Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Pages

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

ब्रेकिंग :

latest

Breaking News

Automatic Slideshow


भारत की गुरुकुल परंपरा बहुत महान थी ,विदेशी आक्रांताओं ने सबसे पहले हमारी समृद्ध गुरुकुल परंपरा को नष्ट क़र दिया == भागवत कथावाचक डॉ. श्याम सुंदर पाराशर जी महाराज

    भिलाई   . असल बात news.   पितृ पक्ष के पावन अवसर पर यहां हनुमान मंदिर सेक्टर 2 में श्राद्ध एवं तर्पण पितृपक्ष के अवसर पर  भव्य भागवत कथा...

Also Read

 











 भिलाई   .

असल बात news.  

पितृ पक्ष के पावन अवसर पर यहां हनुमान मंदिर सेक्टर 2 में श्राद्ध एवं तर्पण पितृपक्ष के अवसर पर  भव्य भागवत कथा का आयोजन किया गया है. यहां कथा व्यास से डॉ. श्याम सुंदर पाराशर जी महाराज भागवत कथा सुना रहे हैं.कथा व्यास से कथा जारी रखते हुए महाराज पाराशर ने छठवें दिन की अपनी कथा में सत्ता के पदाधिकारी का उल्लेख करते हुए कहा कि कोई भी पद जितना बड़ा होता है उस पद पर बैठे व्यक्ति का भी गुण -दोष उतना ही बड़ा होता है. अधिक बड़े पद पर बैठे व्यक्ति की गलतियों को भगवान ने भी माफ नहीं किया है, क्योंकि उनके द्वारा की गई गलतियां बड़ी होती हैं.

भागवत कथा के षष्टम दिवस पर कथा व्यास से डॉ. श्याम सुंदर पाराशर जी महाराज ने कहा कि अधिकारी जितना बड़ा होता है उसका किया हुआ अपराध भी उतना ही बड़ा होता है. भागवत में उल्लेख मिलता है कि  भगवान ने इंद्र को तो क्षमा मांगने पर क्षमा किया पर ब्रह्मा जी की लंबी चौड़ी स्तुति करने पर भी उनसे बात तक नहीं की.

उन्होंने,आगे कथा में भगवान की अत्यंत ही अतरंग लीला महारास का वर्णन करते हुए कहा कि यह लीला साधारण मनुष्यों की बुद्धि से परे की लीला है इसलिए शुकदेव जी ने इस लीला का वर्णन प्रारंभ करते हुए कहा यह सर्वसाधारण मनुष्य की लीला नहीं है साक्षात भगवान की लीला है जिन गोपियों का भगवान ने चीर चुराया उन्हीं को रास का अधिकार प्रदान किया जीवात्मा और परमात्मा के मिलन को ही महारास कहा गया है.  दंडकारण के सभी संत मिथिलापुरी की नारियां सीता में सभी तपस्या करके भगवान को गले लगाने के लिए गोपियों का रूप धारण करके ब्रिज में प्रकट हुए हैं और उन सभी का मनोरथ पूर्ण करने के लिए भगवान ने महारास रचाया है.  भगवान की लीला में सांसारिक मत नहीं रखना चाहिए।

आगे कथा में उन्होंने बताया कि भगवान ब्रिज में जब तक रहे तब तक पांच व्रत धारण किया.कई दिन केस नहीं काटे. कभी सिले वस्त्र धारण नहीं किया. कभी जूता चप्पल धारण नहीं किया. ब्रिज में कभी अस्त्र नहीं उठाया और मोर पंख के अलावा कोई मुकुट धारण नहीं किया. इसलिए ब्रिज की महिमा अद्भुत है. आज भी ब्रिज भूमि में जो जाता है,राधे-राधे की मधुर धुन में डूब जाता है क्योंकि राधा रानी ब्रिज की महारानी है जहां आज भी प्रिय, प्रियतम नित्य निवास करते हैं और गोपियों उनकी सेवा में तत्पर रहती है.कृष्ण और राधा नाम ही अलग है पर एक ही ज्योति की तरह है जैसे दीपक से बाती अलग नहीं है. समुद्र से लहर अलग नहीं है,उसी प्रकार कृष्ण और राधा एक ही है. भगवान ने ब्रिज लीला पूर्ण कर मथुरा में कंस का वध कर मथुरा वासियों को कंस के अत्याचार से मुक्त किया. अपने माता-पिता देवकी- वासुदेव को बंधन से मुक्त किया और उज्जैन में संदीपनी मुनि के गुरुकुल में जाकर अध्ययन किया.

 महाराज ने  हमारे भारतवर्ष में गुरुकुल परंपरा के महत्व को बताते हुए कहा कि एक राजा का बेटा गुरुकुल में पढ़ता था और एक गरीब ब्राह्मण का बेटा भी और सभी बालक गुरुकुल में हर तरह की शिक्षा निशुल्क प्राप्त करते थे. अध्ययन पूर्ण होने पर  विद्यार्थी अपने समर्थ से गुरु दक्षिणा देते थे. विदेशी  आक्रांताओं ने सबसे पहले हमारी गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट किया और हमें विदेशी भाषाओं का दास बना दिया. कथा विश्राम में रुक्मणी जी का विवाह भगवान द्वारिका नाथ से संपन्न हुआ।