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अनिश्चितकालीन हड़ताल: 17 अगस्त को रायपुर में जुटेंगे प्रदेशभर के स्कूल सफाई कर्मचारी, दिल्ली में धरना-प्रदर्शन की भी तैयारी

  रायपुर. छत्तीसगढ़ के 43,301 अंशकालिन स्कूल सफाई कर्मचारी सदस्य प्रांतीय आह्वान पर 15 जून 2025 से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं. 2 जून को छत...

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 रायपुर. छत्तीसगढ़ के 43,301 अंशकालिन स्कूल सफाई कर्मचारी सदस्य प्रांतीय आह्वान पर 15 जून 2025 से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं. 2 जून को छत्तीसगढ़ के समस्त ब्लॉक मुख्यालय, 6 जून को जिला मुख्यालय और 10 जून को प्रदेश मुख्यालय हड़ताल नया रायपुर तूता धरना स्थल पर किया गया. मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, स्कूल शिक्षा सचिव और लोक शिक्षण संचालनालय के संचालक के नाम से ज्ञापन सौपा गया. 


इसके बाद 16 जुलाई को कर्मचारी मुख्यमंत्री निवास घेराव के लिए निकले, जहां पुलिस प्रशासन से धक्का-मुक्की भी हुई. देर रात प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से सूचना मिली कि 17 जुलाई को स्कूल शिक्षा सचिव के साथ बैठक होगी, जिसके बाद रोड जाम खत्म किया गया. 17 जुलाई को मंत्रालय में हुई इस बैठक में शिक्षा सचिव ने कर्मचारियों की मांगें मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का आश्वासन दिया, लेकिन एक माह बीत जाने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.



स्थिति जस की तस रहने पर 12 अगस्त को कर्मचारियों ने बस्तर के केशकाल घाटी में जाम लगाया, फिर भी कोई सुनवाई नहीं हुई. अब 17 अगस्त को नया रायपुर के तूता धरना स्थल पर प्रदेश पदाधिकारियों और सभी जिला अध्यक्षों की बैठक बुलाई गई है, जिसमें दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देने की रणनीति तैयार किया जाएगा. 



संघ के प्रदेश मीडिया प्रभारी प्रदीप वर्मा ने बताया कि अधिकांश स्कूलों में भृत्य, चपरासी नहीं होने के कारण सफाई कर्मचारी ही सभी अतिरिक्त कार्य करते हैं. पूरे दिन स्कूल में काम करने के बाद भी उन्हें मात्र 3,000 से 3,500 रुपए मासिक मानदेय मिलता है, जो मौजूदा महंगाई में परिवार चलाने के लिए बेहद कम है. संघ की मांग है कि पूर्णकालिक कलेक्टर दर पर वेतन भुगतान किया जाए और युक्ति युक्तकरण के तहत कर्मचारियों को यथावत काम पर रखा जाए. 


हड़ताल का असर बच्चों पर



संघ का कहना है कि अनिश्चितकालीन हड़ताल का सीधा असर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था और बच्चों पर पड़ रहा है. कई स्कूलों में साफ-सफाई पूरी तरह ठप है. जहां भृत्य या चपरासी नहीं हैं, वहां बच्चों को मजबूरी में झाड़ू-पोछा जैसा काम करना पड़ रहा है. किताबों की जगह हाथों में झाड़ू थमा देना न केवल उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि उनके आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचाता है.