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विश्व आर्द्रभूमि दिवस के अवसर पर नवा रायपुर स्थित अरण्य भविश्व आर्द्रभूमि दिवस के अवसर पर नवा रायपुर स्थित अरण्य भवन में छत्तीसगढ़ राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण की बैठक आयोजितवन में गुरुवार को छत्तीसगढ़ राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण की बैठक आयोजित

  रायपुर. विश्व आर्द्रभूमि दिवस के अवसर पर नवा रायपुर स्थित अरण्य भवन में गुरुवार को छत्तीसगढ़ राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण की बैठक आयोजित ह...

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रायपुर. विश्व आर्द्रभूमि दिवस के अवसर पर नवा रायपुर स्थित अरण्य भवन में गुरुवार को छत्तीसगढ़ राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण की बैठक आयोजित हुई. इस दौरान वन्यप्राणी अपराध प्रकरणों में अभियोजन से संबंधित पुस्तक का विमोचन का किया गया. इस पुस्तक में बीते 25 सालों में हुए वन्यप्राणी अपराध प्रकरणों से संबंधित महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णयों का सारांश बताया गया है. इस पुस्तक के लेखक छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव अरूण कुमार पांडेय हैं.

देश में वन्यप्राणियों की स्थिति देखते हुए वन्यप्राणी संरक्षण संबंधी विषय की गंभीरता के प्रति हम सभी संवेदनशील हैं. वन विभाग के द्वारा यह लगातार प्रयास किया जाता है कि वन्यप्राणी अपराधों की रोकथाम में सजगतापूर्वक कार्य किया जाये. विभागीय सजगता और संवेदनशीलता के बावजूद वन्यप्राणी अपराध घटित होते रहते हैं. विभाग के द्वारा अपराधियों को गिरफ्तार कर प्रकरणों का कोर्ट चालान कर यह प्रयास कि
या जाता है कि उन्हें दण्ड दिलाया जा सके.

गत लगभग 20 वर्षों में छत्तीसगढ़ राज्य में घटित वन्यप्राणी अपराध प्रकरणों में संबंधित न्यायालयों द्वारा पारित निर्णयों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि दोषमुक्ति (Acquittal) की दर लगभग 90 से 95 प्रतिशत है. वन्यप्राणी अपराध संबंधी गंभीर से गंभीर प्रकरणों में भी अपराधियों का दोष मुक्त हो जाना अभियोजन की गंभीर खामियों की ओर इशारा करती है, जिनकी पूर्ति यदि की जावे तो अभियोजन को सशक्त करने में मदद मिल सकती है. गत लगभग 20 वर्षो में वन्यप्राणी अपराध प्रकरणों में विभिन्न न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों के अध्ययन से अभियोजन की जो महत्वपूर्ण खामियां उजागर होती हैं, उनको दूर करने के उद्देश्य से यह पुस्तिका तैयार की गई है. वन्यप्राणी अपराध प्रकरणों में उच्चतम न्यायालय एवं विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों का आधार लेते सशक्त बनाने के लिए पैरवी की जा सकती है साथ ही बयान आदि की प्रक्रिया व अन्य प्रक्रियात्मक अभियोजन को हुए कमजोरियों को दूर करते हुए यह कोशिश की जा सकती है कि वन्यप्राणी अपराध प्रकरणों में अपराधियों को दण्डित करने का पुरजोर प्रयास किया जावे, क्योंकि यदि समाज में दण्ड का भय कम हुआ तो अपराध प्रकरणों को रोकने में अत्यंत कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा.

आशा है कि इस पुस्तिका में उल्लेखित जानकारियां अभियोजन की प्रचलित व मानक विधियों के परिपालन द्वारा न्यायालयीन निर्णयों में प्रभावी अनिवार्यता को भी संदर्भित करने में सक्षम सिद्ध होगी. साथ ही यह पुस्तिका क्षेत्रीय वन अधिकारियों एवं अन्य सर्वसंबंधितों के लिए भी उपयोगी साबित होगी. सुधि पाठकजनों से यह अनुरोध है कि यदि इस प्रकाशित पुस्तिका में किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि दृष्टिगोचर होती है तो इसकी जानकारी मुझे अवश्य देवें ताकि भविष्य में इस पुस्तिका के संस्करित अंक में आवश्यक संशोधन हेतु इसका ध्यान रखा जा सके. इस पुस्तिका के प्रकाशन में कार्यालय-प्रधान वन मुख्य संरक्षक (वन्यप्राणी), क्षेत्रीय अधिकारियों सहित छ.ग. राज्य जैव विविधता बोर्ड के समीर जोनाथन-र – सहायक वन संरक्षक, प्रतीक वर्मा- विधिक सलाहकार और विनोद नागवंशी-निज सहायक का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान रहा है. इसके लिए अरूण पांडेय ने सभी का आभार जताया है.

समाज में वन्यप्राणी अपराध के प्रति भय का वातावरण निर्मित हो, इसके लिए ये आवश्यक है कि अपराधियों के जमानत आवेदन का प्रबल विरोध किया जावे और विभिन्न न्याय दृष्टांतों का सहारा लेकर दोषी को दंडित कराने का पूरा प्रयास अभियोजन के द्वारा किया जाए. पुस्तिका के इस भाग में ऐसे ही कुछ अति महत्वपूर्ण (Landmark Judgments) न्यायालयीन निर्णयों का सारांश व निर्णय का पूरा भाग प्रस्तुत किया गया है, जो गत वर्षों में माननीय उच्चतम न्यायालय एवं विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों द्वारा वन्यप्राणी अपराध प्रकरणों में दिये गये हैं. इन निर्णयों का आधार लेकर यदि संबंधित अदालतों में अपील करते हुए प्रकरणों की सुनवाई व बहस के दौरान अभियोजन पक्ष के वकीलों के द्वारा अपना पक्ष व तर्क मजबूती से प्रस्तुत किया जावे, तो मेरा मानना है कि दोषसिद्धि हेतु अभियोजन के सफलता की संभावना अपेक्षाकृत बढ़ जायेगी और अपराधियों को दण्डित करने में मदद मिलेगी.

गत लगभग बीस वर्षों से मेरे द्वारा वन्यप्राणी प्रकरणों में विभिन्न न्यायालयों द्वारा पारित निर्णय के अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि यद्यपि ही निचली अदालतों द्वारा पारित निर्णयों में दोषमुक्ति की दर नब्बे प्रतिशत से ऊपर है, किंतु इन निर्णयों के विरुद्ध अपील किये जाने पर दोष सिद्ध होने की संभावना बढ़ जाती है.

छत्तीसगढ़ राज्य में गत लगभग 20 वर्षों में वन्यप्राणी अपराध प्रकरणों के संदर्भ में माननीय न्यायालयों द्वारा पारित निर्णयों के अध्ययन से दोषमुक्ति के जो कारण परिलक्षित हुये हैं (जिनका विस्तृत विवरण भाग-1 में दिया गया है), को दूर करने के उद्देश्य से इन निर्णयों का संकलन किया गया है. उम्मीद है कि इन निर्णयों के अध्ययन व उचित उपयोग से यह अभियोजन को मजबूत करने व क्षेत्रीय वन अधिकारियों और अन्य सर्वसंबंधितों हेतु सहायक साबित होगा.

इस पुस्तिका के प्रकाशन के लिए वन्यजीव अपराध विषयक प्रकरणों में विभिन्न न्यायालयीन निर्णयों के संकलन में छ.ग. राज्य जैव विविधता बोर्ड के विधिक अधिकारी श्री प्रतीक वर्मा का सराहनीय योगदान रहा.