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'आप थकना मत'',मैं अभी और घूमूंगा,मुझे और घूम लेने दो, यहां तो बहुत अच्छी- अच्छी जगह है, हम तो घूमते- घूमते बहुत सुंदर जगह पर आ गए हैं' रोवर प्रज्ञान, शायद विक्रम लैंडर से यही कह रहा होगा, उनके चंद्रमा की सतह पर एक सप्ताह पूरे, अब उनके आगे के जीवन के लिए पूजा प्रार्थना

  बेंगलुरु, नई दिल्ली।  असल बात न्यूज़।।        00  Special report/विश्लेषण.            00  अशोक त्रिपाठी        शरारती बच्चों के जैसे प्रज...

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बेंगलुरु, नई दिल्ली।

 असल बात न्यूज़।।   

   00  Special report/विश्लेषण.  

        00  अशोक त्रिपाठी       

शरारती बच्चों के जैसे प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर अटखेलियां कर रहा है, सेल्फी ले रहा है,जगह-जगह की फोटोग्राफी कर रहा है और उसे अपनी गोद में लेकर वहां पहुंचे अपने पिता लैंडर विक्रम को वह "smile please"कहता दिखता है लेकिन शायद उस अबोध रोवर को अपने उस पीड़ा की समझ नहीं है। उसको ऐसी अटखेलियां,अपनी सुंदर मुस्कुराहट बिखरते, शायद यह नहीं मालूम है कि उसकी ऐसी सुंदरता,खूबसूरत हंसी, मुस्कुराहट जगह-जगह अटखेलियां करते हुए फोटोग्राफी करना, शरारती चहल-पहल,चमक अधिक दिन की नहीं है। कुछ दिनों के बाद वह हम सबसे "बिछड़" जाने वाला है। और हमारी अभी जो खुशियां हैं,उसकी अठखेलियों,चहलकदमी को देखकर जो हमारे मन, लाखों लाख गुना अधिक उत्साहित हो रहा है,खुशियों से डूबा हुआ है, वह एक सप्ताह बाद गम से सराबोर होने जाने वाला है। विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर से संभवत एक सप्ताह के बाद हमारा संपर्क टूट जाएगा। इसकी कल्पना मात्र से भारत देश के करोड़ों लोगों का मन आहत है। हालांकि, हम दुनिया के सामने सीना ताने खड़े रह सकेंगे कि हमारा विक्रम और प्रज्ञान चंद्रमा पर हैं और वे फिर उठेंगे और चलेंगे।फिर सूर्य देव उनकी मदद करेंगे और वे सूर्य देव की अंगुली थाम कर आगे बढ़ने लगेंगे। 

शायद वह बिछड़ने, दूर होने, संपर्क टूट जाने का समय आएगा तो भारत के करोड़ों लोग भावुक हो सकते हैं। करोड़ों लोगों की आंखें छलछला सकती हैं। विक्रम लैंडर और सुंदर प्रज्ञान रोवर से बिछड़ने का दुख हमारे मन में लंबे समय तक बना रहेगा। करोड़ों लोगों की भावनाएं लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान के साथ पूरी आत्मीयता और दिल की गहराइयों से जुड़ गई है  से जुड़ गई है। इन लोगों को प्रज्ञान रोवर के चंद्रमा की सतह पर अटखेलियां करने,चहलकदमी करने की खबरें अच्छी लगती हैं। यह सब लोग चाहते हैं और पूरा भारत देश चाहता है कि प्रज्ञान रोवर वहां पहुंच गया है तो उससे हमारा संपर्क कभी खत्म ना टूटे,वे पूरे चंद्रमा पर घूम ले। पूरे चंद्रमा का चक्कर लगा ले। चंद्रमा के पर्वतों, पहाड़ों,उथले गढ्ढों ,क्रेटर्स तक पहुंच जाएं,वहां के पहाड़ों को देख ले, वहां के गढ्ढों को देख ले, वहां के क्रेटर को समझ ले और उनके बारे में लगातार हमें भी बताता रहे कि आखिर उनमें क्या रहस्य है। वो हमें उनकी अनसुलझी बातों के बारे में रोज बताता रहे। रोवर प्रज्ञान अपने पिता विक्रम लैंडर से जुड़ा करता और पूछता नजर आता है कि आप ठीक तो हो ना थक तो नहीं गए और शायद यह भी कहता दिखता है कि 'आप थकना मत''मैं अभी और घूमूंगा,मुझे और घूम लेने दो, यहां तो बहुत अच्छी अच्छी जगह है, हम तो घूमते घूमते बहुत सुंदर जगह पर आ गए हैं'। हमारे रोवर ने अपने प्रारंभिक विश्लेषण से हमें बता दिया है कि चंद्रमा पर वहां की सतह पर अल्युमिनियम सल्फर कैल्शियम आयरन क्रोमियम और टाइटेनियम मैंगनीज सिलिकॉन और ऑक्सीजन जैसी चीज उपस्थित है। रोवर अभी हाइड्रोजन की मौजूदगी के संबंध में गहन जांच कर रहा है। 

