातावरण को प्रभावित करने वाले इस मुद्दे का राजनीतिक तौर पर कोई असर नहीं होगा ऐसा कहना ज्यादा जल्दबाजी हो जाएगी। स्वाभाविक तौर पर यह मुद्दा नई चेतना जगा सकता है। इस संशोधन विधायक के लागू हो जाने से देशभर के लगभग सभी राज्यों में बड़ी आबादी को नया फायदा मिलने वाला है तो आगे चलकर इस का नया राजनीतिक असर देखना अवश्यंभावी है। केंद्र सरकार ने आज असम सरकार और आठ आदिवासी समूहों के प्रतिनिधियों के बीच ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किया है।समझौते में आदिवासी समूहों की सामाजिक, सांस्कृतिक, जातीय और भाषाई पहचान की रक्षा के साथ-साथ उन्हें और मजबूत करने का प्रावधान किया गया है। इन घटनाक्रमों से लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी अब अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को अपनी तरफ आकर्षित करने का रुख अख्तियार  कर रही है तो वहीं कुछ राज्यों में कांग्रेस, पिछड़ा वर्ग को सम्मोहित करने में लगी हुई है। 

राजनीति में मुद्दे समय के अनुसार बदलते रहते हैं। राजनीतिक पार्टियां नए मुद्दों में नई संभावनाओ की  तलाश में हमेशा झूठी रहती हैं। सामाजिक ढांचे में यह हर जगह माना जाता है कि एक ही मुद्दा हमेशा असरकारक नहीं रह सकता। मुद्दों के साथ राजनीतिक दलों को वोटों के ध्रुवीकरण के लिए लगातार चिंतन करने की जरूरत होती है। आदिवासी बहुल इलाके पिछले वर्षों में चरमपंथ की चपेट में आ गए नजर आते हैं जिसके बाद वहां हिंसा बढ़ गई और इस हिंसा में हजारों लोगों की जान भी चली गई। कहा जाता है कि संचार की कमी और हितों के टकराव के कारण, विभिन्न समूहों ने हथियार उठा लिए, जिसके कारण इन समूहों और राज्य सरकारों और केंद्रीय सुरक्षा बलों के बीच हुई मुठभेड़ में हजारों लोगों की जान चली गई ।यह हालात देश के सिर्फ एक दो राज्यों के नहीं है बल्कि बहुत-बहुत राज्य में ऐसे ही हालात हो गए हैं। इन इलाकों में हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि ऐसे हिंसा के माहौल में राजनीतिक दलों के लिए वहां अपना प्रचार प्रसार कर पाना भी मुश्किल दिखता है। क्योंकि तनाव और हिंसा के बीच वहां पहुंचने पर  हिंसा के शिकार होने का भी डर  भी हमेशा बना रहता है।अब पूर्वोत्तर को शांतिपूर्ण और समृद्ध बनाने  क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति को बढ़ावा देने और विकसित करने, सभी विवादों को सुलझाने, शांति स्थापित करने और विकास में तेजी लाने के लिए कदम उठाए हैं। 

कहा जा रहा है कि अभी केंद्र सरकार राज्य और के बीच जो समझौता हुआ है वह शांतिपूर्ण और समृद्ध पूर्वोत्तर के विजन के अनुरूप यह समझौता उत्तर-पूर्व को समृद्ध तथा 2025 तक पूर्वी अतिवाद मुक्त  बनाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने इस अवसर कहा कि गृह मंत्रालय ने पूर्वोत्तर को शांतिपूर्ण और समृद्ध बनाने के लिए क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति को बढ़ावा देने और विकसित करने, सभी विवादों को सुलझाने, शांति स्थापित करने और विकास में तेजी लाने के लिए कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूर्वोत्तर को शांतिपूर्ण और विकसित बनाने की दिशा में कई प्रयास किए गए हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण पूर्वोत्तर में शांति स्थापित करना है।  असम के आदिवासी समूहों के 1182 कार्यकर्ता हथियार डाल कर मुख्यधारा से जुड़ गए हैं ।केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि 2024 से पहले पूर्वोत्तर राज्यों के बीच सभी सीमा विवाद और सशस्त्र समूहों से जुड़े सभी विवादों का समाधान किया जाएगा.

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पिछले तीन वर्षों में, भारत सरकार, असम सरकार और पूर्वोत्तर की अन्य सरकारों ने आपस में और विभिन्न चरमपंथी समूहों के साथ कई समझौते किए हैं। 2019 में NLFT समझौता, 2020 में BRU-REANG और बोडो समझौता, 2021 में कार्बी आंगलोंग समझौता और 2022 में असम-मेघालय अंतर-राज्य सीमा समझौता, जिसने दोनों राज्यों के बीच लगभग 65 प्रतिशत सीमा विवादों को हल किया। 

