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 देश के कई राज्यों जैसे की तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में भाषा को लेकर कुछ न कुछ विवाद चल ही रहा है। इन राज्यों में हिंदी के बजाय क्षेत्रीय भाषा को प्राथमिकता देने की मांग उठ रही है। तमिलनाडु में तो स्टालिन सरकार केंद्र के खिलाफ हिन्दी भाषा को लेकर खुलकर विरोध मे उतार आई है। भाषा का यह विवाद अब इन राज्यों की सीमाओं को पार करते हुए अब पश्चिम बंगाल में भी पहुंच गया है। यहां भाषा विवाद ऐसे समय शुरू हुआ है जब अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य में विरोध पश्चिम बंगाल सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी और उर्दू को मान्यता प्राप्त भाषा के रूप में अधिसूचित किए जाने को लेकर हो रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यहां पर बांग्ला भाषा को प्रमुखता दी जानी चाहिए। पश्चिम बंगाल सिविल सेवा परीक्षा (WBCS) के लिए हिंदी और उर्दू को मान्यता प्राप्त भाषा के रूप में अधिसूचित किए जाने के ममता बनर्जी सरकार के आदेश के विरोध में ‘बांग्ला पोक्खो’ ने रविवार को कोलकाता में रैली निकाली। ‘बांग्ला पोक्खो’ बंगाल समर्थकों का एक ग्रुप है। संगठन के महासचिव गार्गा चट्टोपाध्याय ने कहा, “हम मांग करते हैं कि अन्य राज्यों की तर्ज पर बंगाली को WBCS परीक्षा में अनिवार्य भाषा बनाई जाए।


PCS परीक्षा में अनिवार्य हो बंगाली भाषा


उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, “अगर महाराष्ट्र में राज्य सिविल सेवा परीक्षाओं में बैठने के लिए मराठी भाषा जानना अनिवार्य है, उत्तर प्रदेश और बिहार में सिविल सेवा परीक्षाओं में पेपर लिखने के लिए हिंदी जानना जरूरी है, तो पश्चिम बंगाल में WBCS प्रत्याशियों को बंगाली नहीं जानने के बावजूद क्यों बच जाना चाहिए?” ‘बांग्ला पोक्खो’ की ओर से निकाली गई रैली रवींद्र सदन एक्साइड क्रॉसिंग से शुरू हुई और हाजरा मोड़ पर खत्म हुई।

बंगाली भाषा के समर्थन में बड़े आंदोलन की चेतावनी देते हुए चट्टोपाध्याय ने कहा कि अगर राज्य सरकार WBCS परीक्षा में 300 अंकों के बंगाली भाषा के पेपर को पास करना अनिवार्य बनाने को लेकर अधिसूचना जारी नहीं करती है, तो अगले साल 2026 से पहले एक बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा। बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि यह मामला आगे बढ़ सकता है।