अंतरिक्ष से चंद्रमा की सतह पर असंख्य छिद्र होल नजर आते हैं।ये छिद्र, होल्स काफी रहस्यमय और अपने भीतर कई सारे रहस्य को समेटे दिखते हैं। अभी हमें, इन होल्स से करीब पहुंचना है, उनके आसपास क्या है इसे जानना है। उनकी गहराई कितनी होगी इसे समझना है,लेकिन शायद इसके लिए काफी वक्त लगेगा। दूर से तो यह होल्स काफी बारीक नजर आते हैं लेकिन अनुमान है कि इनका व्यास काफी अधिक हो सकता है। स्वाभाविक तौर पर इसका उनके पास पहुंचने पर ही स्पष्ट पता चल सकेगा। चंद्रमा का बड़ा सरफेस काफी चमकदार है। चंद्रयान-3 ने जब चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया तो इसे देखा गया है। यह सरफेस सूर्य की किरणों के पहुंचने से वहां चमकते होंगे। लेकिन वहां बेशकीमती खनिज धातुओं के भी विशाल भंडार के होने का अनुमान है। हमारे चंद्रमा पर रहस्यपूर्ण शांति खामोशी दिखती है। चंद्रमा की सतह पर कई जगह ऐसे भी दृश्य नजर आते हैं जैसे वहां के पहाड़ों पर लंबे समय तक पानी जैसी कुछ चीज बही है जो की अलग-अलग मार्गों की और बहकर जाती दिखती है और उन चीजों के लगातार बहने से वहां पर्वतों पर हल्का दूधिया सफेद निशान बन गया नजर आता है। यह वहां जमीन की गहराई से निकला गर्म लावा भी हो सकता है। चंद्रमा की सतह पर, पानी की सतह पर पत्थर के फेंकने से वहां पर पत्थर के दबाव से पानी के हटने से जिस तरह से कुछ देर तक की गहराई बन जाती है और पानी के वापस लौटने पर वह गहराई मिट जाती है वैसी गहराई वाले निशान बनते दिखाई देते हैं। एकदम चिकने। शायद यहां हवा का दबाव नहीं है और इसलिए किसी चीज के गिरने से ऐसे निशान बने तो उस स्थान पर हवा नहीं हो जाने की वजह से वहां का हटने वाला वह पदार्थ वापस नहीं लौटा और वे गढ्ढे वैसे ही वैसे बने रह गए। चंद्रमा की सतह पर ऐसे असंख्य चिकने गड्ढे नजर आते हैं। 

छत्तीसगढ़ के सबसे विश्वसनीय ऑनलाइन वेब न्यूज़ पोर्टल "असल बात न्यूज़" के द्वारा चंद्रयान-3 की प्रत्येक गतिविधियों, पल-पल की जानकारी को आप सभी तक पूरी करने से बचने की कोशिश की जा रही है। चंद्रयान-3 के चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का भी हमारे द्वारा लाइव प्रसारण किया गया। हमारी पूरी टीम इस काम में लगी हुई है। प्रज्ञान रोवर और विक्रम लैंडर चंद्रमा नक्षत्र पर लगातार काम करते रहें, उन्हें,सूर्य देव से निरंतर ऊर्जा मिलती रहे और वे संचालित होते रहे इसके लिए हम भी प्रार्थना करते रहेंगे।