श्री अमित शाह ने कहा कि भारत सरकार और असम सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि आज असम के आदिवासी समूहों के साथ हुए समझौते की शर्तों का पूरी तरह से पालन किया जाए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का रिकॉर्ड है कि उसने अब तक हस्ताक्षरित सभी समझौतों के तहत किए गए वादों में से 93 प्रतिशत को पूरा किया है और परिणामस्वरूप, आज के समझौते के अनुसार आदिवासी समूहों की राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक आकांक्षाओं को पूरा करना भारत सरकार और असम सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि समझौते में आदिवासी समूहों की सामाजिक, सांस्कृतिक, जातीय और भाषाई पहचान की रक्षा के साथ-साथ उन्हें और मजबूत करने का प्रावधान किया गया है. समझौता चाय बागानों के त्वरित और केंद्रित विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक जनजातीय कल्याण और विकास परिषद की स्थापना का भी प्रावधान करता है। श्री शाह ने कहा कि समझौते में सशस्त्र संवर्गों के पुनर्वास और पुनर्वास और चाय बागान श्रमिकों के कल्याण के उपायों हेतु 1000 करोड़ रुपये का विशेष विकास पैकेज काभी प्रावधान है। 

यह जो त्रिपक्षीय समझौता हुआ है उसमें असम में आदिवासियों और चाय बागान श्रमिकों के दशकों पुराने संकट को समाप्त करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं।वहां समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले समूहों में बीसीएफ, एसीएमए, एएनएलए, एपीए, एसटीएफ, एएनएलए (एफजी), बीसीएफ (बीटी) और एसीएमए (एफजी) शामिल हैं।ऐसे ही मिलती जुलती समस्याएं  कई राज्यों में हैं और लग रहा है कि केंद्र सरकार इन राज्यों में भी चरमपंथी हिंसा से निपटने की नई योजना ला सकती है।केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पूर्वोत्तर की शांति और समृद्धि के लिए उठाए गए कई कदमों पर विश्वास व्यक्त करते हुए 2014 से अब तक लगभग 8,000 विद्रोही हथियार डाल कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ चुके हैं। वर्ष 2020 में पिछले दो दशकों में सबसे कम उग्रवाद की घटनाएं दर्ज की गईं। 2014 की तुलना में 2021 में उग्रवाद की घटनाओं में 74 प्रतिशत की कमी आई है। इसी अवधि में सुरक्षा बलों के हताहतों की संख्या में 60 प्रतिशत और नागरिक हताहतों की संख्या में 89 प्रतिशत की कमी आई है।

समझौते में एक आदिवासी कल्याण और विकास परिषद की स्थापना की कल्पना की गई है। असम की राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक आकांक्षाओं को पूरा करने के उद्देश्य से; सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय पहचान की रक्षा, संरक्षण और बढ़ावा देना; और पूरे राज्य में आदिवासी बसे हुए गांवों/क्षेत्रों के साथ-साथ चाय बागानों का त्वरित और केंद्रित विकास सुनिश्चित करना भी समझौते का उद्देश्य है। यह समझौता सशस्त्र संवर्गों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन तथा चाय बागान श्रमिकों के कल्याण के उपायों का भी प्रावधान करता है। आदिवासी आबादी वाले गांवों/क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पांच साल की अवधि में 1000 करोड़ रुपये (भारत सरकार और असम सरकार द्वारा 500 करोड़ रुपये) का विशेष विकास पैकेज प्रदान किया जाएगा। जब यह समझौता किया गया उस समय असम के मुख्यमंत्री श्री शरमा के साथ मंत्रिमंडल के तमाम सदस्य और असम के बड़ी संख्या में आम लोग उपस्थित थे।

शांतिपूर्ण और समृद्ध उत्तर पूर्व के के दृष्टिकोण के अनुरूप, यह समझौता 2025 तक उत्तर-पूर्व को उग्रवाद मुक्त बनाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर कहा जा रहा है।भारत सरकार ने पूर्वोत्तर को चरमपंथ से मुक्त बनाने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। आजादी के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में विकास की गति थम गई थी जो लंबे समय से उपेक्षा और राजनीति के शिकार थे और हिंसक अलगाववाद अपने पैर पसार रहा था, एक्ट ईस्ट पॉलिसी के साथ विकास और शांति की एक नई गाथा लिखी जा रही है। यह सच्चाई है कि चरमपंथ गोवा से जैसे कि राज्य प्रभावित है और इसमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है। छत्तीसगढ़ राज्य में गीत चरमपंथी हिंसा से निपटने के लिए की गई कार्रवाई में हजारों  लोगों की जान चली गई है जिसमें बड़ी संख्या में आम लोग भी शामिल है। छत्तीसगढ़ भी इस समस्या से निपटने का इंतजार कर रहा है। हो सकता है कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ के लिए भी केंद्र की ओर से कोई बड़ा पैकेज घोषित हो जाए। छत्तीसगढ़ राज्य में आगामी डेढ़ वर्षों के बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तो ऐसी संभावनाएं और बढ़ जाती है। यह काम इस सोच के साथ भी हो सकता है कि इससे आने वाले समय में एक वर्ग को राजनीतिक तौर पर साधने का काम शायद बन जाए।




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