भूमिका हमारी संस्कृति, विश्वास, आस्थाये, प्रचलित रूढ़ियां, धार्मिक मान्यताएं धर्मभीरुता एवं सहिष्णु प्रवृत्ति और आदिकाल की तमाम परिस्थितिय...
भूमिका
हमारी संस्कृति, विश्वास, आस्थाये, प्रचलित रूढ़ियां, धार्मिक मान्यताएं धर्मभीरुता एवं सहिष्णु प्रवृत्ति और आदिकाल की तमाम परिस्थितियों ने हमारे समाज में स्त्रियों को पूज्यनीय, सम्माननीय उच्च दर्जा प्रदान किया हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथ हमें बताते हैं कि मां ही देवी है। मां ही सती है। मां त्याग की प्रतिमूर्ति है।तो वही जीवन प्रदान करती है।लेकिन, पिछले वर्षों में स्त्रियों पर क्रूरता, हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। लड़कियों की जिस तरह से बर्बरता पूर्वक,वहशियाना तरीके से हत्यायें की गई है,वे पूरे समाज, आम जनमानस के दिल को झकझोर कर रख देने वाली घटनाएं हैं। तमाम कुरीतियों से घिरे काहिल, पिछड़ी कुत्सित मानसिकता के तत्वों ने उन्हें कुचलने, उनका शोषण करने,उनके गरिमा-प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने की वारदातें की है। दुनिया भर में सभी सामाजिक,आर्थिक पृष्ठभूमि के सभी उम्र धर्म और विभिन्न संस्कृति को मानने वाले लाखों बच्चे हर दिन हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार हो रहे हैं। ऐसे वारदातों की संख्या लगातार बेचैन, परेशान कर देने वाले आंकड़े तक पहुंचती जा रही है। साक्ष्य बताते हैं कि बच्चों के शोषण, हिंसा और दुर्व्यवहार की घटनाओं में अक्सर उनके जानकार परिचित ही आरोपी पाए गए हैं। भारत में नाबालिग बच्चों (इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों को बच्चा माना गया है)की सुरक्षा के लिए पॉक्सो एक्ट लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012(The protection of children from sexual offences act 2012) बनाया गया है। यह अधिनियम एक क्रांतिकारी कदम साबित हो रहा है। इस के लागू हो जाने के बाद बच्चों की सुरक्षा के प्रति समाज में एक नई हलचल सुनाई दी है। प्रस्तुत पुस्तक का उद्देश्य पोक्सो एक्ट के बारे में अधिक से अधिक जानकारी आम लोग तक पहुंचाने की कोशिश करना है। यह अधिनियम समाज को कलंकित कर देने वाले घृणात्मक अपराध को नियंत्रित करने के लिए दंड देने की विधि है। स्मृतियों,नए न्यायिक निर्णयों की वजह से यह अधिनियम लगातार से सुस्पष्ट होता जा रहा है और समाज में इसका महत्व लगातार बढ़ता दिख रहा है।
छत्तीसगढ़ अंचल के लोग सीधे साधे भोले भाले हैं। ऐसे शांतिप्रिय अंचल में भी सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021- 22 के दौरान पोक्सो एक्ट के 2 हजार 654 मामले दर्ज किए गए हैं। इस अवधि में सिर्फ राजधानी रायपुर में ही 223 प्रकरण दर्ज किए गए जोकि चिंताजनक स्थिति नजर आती है। बलौदाबाजार, बिलासपुर, दुर्ग, सरगुजा, बलरामपुर, सूरजपुर भी ऐसे अत्यंतिक जिले हैं जहां एक वर्ष के भीतर पोक्सो एक्ट के सौ से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इससे समझा जा सकता है कि समाज में आज बालकों के प्रति नजरिया कैसा हो गया है। उनके शरीर की सुरक्षा के प्रति समाज में कैसी गिरावट दर्ज हो रही है। हमारे शांतिपूर्ण छत्तीसगढ़ अंचल में भी बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण पर सवाल खड़ा दिख रहा है। इस अंचल में ही बाप के द्वारा अपनी बेटी के साथ घिनौनी हरकत करने की अत्यंत दुखद और शर्मनाक घटना सामने आई है। विचारण न्यायालय के द्वारा इस मामले में अपराधी को कठोरतम दंड सुनाया गया है। ऐसे ही तमाम घटनाओं को देखते हुए समाज में जन जागरूकता लाने के उद्देश्य से ही इस पुस्तक के लिखने की शुरुआत की गई। पुस्तक की भाषा एवं शैली को सरल एवम् सुस्पष्ट रखने की कोशिश की गई है तथा स्थान स्थान पर अंग्रेजी रूपांतरण का प्रयोग कर अभिव्यक्तिकरण को और अधिक सरल बनाने का प्रयास किया गया है। पास्को एक्ट 18 साल से कम उम्र की अयस्क पीड़ित बच्ची की पहचान उजागर करने को निषिद्ध करता है हमने तमाम घटनाओं का उल्लेख करते हुए इसे सावधानी से अपनाया है। हमने,सभी तक विषय की संपूर्ण जानकारियां पहुंचाने के लिए इसमें हिंदू और अंग्रेजी दोनों माध्यमों में पोक्सो एक्ट बारे में संपूर्ण जानकारियां शामिल करने की कोशिश की है। इस पर विधि विशेषज्ञों तथा विषय के जानकारों से भी अलग-अलग राय लेने का प्रयास किया गया है और विषय पर जो भी सुझाव दिए गए हैं उसे पुस्तक में पूरे सम्मान के साथ शामिल करने की कोशिश की गई है। प्रस्तुत पुस्तक में न्यायालयों के द्वारा दिए गए नवीनतम निर्णयों को भी यथासंभव अंतरनिष्ट किया गया है। सभी अद्यतन संशोधन एवं परिवर्तनों का यथासंभव समावेश करने की कोशिश की गई है। हिंदू विवाह के शास्त्रीय व परंपरागत अवधारणाओं में शैने शैने परिवर्तन होता जा रहा है और इन परिवर्तनों में पाश्चात्य वैवाहिक विधि एवं संस्कृति की छाया स्पष्ट रूप से विद्यमान दिखती है। औद्योगिक और विकासशील समाज के बढ़ते दायरे में भी तमाम सामाजिक मूल्यों में काफी कुछ परिवर्तन कर दिया है। परंतु चिरकाल से प्रतिष्ठित हमारी लोक संस्कृति हमारे देश के सामाजिक मूल्यों की उपयोगिता को आज भी कम नहीं आता जा सकता है। ऐसे में बच्चों के साथ हिंसा, क्रूर व्यवहार,अश्लील हरकत,रेप को कहीं भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। समाज के सभी लोग चाहेंगे कि ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए चाहे वह कोई भी हो।
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के प्रति हिंसा एवं क्रूरता को विस्तृत रूप से परिभाषित किया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत घर में महिलाओं को स्वास्थ्य सुरक्षा जीवन और शरीर को कोई नुकसान पहुंचाना या चोट पहुंचाना शारीरिक व मानसिक कष्ट देना तथा ऐसा करने का इरादा रखना गरिमा प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना,संतान ना होने पर या पुत्र ना होने पर ताने मारना अपमानित करना या पीड़ा पहुंचाने की धमकी देना घरेलू हिंसा के दायरे में आता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य पति या साथ मैं रह रही किसी भी महिला को सुरक्षा प्रदान करना है।