फिलहाल चंद्रमा की सतह पर हमारे विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को एक सप्ताह पूरे हो गए हैं। जो लोग चिल्लाते रहते हैं उन लोगों ने भी चंद्रयान-3 की चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग देखी है। सुबह शाम चिल्लाते रहने वाले लोगों ने भी चंद्रयान-3 के चंद्रमा के सतह पर उतरते समय उठ रहे विशाल धूल कणों को  देखा होगा। हमारे वैज्ञानिकों ने फिलहाल लंदन और रोवर को चंद्रमा की कुल एक दिन रात अवधि के लिए डिजाइन किया है। यह पृथ्वी के 14 दिन रात के बराबर का समय है। चंद्रयान-3 चंद्रमा के सतह पर 23 अगस्त को उतर गया और अब उसके वहां एक सप्ताह बीत गए हैं। हमारा चंद्रयान जहां पर उतरा है चंद्रमा के उसे साउथ पोल पर 14 दिनों के बाद अंधेरा छा जाएगा। लैंडर और रोवर सौर से मिलने वाली ऊर्जा से संचालित हो रहे हैं। उनसे संपर्क टूट जाएगा तो करोड़ों भारतीयों का दिल भी दर्द के गहराईयो में डूब जाएगा।

इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्रयान-3 रोवर पर लगे लेजर-प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (एलआईबीएस) उपकरण ने दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्र सतह की मौलिक संरचना पर पहली बार इन-सीटू माप किया है। ये इन-सीटू माप स्पष्ट रूप से क्षेत्र में सल्फर (एस) की उपस्थिति की पुष्टि करते हैं, कुछ ऐसा जो ऑर्बिटर पर लगे उपकरणों द्वारा संभव नहीं था।एलआईबीएस एक वैज्ञानिक तकनीक है जो सामग्रियों को तीव्र लेजर पल्स के संपर्क में लाकर उनकी संरचना का विश्लेषण करती है। एक उच्च-ऊर्जा लेजर पल्स किसी सामग्री की सतह पर केंद्रित होती है, जैसे चट्टान या मिट्टी। लेजर पल्स एक अत्यंत गर्म और स्थानीयकृत प्लाज्मा उत्पन्न करता है। एकत्रित प्लाज्मा प्रकाश को चार्ज युग्मित उपकरणों जैसे डिटेक्टरों द्वारा वर्णक्रमीय रूप से विघटित और पता लगाया जाता है। चूंकि प्रत्येक तत्व प्लाज्मा अवस्था में होने पर प्रकाश की तरंग दैर्ध्य का एक विशिष्ट सेट उत्सर्जित करता है, इसलिए सामग्री की मौलिक संरचना निर्धारित की जाती है।

ग्राफ़िक रूप से दर्शाए गए प्रारंभिक विश्लेषणों ने चंद्र सतह पर एल्युमीनियम (Al), सल्फर (S), कैल्शियम (Ca), आयरन (Fe), क्रोमियम (Cr), और टाइटेनियम (Ti) की उपस्थिति का खुलासा किया है। आगे के मापों से मैंगनीज (एमएन), सिलिकॉन (सी), और ऑक्सीजन (ओ) की उपस्थिति का पता चला है। हाइड्रोजन की मौजूदगी के संबंध में गहन जांच चल रही है।एलआईबीएस पेलोड को इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स सिस्टम (एलईओएस)/इसरो, बेंगलुरु की प्रयोगशाला में विकसित किया गया है।एलआईबीएस के बारे में अधिक जानकारीयहां क्लिक करें

एलआईबीएस स्पष्ट इन-सीटू माप के माध्यम से चंद्र सतह पर सल्फर (एस) की उपस्थिति की पुष्टि करता है







                           Photos साभार-- इसरो 
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