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किसी दूसरे देश की फिलॉसोफी पर चल रहे विश्वविद्यालयों पर कितना भरोसा किया जा सकता है

विशेष आलेख  असल बात न्यूज़।। संदर्भ, विदेशी विश्वविद्यालयों का भारत में निमंत्रण  विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली द्वारा , विदेशी विश्वव...

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विशेष आलेख 

असल बात न्यूज़।।

संदर्भ, विदेशी विश्वविद्यालयों का भारत में निमंत्रण 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली द्वारा , विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में संस्थान खोलने देने के फैसले ने शैक्षिक बहस का मुद्दा बना दिया है । कई शिक्षाविद  इसका स्वागत करने में डर रहें हैं । कंही ये एक नई समस्या  न बन जाय । एक तरफ भारत अपनी सांस्कृतिक मूल्यों को संभाल के तरक्की के रस्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहा है । विदेशी विश्वविद्यालयों से हमारी अपेक्षाएं कितना पूरी होंगी ये सटीक अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है । भारत में वर्तमान उच्च शिक्षा व्यवस्था में अपना योगदान देने वाले एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय एवं बयालीस हजार से अधिक कॉलेजों से पास होने वाले लाखों छात्रों को रोजगार का संकट रहता है, दलील यह दी जाती है की ये छात्र कौशलों में निपुण नहीं होते, इनकी शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर खरी नहीं उतर रही । 

कमियों को खोजना एवं उनको दूर किये जाने का प्रयास सतत जरूर किया जाना चाहिए । ये कह देना की यंहा के संस्थान काबिल छात्र देने में नाकाम हैं, ये गलत होगा। इस विशाल देश में हर साल लाखों छात्र ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, एवं पीएचडी डिग्री लेकर अपना भविष्य खोजने में लग जाते हैं, जनसँख्या के अनुसार सभी को नौकरी मिलना आसान नहीं रहता, फिर भी अधिकांश छात्र / छात्राएं कुछ न कुछ रोजगार तो कर ही लेते है। ये भी दलील दी जा रही हैं की निजी विश्वविद्यालयों की मंहगी शिक्षा समाज के केवल 5 से 10 प्रतिशत छात्रों को ही मिल पा रही है, अब इसी कड़ी में ये विदेशी विश्विद्यालय भी जुड़ जायेंगे, जिसमे शिक्षा प्राप्त करना सब के बस की बात नहीं होगी। कैम्ब्रिज, ऑक्सफ़ोर्ड, बोस्टन, हॉवर्ड जैसे विश्विद्यालय में दाखिले के लिए छात्रों को बहुत अधिक फीस चुकानी पड़ेगी, क्योंकि डॉलर और रुपये का फर्क भी फीस जमा करने में बाधा डालेगा ।

जंहा हम शिक्षा जगत में विश्वगुरु बनने का सपना देख रहे है, वहां किसी दूसरे देश की फिलॉसोफी पर चल रहे विश्वविद्यालयों पर कितना भरोसा किया जा सकता है , यह विचारणीय प्रश्न हो सकता हैं , जिसका उत्तर भविष्य में छिपा हैं । भारत की अपनी एक गौरवशाली पृष्ठभूमि रही है । हमारी सभ्यता एवं संस्कृति प्राचीनकाल से आगे बढ़ते जा रही है । कितने आक्रमणकारी आये और वापस गए । मुग़लों ने सैकड़ों साल राज किया, अंग्रेजों ने गुलाम बनाया किन्तु हमारी सभ्यता, संस्कृति एवं शिक्षा में उतना चोट नहीं आयी, जितना अभी विदेशी विश्वविद्यालयों के आने पर समाज में एक डर का माहौल बन रहा है । इन विश्वविद्यालयों से पढ़कर निकलने वाले छात्र क्या हमारी सभ्यता एवं संस्कृति को आगे लेकर जा पाएंगे या फिर फेमा कानून का पालन करते हुए भारतीय रुपये को डॉलर, यूरो, पाउण्ड में मुनाफा कमाकर ये विश्विद्यालय अपने देश ले जायेंगे । निजी विश्वविद्यालयों में काम करने वालों के लिए चुनौतीपूर्ण समय आ सकता है ।

क्या ये विश्विद्यालय भारत जैसे विशाल देश में शिक्षा को सर्व सुलभ करा पाएंगे ? यदि नहीं, तो फिर क्यों नहीं हम अपने संसाधनो एवं शिक्षा व्यवस्था को अपग्रेड करने के बजाय इनकी शरण में जा रहे, यदि ऐसा हुआ तो भारतीय विश्वविद्यालयों की भूमिका क्या होगी ? क्या उनको उनके हाल पर छोड़ दिया जायेगा ? तर्क यह दिया जा रहा हैं, कि आने वाले सालों में विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों का खर्च अरबों डॉलर बचाया जा सकता है, जो काफी हद तक सही प्रतीत होता है । यह तर्क भी दिया जाता है, कि भारतीय विश्वविद्यालय विदेशियों से प्रतियोगिता करके अपना स्तर सुधार सकेंगे । 

यह देश बहुत विविधताओं से भरा है, यही इसकी खूबसूरती और यही इसकी मजबूती का कारण भी है, कि सैकड़ों साल गुलाम रहने और शिक्षा, संस्कृति पर चोट होने के बाद भी आज हम तीव्रगामी रूप से आगे बढ़ रहे हैं, किन्तु प्रश्न यही है, कि हम कितनी तेजी से हमारी विरासतों, संस्कृतियों को संजोते हुए आगे बढ़ सकते हैं, कंही यह नया प्रयोग हमें इधर कुँआ, उधर खांई वाली स्थिति में ना ले जाये ।अपनी जरूरतों एवं संसाधनों के अनुसार कार्य करना ठीक रहता है, किसी और के भरोसे जिम्मेदारियों को सौपना या हिस्सेदारी देना शायद जल्दबाजी में किया गया निर्णय न साबित  हो । वैसे भी नए प्रयोगों से बचने वाले कुछ नया और बेहतर कर पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं ।   

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली के Setting Up and Operation of Campuses of Foreign Higher Educational Institutions in India Regulation 2023 के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न शिक्षा विदों एवं वाइस चांसलर से सुझाव मांगे गए हैं । उपरोक्त क्रम में भारत सरकार का यह कदम सराहनीय प्रतीत होता हैं । सरकारी एवं प्राइवेट उच्च शिक्षण संस्थानो को एक प्रतिस्पर्धा का माहौल मिलेगा एवं जो छात्र / छात्राएं विदेशों में जाकर मंहगी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं उसमें भी काफी विराम लगेगा । क्योंकि उपरोक्त विश्व रैंक 500 तक वाले विदेशी संस्थानों को ही  भारत में आमंत्रित किया जा रहा हैं  छात्रों का बहार / विदेश में आने-जाने तथा रहने का खर्च बचेगा । साथ ही उपरोक्त अध्धयन हेतु जो पैसा विदेशों में चला जाता था, उस पर भी विराम लगेगा । 

प्रो. के पी यादव , कुलपति , मैट्स विश्वविद्यालय , रायपुर, छत्तीसगढ़