पोक्सो एक्ट में निश्चित रूप से बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के काम की शुरुआत हुई है लेकिन इसे विडंबना कहा जा सकता है कि इसमें जो अपराधी सामने आए हैं उनमें से ज्यादातर की उम्र 19 से 25 साल तक की है। यह हमारे लिए चिंता की बात हो सकती है और ऐसे हालातों को देखकर समाज को निश्चित रूप से यह समझना होगा कि युवा वर्ग किधर भटक रहा है। जो उम्र अपना भविष्य करने की होती है। नए सपने सजाने की उम्र होती है उस उम्र में युवा अपनी अपराधी बनते जा रहा है, चाहे उसके पीछे उसकी नासमझी, क्षणिक भावनाये और उतावलापन ही क्यों ना जिम्मेदार हो। ऐसे में ऐसे अपराधों को रोकने के लिए युवाओं को सामाजिक तौर पर जागरूक करने की जरूरत महसूस की जा रही है। ताकि जो अपराधी मनस्थिति के, क्रिमिनल माइंडेड युवा नहीं है उन्हें अपराध के मकड़जाल में फंसने से रोका जा सके।
न्यायिक प्रक्रियाओं की जो परिपाटी है उसे जटिल माना जाता है और माना जाता है कि इससे न्यायिक फैसलों में विलंब होता रहा है। लेकिन पिछले वर्षों में हम देख रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में पोक्सो एक्ट के प्रकरणों में न्यायालय के द्वारा सिर्फ डेढ़ से 2 वर्ष के भीतर विचारण, सुनवाई की कार्रवाई पूरी की गई है तथा फैसला सुनाया गया है और अपराधियों को कठोर से कठोर दंड दिया गया है। इसका सभी के द्वारा स्वागत किया गया है। कहा जा रहा है इस से पीड़ित पक्षकारों को न्याय मिल रहा है और समय पर न्याय मिलने से उन्हें संतोष भी मिला है। लेखक ने यह किताब लिखने के दौरान विधि विशेषज्ञ, न्याय क्षेत्र से जुड़े विद्वान अधिवक्ताओं, शिक्षा तथा सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले विद्वानों और छत्तीसगढ़ राज्य बाल संरक्षण आयोग के माध्यम से भी विषय पर तमाम सामग्री को एकत्रित करने की कोशिश की है। हमारा आप सभी से विनम्र आग्रह है कि इस पुस्तक के संबंध में किसी भी त्रुटि, भूल के संबंध में अपने महत्वपूर्ण सुझाव हमें अवगत कराने का कष्ट करेंगे जिससे भविष्य के संस्करण में हम इसमें महत्वपूर्ण सुधार कर सकेंगे।
आप सभी का महत्वपूर्ण अविस्मरणीय सहयोग मिला, इसके लिए बहुत-बहुत। विश्वास है कि यह पुस्तक समाज में एक जन जागरूकता लाने की दिशा में सहायक साबित होगी। धन्यवाद।
अशोक त्रिपाठी
संपादक
मीडिया से भी सजगता की अपील
तमाम सामाजिक बुराइयों से लड़ने में उसे जड़समेत मिटाने में मीडिया की भी शुरू से महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कहा जा सकता है कि भारत देश में जो तमाम सामाजिक कुरीतियां थी, समाज में जन जागरूकता लाकर उन्हें मिटाने में मीडिया ने महत्वपूर्ण काम किया है। पोस्को एक्ट के अपराधों की रोकथाम के लिए समाज में जनजागरूकता लाकर मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। आम लोगों में इसकी जागरूकता लाने उन्हें समझाने की जरूरत है कि ऐसे अपराध से उन्हें किस तरह का कठोर दंड भुगतना पड़ सकता है। पोक्सो एक्ट के अपराध के कवरेज के दौरान मीडिया से भी कई तरह की सजगता बरतने की अपेक्षा की गई है। लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम की धारा 25 के अनुसार मीडिया के द्वारा ऐसी कोई रिपोर्ट जिसमें बालक की पहचान, जिसके अंतर्गत उसका नाम पता फोटो चित्र परिवार के विवरण, विद्यालय पड़ोस या कोई अन्य विशिष्टया जिससे बालक की पहचान प्रकट होती है प्रकाशित नहीं की जा सकती है। इसका उल्लंघन करने पर दंड का भी प्रावधान है।