दुर्ग। असल बात न्यूज़।। 00 विधि संवाददाता लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के अपराध में दोष सिद्ध पाए जाने पर अभि...
दुर्ग।
असल बात न्यूज़।।
00 विधि संवाददाता
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के अपराध में दोष सिद्ध पाए जाने पर अभियुक्त को 20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वितीय फास्टट्रैक विशेष न्यायाधीश राकेश कुमार सोम के न्यायालय ने अधिनियम की धारा 6 के तहत यह सजा सुनाई है। न्यायालय ने अपराध की गंभीरता को देखते हुए दंड देने में अभियुक्त के प्रति कोई सहानुभूति पूर्वक विचार करना उचित नहीं माना। न्यायालय ने पीड़ित अभियोक्तरी के पुनर्वास के लिए पांच लाख रु क्षतिपूर्ति देने की भी अनुशंसा की है।
यह घटना रायपुर जिले के धरसीवा थाना क्षेत्र के अंतर्गत 7 जुलाई 2020 की है जिसमें उसी दिन धरसीवा थाने में पीड़िता की माता के द्वारा एफ आई आर दर्ज कराई गई। प्रकरण में लगभग 2 साल 6 महीने के भीतर न्यायालय का फैसला आ गया है।अभियोजन के अनुसार प्रकरण के तथ्य इस प्रकार है कि प्रार्थी के द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराई गई कि उसकी नाबालिग पुत्री पीड़िता घटना के दिन घर के बाहर दोपहर में खेल रही थी। आरोपी चॉकलेट का लालच देकर उसे अपने कमरे में ले गया और दुष्कर्म किया। आरोपी वही नीचे के कमरे में रहता था। अभी तक की उम्र सिर्फ 22 वर्ष है।
प्रकरण में विचारण एवम सुनवाई के दौरान न्यायालय ने अभियुक्त के विरुद्ध आरोप को युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित पाया कि उसे बहला-फुसलाकर उसके साथ बलातसंग एवं गुरुत्तर प्रवेशन लैंगिक हमला कारित किया गया।
न्यायालय में प्रकरण में आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के अपराध में 2 वर्ष सश्रम कारावास तथा ₹1000 अर्थदंड, धारा 366 के अपराध में 5 वर्ष का सश्रम कारावास तथा ₹2000 अर्थदंड और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत 20 वर्ष का सश्रम कारावास और ₹3000 अर्थदंड की सजा सुनाई है। यह सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। और सूजन का भुगतान नहीं करने पर आरोपी को एक माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
न्यायालय ने पीड़िता को पहुंची शारीरिक मानसिक हानि और पीड़ा को देखते हुए उसके पुनर्वास के लिए पीड़ित प्रतिकर योजना के तहत ₹500000 का प्रतिकर दिलाने की अनुशंसा की है।