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अधिवक्ता को हाईकोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करना पड़ा भारी अवमानना नोटिस जारी कर किया तलब…

   बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एकलपीठ के आदेश पर टिप्पणी करने वाले एक अधिवक्ता को अवमानना नोटिस जारी किया. चीफ जस्टिस के डिवीजन बेंच ने इस मामले ...

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  बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एकलपीठ के आदेश पर टिप्पणी करने वाले एक अधिवक्ता को अवमानना नोटिस जारी किया. चीफ जस्टिस के डिवीजन बेंच ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए अधिवक्ता को 18 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से हाईकोर्ट तलब किया है. श्यामल मलिक बनाम ममता दास मामले में जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय की एकल पीठ द्वारा दिए गए आदेश में की गई टिप्पणी के आधार पर यह याचिका डिवीजन बेंच में पंजीकृत की. उक्त याचिका एक विस्तृत आदेश द्वारा खारिज कर दी गई, हालांकि, एकल न्यायाधीश ने उसी दिन और आदेश पारित किया था. जिसमें सैमसन सैमुअल मसीह याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. निर्मल शुक्ला तथा प्रतिवादियों के अधिवक्ता वरुण वत्स की इस मामले में अंतिम दलीलें सुनीं गईं और आदेश का ‘ऑपरेटिव पैरा’ पारित कर मामला खारिज कर दिया. इस न्यायालय ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी कि इससे पहले पारिवारिक न्यायालय के अधिकार क्षेत्र की कमी का मुद्दा डब्ल्यू पी 227 संख्या 31/ 2024 में उठाया गया था, और इसे दिनांक 8 अप्रैल 2024 के आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया था. वह आदेश अंतिम बहस के दौरान इस न्यायालय के समक्ष रखा गया था. कोर्ट के बाद याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सैमसन मसीह ने कहा मुझे पता था कि मुझे इस पीठ से न्याय नहीं मिलेगा. इस कथन के अवमाननापूर्ण प्रतीत होने पर इसे उचित आदेश के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया गया. इसके अनुसार गत 10 जुलाई को, प्रशासनिक पक्ष से मामला चीफ जस्टिस के समक्ष प्रस्तुत किया गया और उन्होंने रजिस्ट्री को नियमों के अनुसार अवमानना याचिका दर्ज करने का निर्देश दिया. चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विभुदत्त गुरु की डीबी ने इस मामले में सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि रिट याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट सैमसन सैमुअल मसीह ने वर्तमान न्यायाधीश के विरुद्ध खुली अदालत में अपमानजनक टिप्पणी की है, जो एक ऐसे अधिवक्ता के लिए अनुचित है, जो न केवल अपने मुवक्किल के प्रति उत्तरदायी है, बल्कि न्यायालय का एक अधिकारी होने के नाते, नियमों और पेशेवर नैतिकता से भी उतना ही बंधा हुआ है. अधिवक्ता द्वारा कहे गए शब्द अस्वीकार्य हैं और न्यायालय की छवि को धूमिल करते हैं.