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शासकीय विष्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, में पढ़ाई जाएंगे प्राचीन भारत के विद्वानों चरक, सुश्रुत एवं आर्यभट्ट आदि के विचारों एवं कार्याें से संबंधित पाठ्यक्रम

  भारतीय ज्ञान परंपरा बुनियादी बातों की वापसी   दुर्ग।  असल बात न्यूज़।। यूजीसी नई दिल्ली एवं आर.टी.एम. नागपुर विष्वविद्यालय, नागपुर के संयु...

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 भारतीय ज्ञान परंपरा बुनियादी बातों की वापसी 

दुर्ग।

 असल बात न्यूज़।।

यूजीसी नई दिल्ली एवं आर.टी.एम. नागपुर विष्वविद्यालय, नागपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित छः दिवसीय प्रषिक्षण कार्यक्रम में शासकीय विष्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी  महाविद्यालय, दुर्ग से डॉ प्रज्ञा कुलकर्णी एवं डॉक्टर मौसमी डे सम्मिलित हुई।

ज्ञात हो कि एनईपी 2020 में प्राचीन भारत के गौरवशाली अतीत को मान्यता दी है एवं प्राचीन भारत के विद्वानों जैसे चरक, सुश्रुत एवं आर्यभट्ट आदि के विचारों एवं कार्याें को वर्तमान पाठ्यक्रम में शामिल करने की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। बदलते सामाजिक परिवेश और भारतीय मूल्यों के बीच हमारी षिक्षा व्यवस्था को समावेशी बनाना अतिआवष्यक है। नवोन्वेषी षिक्षा शास्त्रों में पंचमहाभूतो के अध्ययन एवं नयी शिक्षा पद्धति  में बहुभाषा वाद एवं सर्वागीण षिक्षा के महत्व एवं प्राचीन खेलों के माध्यम से जीवन दर्शन के ज्ञान पर जानकारी दी गई है, साथ ही नयी  शिक्षा नीति में ऊर्जा वान एवं सक्षम षिक्षकों की भूमिका, ज्ञान परंपरा केे वैष्विक संर्वधन एवं विस्तार, अनुसंधान, नवाचार एवं उसके एकीकरण को आवश्यक बताया गया है। 

भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार ज्ञान की रचना, तर्कयुक्त विवेचना, ज्ञान का उपयोग, आचरण एवं आवष्यक परिवर्तन ज्ञान चक्र अथवा ज्ञान तंत्र के रूप में सतत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें साहित्यिक/गैर साहित्यिक, बुनियादी एवं व्यवहारिक विज्ञान शामिल है। ज्ञान परंपरा का वर्गीकरण उपलब्ध प्राथमिक एवं द्वितीय पाठ्य, अनुवादित पाठ्य संसाधन, चौदह/अठारह विद्या स्थानों में वेद, उपवेद, वेदाग, पुराण, धर्म, न्याय शास्त्र एवं मीमांसा के अध्ययन की जानकारी प्रमुख है। भारतीय ज्ञान परंपरा में कुछ ऐसे शब्दों की शब्दावली तैयार की है, जिनका अन्य भाषा में अनुवाद संभव नही है एवं उसके सही भावार्थ  को प्रेषित नही करता जैसे कर्म , मानस, इतिहास, राष्ट्र इत्यादि। भारतीय ज्ञान परंपरा में किसी अध्ययन के लिये बतायी गयी विधीयों में सर्वप्रथम प्रमाणयूक्त अवधारणा, संबंधित वाद (रिव्यु ऑफ लिटरेचर), तंत्रयुक्ति मेथेडोलॉजी की बात कही गई है, जो वर्तमान में भी प्रासंगिक है। साथ ही विद्यार्थी द्वारा बार-बार प्रष्न पूछने एवं ज्ञान का सही दृष्टिकोण रखने की विधि शामिल है। भारतीय ज्ञान परंपरा में विष्लेषण के महत्व को समझाते हुए अच्छे जीवन के लिए तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ अच्छे दर्शन एवं आध्यात्मिक ज्ञान की आवष्यकता को प्रमुख माना गया है। अंतर सभ्यता के रूप में अन्य शिक्षा प्रणाली में भारतीयों के योगदान महत्वपूर्ण  है।

 महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर  आर.एन. सिंह एवं महाविद्यालय के अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के प्रभारी डा. अनिल कुमार ने इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम को प्रासंगिक बताते हुए महाविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित मूल्य वर्धक पाठ्यक्रम (वैल्यू ऐडेड कोर्स) प्रारंभ करने की घोषणा की, जो विद्यार्थियों के लिए अत्याधिक उपया ेगी सिध्द होगी।