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कांग्रेस ने कर दी 11 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा,एक ही जिले से 4 सीटों पर उम्मीदवार, क्या हारे और जीते हुए विधायक लगाएंगे बेड़ा पार ?

  रायपुर। कांग्रेस ने काफी इंतजार के बाद आखिरकार छत्तीसगढ़ में सभी 11 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. पहली सूची में 6 प्रत्याशि...

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 रायपुर। कांग्रेस ने काफी इंतजार के बाद आखिरकार छत्तीसगढ़ में सभी 11 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. पहली सूची में 6 प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया गया था. दूसरी सूची में 1 और तीसरी सूची में 4 प्रत्याशियों के नाम घोषित होने के साथ ही सभी 11 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार अब चुनावी मैदान में हैं. कांग्रेस ने 1 मौजूदा सांसद सहित 3 विधायक और 3 पूर्व विधायक को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं 2019 में लोकसभा हारने वाले प्रत्याशी को भी दोबारा मौका दिया है. सिर्फ 3 सीटों पर नए चेहरे को पार्टी ने मौका दिया है



कांग्रेस में सबसे खास बात यह है कि एक ही जिले से 4 प्रत्याशी हैं. इनमें 3 प्रत्याशी ऐसे हैं, जिसे गृह क्षेत्र के बाहर भेजकर पार्टी चुनाव लड़ा रही है. पार्टी के अंदर यह प्रयोग इस तरह से हुआ है- दुर्ग जिले के पाटन विधानसभा से विधायक भूपेश बघेल राजनांदगांव से, दुर्ग ग्रामीण से विधायक रहे ताम्रध्वज साहू महासमुंद से और भिलाई नगर से विधायक देवेन्द्र यादव बिलासपुर से उम्मीदवार बनाए गए हैं.

आइए जानते है कांग्रेस पार्टी की ओर से घोषित इन 11 उम्मीदवारों के बारे में…कौन, कहां मजबूत और कौन कहां कमजोर है ?

1. राजनांदगांव लोकसभा – भूपेश बघेल, कांग्रेस प्रत्याशी

मजबूत पक्ष- भूपेश बघेल 6 बार के विधायक हैं. राजनीति में 4 दशक से सक्रिय हैं. अविभाजित मध्यप्रदेश में भी मंत्री रहे हैं. छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं. 2018 से 2023 तक मुख्यमंत्री रहे. अपने कार्यकाल के दौरान सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री रहे. ओबीसी वर्ग में सबसे मजबूत नेताओं में से एक हैं. किसान नेता के रूप में भी छवि. राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र में सरकार रहते भी सक्रिय रहे. राजनांदगांव को विभाजित कर दो नए जिला बनाने का श्रेय. राजनांदगांव की 8 विधानसभा सीटों में 5 में कांग्रेस काबिज. आदिवासी और ओबीसी वोटों पर मजबूत पकड़.

कमजोर पक्ष- विधानसभा चुनाव-2023 में कांग्रेस की हार. पार्टी के अंदर गुटबाजी. कार्यकर्ताओं का खुलेआम बगावत. महादेव सट्टा एप में एफआईआर. कोयला, शराब घोटाले का आरोप. राजनांदगांव लोकसभा में राज्य बनने के बाद लगातार भाजपा की जीत. संघ का मजबूत गढ़. धर्म, हिंदूत्व, धर्मांतरण जैसे मुद्दों का हावी होना. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, उमुख्यमंत्री विजय शर्मा का गृह क्षेत्र. मौजूदा सांसद की लोकप्रियता. मोदी लहर की चर्चा.

2. महासमुंद लोकसभा- ताम्रध्वज साहू, कांग्रेस प्रत्याशी

मजबूत पक्ष- ताम्रध्वज साहू करीब 4 दशक से राजनीति में हैं. 1 बार सांसद और 4 बार विधायक रहे हैं. 2018 से 2023 तक भूपेश सरकार में गृहमंत्री रहे. जोगी सरकार में भी मंत्री रहे. ओबीसी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. साहू समाज में सबसे मजबूत और बड़े नेताओं में से एक हैं. धर्म-कर्म वाले रामायणी हैं. सहज-सरल नेता वाली छवि है.

