Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Pages

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

ब्रेकिंग :

latest

Breaking News

Automatic Slideshow


आजकल अचानक हो रहे मौतों का, कोविड और उससे बचाव हेतु लगाए गए टीकों, से कोई संबंध नहीं,आईसीएमआर और एम्स के व्यापक अध्ययनों का निष्कर्ष,जीवनशैली और पहले से मौजूद स्थितियां इन मौतों के पीछे के प्रमुख कारक

    अशोक त्रिपाठी , नई दिल्ली में . असल बात न्यूज़.  कोविड आया और उसके बाद पिछले कुछ वर्षों के दौरान, अचानक हार्ट अटैक आ जाने, यार किसी दूसर...

Also Read

 



 अशोक त्रिपाठी,नई दिल्ली में .
असल बात न्यूज़. 

कोविड आया और उसके बाद पिछले कुछ वर्षों के दौरान, अचानक हार्ट अटैक आ जाने, यार किसी दूसरी बीमारी के हमले से अचानक लोगों की मौते हो जाने की घटनाएं काफी बढ़ गई है. इस तरह से मौते शुरू हुई है तो,लोगों में इसको लेकर कई तरह शंका-कुशंकाएं फ़ैल गई. यह बातें भी हवा में उड़नी शुरू हुई कि कॉविड के कुप्रभाव की वजह से ऐसी अचानक मौते होनी शुरू हो गई है. यह भी कहा जाने लगा कि कोविड सीधे हमला नहीं कर रहा है तब भी उसके दुष्प्रभाव से लोगों की जाने जा रही हैं.अब यह बातें सामने आ रहे हैं कि आजकल अचानक हो रहे मौतों का, कोविड और उससे बचाव हेतु लगाए गए टीकों, से कोई संबंध नहीं है.आईसीएमआर और एम्स के व्यापक अध्ययनों से यह निष्कर्ष सामने आया है. अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि जीवनशैली और पहले से मौजूद स्थितियां इन मौतों के पीछे के प्रमुख कारक है. कई एजेंसियों के माध्यम से अचानक हुई मौतों के मामले की जांच की गई है। इन अध्ययनों से पता चला है कि कोविड-19 टीकाकरण और देश में अचानक हुई मौतों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के किए गए अध्ययनों से पुष्टि हुई है कि भारत में कोविड-19 के टीके सुरक्षित और प्रभावी हैं और इनमें गंभीर दुष्प्रभावों के मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं। यह निष्कर्ष भी निकला है कि हृदय संबंधी कारणों के चलते अचानक मौत के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें आनुवंशिकी, जीवनशैली, पहले से मौजूद बीमारियां और कोविड के बाद की जटिलताएं शामिल हैं।

आईसीएमआर और एनसीडीसी, खासकर 18 से 45 साल के बीच के लोगों में अचानक होने वाली मौतों के पीछे के कारणों को समझने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। इसका पता लगाने के लिए, अलग-अलग शोध दृष्टिकोणों के जरिए दो अध्ययन किए गए हैं- पहला, पिछले डेटा पर आधारित और दूसरा, वर्तमान की जांच पर आधारित। आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी (एनआईई) द्वारा किए गए पहले अध्ययन का शीर्षक था ‘भारत में 18-45 वर्ष की आयु के वयस्कों में अचानक होने वाली मौतों से जुड़े कारक-एक बहुकेंद्रित अध्ययन।’ यह अध्ययन मई से अगस्त 2023 तक 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 47 क्षेत्रीय अस्पतालों में किया गया था। इसमें ऐसे व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित किया गया जो स्वस्थ दिख रहे थे लेकिन अक्टूबर 2021 और मार्च 2023 के बीच अचानक उनकी मृत्यु हो गई। निष्कर्षों से साबित हुआ है कि कोविड-19 टीकाकरण से युवा वयस्कों में अचानक होने वाली मौतों का जोखिम नहीं बढ़ता है।

दूसरा अध्ययन का शीर्षक है ‘युवाओं में अचानक होने वाली मौतों के कारणों का पता लगाना’। इसे वर्तमान में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली द्वारा आईसीएमआर के वित्त पोषण व सहयोग से किया जा रहा है। इस अध्ययन का उद्देश्य वयस्कों में अचानक होने वाली मौतों के सामान्य कारणों का पता लगाना है। अध्ययन के आंकड़ों के शुरुआती विश्लेषण से पता चलता है कि दिल का दौरा या मायोकार्डियल इंफार्क्शन (एमआई) इस आयु वर्ग में अचानक मौत का प्रमुख कारण बना हुआ है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले वर्षों की तुलना में इन कारणों के पैटर्न में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया है। ऐसे अधिकांश अस्पष्टीकृत मौतों के मामलों में, इनके संभावित कारण के रूप में आनुवंशिक उत्परिवर्तन की पहचान की गई है। अध्ययन पूरा होने के बाद अंतिम परिणाम साझा किए जाएंगे।

ये दो अध्ययन भारत में युवा वयस्कों में अचानक होने वाली अस्पष्टीकृत मौतों के बारे में अधिक व्यापक जानकारी प्रदान करते हैं। यह भी पता चला है कि कोविड-19 टीकाकरण से जोखिम नहीं बढ़ता है जबकि अंतर्निहित स्वास्थ्य समस्याओं, आनुवंशिक प्रवृत्ति और जोखिम भरी जीवनशैली अचानक मौतों में भूमिका निभाती है।

वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने दोहराया है कि कोविड टीकाकरण को अचानक होने वाली मौतों से जोड़ने वाले बयान झूठे और भ्रामक हैं और वैज्ञानिक आम सहमति से समर्थित नहीं हैं। निर्णायक सबूतों के बिना अटकलें लगाने वाले दावों से उन टीकों में जनता का भरोसा कम होने का जोखिम है, जिसने महामारी के दौरान लाखों लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसी निराधार रिपोर्ट और दावे देश में वैक्सीन को लेकर लोगों में संकोच बढ़ा सकते हैं जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

भारत सरकार की ओर से कहा गया है कि देश,अपने नागरिकों के कल्याण के लिए साक्ष्य-आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए प्रतिबद्ध है।