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मुझे मुफ़्त में कोई भी चीज़ लेने की आदत नहीं है.......... मुझे चुनौतियां पसंद हैं; संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करना प्राथमिक जिम्मेदारी - उपराष्ट्रपति

  राष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे गरिमापूर्ण और संवैधानिक पदों पर टिप्पणियाँ चिंतन और मनन का विषय- उपराष्ट्रपति सबसे खतरनाक चुनौती वह है जो अपनो...

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राष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे गरिमापूर्ण और संवैधानिक पदों पर टिप्पणियाँ चिंतन और मनन का विषय- उपराष्ट्रपति


सबसे खतरनाक चुनौती वह है जो अपनों से मिलती है, जिसकी हम चर्चा नहीं कर सकते- उपराष्ट्रपति

 नई दिल्ली .
असल बात न्यूज़.

उपराष्ट्र्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि, “ मुझे चुनौतियाँ पसंद हैं और संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है। इसमें कोई कोताही स्वीकार नहीं की जा सकती।” उन्होंने कहा कि कोई अपराध आम जानमानस को झंझकोरता है तो उस पर पर्दा नहीं डाला जा सकता. अपराध का समाधान कानून के अनुसार वही होना चाहिए.


“थोड़ी देर पहले मुझे कहा, 'आपको भी मुफ़्त में [पुस्तक] नहीं मिलेगी।' महामहिम राज्यपाल आनंदीबेन पटेल जी, मुझे मुफ़्त में कोई भी चीज़ लेने की आदत नहीं है.......... सबसे खतरनाक चुनौती वह है, जो अपनों से मिलती है, जिसकी हम चर्चा नहीं कर सकते…..जो चुनौती अपनों से मिलती है, जिसका तार्किक आधार नहीं है, जिसका राष्ट्र विकास से संबंध नहीं है, जो राज-काज से जुड़ी हुई है। आप ही नहीं, मैं भी बहुत शिकार हूं, महामहिम राज्यपाल, इन चुनौतियों का मैं स्वयं  शिकार हूं, भुक्तभोगी हूं। पर हमारे सामने एक बहुत बड़ी ताकत है और हमारी ताकत है हमारा दर्शन और जिन्होंने हमें कह रखा है, जब भी कोई संकट आए, वेद की तरफ ध्यान दो, गीता, रामायण, महाभारत की तरफ ध्यान दो “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” जब भी चुनौती सामने आए, चुनौतियां आएगी। चुनौतियां ऐसी आएंगी कि आप विवशता में पड़ जाते हो और सोचते हो, दीवारों के भी कान हैं। तो उस चुनौती की चर्चा खुद को भी नहीं करते हो पर कभी भी कर्तव्य पथ से अलग नहीं हटना है”, उन्होंने आगे कहा।

लखनऊ में आज माननीय राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल की पुस्तक ‘चुनौतियां मुझे पसंद है’ के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि, “ लोग कई बार कहते हैं कि जनता की याददाश्त कमज़ोर होती है और सोचते हैं कि समय के साथ सब बातें भुला दी जाएंगी। लेकिन ऐसा होता नहीं है। क्या हम इमरजेंसी को भूल गए हैं? बहुत समय बीत गया है, लेकिन इमरजेंसी की काली छाया आज भी हमें दिखाई देती है। यह भारतीय इतिहास का सबसे अंधकारमय काल था, जब लोगों को बिना कारण जेल में डाल दिया गया, न्यायपालिका तक पहुंच बाधित कर दी गई थी। मौलिक अधिकारों का नामोनिशान नहीं रहा, लाखों लोग जेलों में डाल दिए गए। हम इसे नहीं भूले हैं। उसी तरह हाल ही में जो पीड़ादायक घटना घटी है, मैं यह मानता हूं — और मेरा यह दृढ़ विश्वास है — कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि हर व्यक्ति तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक वह अपराधी सिद्ध न हो जाए। लोकतंत्र में निर्दोषता की एक विशेष महत्ता होती है। लेकिन कोई भी अपराध हो, उसका समाधान कानून के अनुसार ही होना चाहिए। और यदि कोई अपराध आम जनमानस को झकझोरता है, तो उस पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। मैंने इस बात को पूरी स्पष्टता से कहा है। कुछ लोगों ने मुझसे पूछा कि आप इस विषय पर इतने बेबाक क्यों हैं? मुझे बहुत प्रेरणा मिली महामहिम राज्यपाल की पुस्तक से। और मैंने यह स्पष्ट किया है कि मुझे चुनौतियाँ पसंद हैं और संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है। इसमें कोई कोताही स्वीकार नहीं की जा सकती।”

संवैधानिक पदों पर हुई टिप्पणियों के प्रति गहरी चिंता ज़ाहिर करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “ हमारे संविधान में दो पद सर्वोच्च माने गए हैं — एक है भारत के राष्ट्रपति का, और दूसरा राज्यपाल का। और माननीय मुख्यमंत्री जी, वे इसलिए सर्वोच्च हैं क्योंकि जो शपथ आपने ली है, जो शपथ मैंने ली है, जो शपथ सांसद, मंत्री, विधायक या किसी भी न्यायाधीश ने ली है — वह शपथ होती है: मैं संविधान का पालन करूँगा। लेकिन द्रौपदी मुर्मू जी (राष्ट्रपति) और आनंदीबेन पटेल जी (राज्यपाल) की शपथ इससे अलग है। उनकी शपथ होती है: "मैं संविधान की रक्षा करूँगा, उसका संरक्षण और बचाव करूँगा।" और दूसरी शपथ होती है: "मैं जनता की सेवा करूंगा" — राष्ट्रपति के लिए भारत की जनता की और राज्यपाल के लिए संबंधित राज्य की जनता की। ऐसे गरिमापूर्ण और संवैधानिक पदों पर यदि टिप्पणियाँ की जाती हैं, तो वह मेरे अनुसार चिंतन और मनन का विषय है।”