कमजोर पक्ष- गृहमंत्री रहते चुनाव में हार. पार्टी के अंदर गुटबाजी. गृहक्षेत्र को छोड़कर दूसरे क्षेत्र (महासमुंद) से चुनाव लड़ना. साहू समाज के अंदर नाराजगी. गृहमंत्री के तौर पर छाप न छोड़ पाना. महासमुंद में स्थानीय प्रत्याशी से मुकाबला. कोयला, शराब, महादेव एप जैसे घोटाले की आंच.

3. बस्तर लोकसभा- कवासी लखमा, कांग्रेस प्रत्याशी

मजबूत पक्ष- कवासी लखमा 3 दशक से अधिक समय से राजनीति में हैं. 6 बार से लगातार विधायक हैं. भूपेश सरकार में उद्योग मंत्री रहे. बस्तर क्षेत्र में सबसे सक्रिय और चर्चित नेता हैं. सहज और मिलनसार नेता की छवि. नक्सल क्षेत्रों में मजबूत पकड़.

कमजोर पक्ष- बस्तर में प्रभारी मंत्री रहते कांग्रेस की हार. आबकारी मंत्री रहते शराब घोटाला का आरोप. ईडी जांच के घेरे में. 2013 में घटित झीरम नक्सल हमले में नाम उछलना. बस्तर के अंदर कार्यकर्ताओं में फूट. पार्टी के अंदर खुले तौर पर गुटबाजी. धर्मांतरण के मुद्दे का प्रभाव.

मजबूत पक्ष- डॉ. शिवकुमार डहरिया 3 दशक से अधिक समय से राजनीति में हैं. 3 बार विधायक रहे हैं. भूपेश सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री रहे. अनुसूचित जाति वर्ग में सबसे मजबूत नेताओं में से एक हैं. 2009 में जांजगीर से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. लोकसभा चुनाव का अनुभव है. जांजगीर लोकसभा के सभी 8 विधानसभा सीटों में कांग्रेस का काबिज होना.

कमजोर पक्ष- मंत्री रहते आरंग से विधानसभा चुनाव में हार. जांजगीर से 2009 लोकसभा चुनाव में हार. पार्टी के अंदर गुटबाजी. कार्यकर्ताओं के बीच सर्वमान्य नहीं. कई तरह के राजनीतिक विवाद.

5. रायपुर लोकसभा- विकास उपाध्याय, कांग्रेस प्रत्याशी

मजबूत पक्ष- विकास उपाध्याय दो दशक से अधिक समय से राजनीति में हैं. वर्मतान में कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव हैं. रायपुर पश्चिम से विधायक रहे हैं. युवाओं के बीच लोक्रपिय और मिलसार नेता की छवि. राष्ट्रीय स्तर पहचान. गांधी परिवार तक पहुंच.

कमजोर पक्ष- 2023 विधानसभा चुनाव में 40 हजार से अधिक मतों से हार. रायपुर शहर तक ही अधिक सक्रिय रहे. जिले के अन्य विधानसभा गांवों में संपर्क कम. पार्टी के अंदर गुटबाजी. युवा नेताओं के बीच खेमेबाजी. लोकसभा क्षेत्र में सभी नेताओं के बीच समन्वय की चुनौती. लोकसभा की 9 में सिर्फ 1 सीट पर कांग्रेस का काबिज होना.

6. बिलासपुर लोकसभा- देवेन्द्र यादव, कांग्रेस प्रत्याशी

मजबूत पक्ष- देवेन्द्र यादव करीब 2 दशक से राजनीति में सक्रिय हैं. सबसे कम उम्र के महापौर रहे. महापौर रहते विधायक रहे. दो बार के विधायक हैं. युवा और ऊर्जावान जुझारू नेता की छवि.

कमजोर पक्ष- गृह क्षेत्र से बाहर चुनाव लड़ना. बिलासपुर लोकसभा में जनाधार का अभाव. पार्टी के अंदर गुटबाजी. पार्टी के अंदर कार्यकर्ताओं के बीच स्थानीय और बाहरी का मुद्दा. राज्य बनने के बाद हुए चुनावों में लगातार कांग्रेस की हार. ईडी जांच में आरोपी. लोकसभा की 8 में से सिर्फ 2 विधानसभा सीटों में कांग्रेस का काबिज होना.

7. कोरबा लोकसभा- ज्योत्सना महंत, कांग्रेस प्रत्याशी

मजबूत पक्ष- ज्योत्सना महंत एक बार की सांसद हैं. 2019 में मोदी लहर के बीच जीतीं थी. मजबूत राजनीतक परिवार. पूर्व केंद्रीय मंत्री और नेता-प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास की पत्नी. सौम्य और मिलनसार. विवादों से दूर.

कमजोर पक्ष- सांसद के तौर कोई अमिट छाप नहीं छोड़ पाईं. व्यक्तिगत तौर पर राजनीतिक अनुभव कम. लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में सिर्फ 1 सीट पर कांग्रेस का काबिज होना.

8. कांकेर लोकसभा- बीरेश ठाकुर, कांग्रेस प्रत्याशी

मजबूत पक्ष- दो दशक से राजनीति में सक्रिय. वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष, साफ और मिलनसार नेता वाली छवि. 2019 में चुनाव हारने के बाद से क्षेत्र में सतत सक्रिय. पार्टी के प्रति ईमानदार. गुटबाजी से दूर. लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में 5 में कांग्रेस का काबिज होना.

कमजोर पक्ष- 2019 लोकसभा चुनाव में हार. मोदी मैजिक का प्रभाव. धर्मांतरण और हिंदूत्व मुद्दे का असर. स्थानीय स्तर पर कांग्रेस की एकजुटता में कमी.

9. दुर्ग लोकसभा- राजेन्द्र साहू, कांग्रेस प्रत्याशी

मजबूत पक्ष- राजेन्द्र साहू दो दशक से अधिक समय से सक्रिय राजनीति में हैं. भूपेश सरकार में दुर्ग जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे. दुर्ग शहर विधानसभा चुनाव में प्रबल दावेदार थे. अरुण वोरा के चलते टिकट नहीं मिली. भाजपा से चार बार सांसद रहे स्व. ताराचंद साहू के कट्टर समर्थक रहे. ताराचंद के निधन के बाद भूपेश बघेल के साथ जुड़ गए. दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में ओबीसी वर्ग के बड़े नेताओं में से एक. जुझारू नेता के तौर पहचान.

कमजोर पक्ष- दुर्ग शहर के बाहर राजनीतिक सक्रियता कम. कांग्रेस पार्टी के अंदर गुटबाजी. बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच सर्वमान्य नहीं. दुर्ग लोकसभा की 9 में सिर्फ 2 विधानसभा सीटों में कांग्रेस का काबिज होना. लोकसभा क्षेत्र में मोदी मैजिक का प्रभाव.

10. रायगढ़ लोकसभा- डॉ. मेनका सिंह, कांग्रेस प्रत्याशी

मजबूत पक्ष- डॉ. मेनका सिंह करीब 4 दशक से राजनीति में हैं. मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि है. अविभाजित मध्यप्रदेश के समय परिवार कांग्रेस पार्टी में सक्रिय रहा. प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री रहे स्व. राजा नरेशचंद्र की बेटी हैं. सारंगढ़ राजपरिवार की सदस्य हैं. रायगढ़ जिले में जनता के बीच सतत सक्रिय हैं.

कमजोर पक्ष- राज्य बनने के बाद से हुए चुनाव में लगातार कांग्रेस की हार. पार्टी के अंदर गुटबाजी. कार्यकर्ताओं में बिखराव. रायगढ़ लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 3 पर कांग्रेस का काबिज होना. मोदी मैजिक का प्रभाव. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का गृह क्षेत्र.

11. सरगुजा लोकसभा- शशि सिंह

मजबूत पक्ष- परिवार का मजबूत राजनीतिक घराना. पूर्व मंत्री स्व. तुलेश्वर सिंह की बेटी हैं. युवा और तेज तर्रार नेता की छवि. जिला पंचायत सदस्य हैं. राहुल गांधी की टीम का हिस्सा हैं. जनता के बीच नया चेहरा. सरगुजा महाराज पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव का समर्थन.

कमजोर पक्ष- व्यक्तिगत तौर पर राजनीतिक अनुभव कम. स्थानीय स्तर पर पार्टी में गुटबाजी. स्थानीय कार्यकर्ताओं का विरोध. बड़े नेताओं के बीच समन्वय का अभाव. राज्य बनने के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस की लगातार हार. सरगुजा लोकसभा की सभी 8 विधानसभा सीटों में कांग्रेस की हार.