दुर्ग । असल बात न्यूज़।। 00 विधि संवाददाता विवाह के लिए तैयार और सहमत होने का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि वह माता अपनी अप्राप्तवय ...
दुर्ग ।
असल बात न्यूज़।।
00 विधि संवाददाता
विवाह के लिए तैयार और सहमत होने का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि वह माता अपनी अप्राप्तवय पुत्री का उसकी नाबालिक अवस्था में विवाह करने के लिए सहमत और तत्पर है। अप्राप्तवय बालिका से विवाह कर लेना विधि के अनुरूप विवाह नहीं है। न्यायालय ने यह फैसला सुनाते हुए इस मामले में अभियुक्त को दोष सिद्ध पाए जाने पर 20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ अभियुक्त पर ₹50 हजार रुपए का अर्थदंड अधिरोपित किया गया है जिसके ना अदा करने पर उसे एक साल का अतिरिक्त सश्रम कारावास भुगतना होगा।
अपर सत्र न्यायाधीश चतुर्थ एफटीएससी विशेष न्यायालय श्रीमती संगीता नवीन तिवारी के न्यायालय ने यह फैसला सुनाया है। यह अपराध दिसंबर 2020 का है जिसमें जनवरी 2021 में एफ आई आर दर्ज हुआ था और अब उसमें न्यायालय का फैसला आ गया है। न्यायालय ने अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366, 376( 2) ढ एवं लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत दोषी पाया है।
न्यायालय ने राज्य सरकार के द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत धारा 357के अंतर्गत गठित आहत प्रतिकर योजना से अभियोक्तरी को पुनर्वास हेतु विधि अनुरूप राशि देने का भी निर्देश दिया है। मामले में आरोपी 14 वर्षीय बालिका को अच्छे से पढ़ाई लिखाई कराने के लिए ले गया और वहां शादी हो गई है कहकर बार बार दुष्कर्म किया। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि किसी अवयस्क बालिका को उसके विधिक संरक्षक की सहमति के बिना बहलाकर ले जाया जाता है तो वहां व्यपहरण का अपराध पूर्ण हो जाता है। न्यायालय ने अभियुक्त की ओर से धारा 29 एवम 30 के प्रावधान के अनुसार अपनी प्रतीरक्षा में लिए गए आधार को निराधार पाया।
न्यायालय के द्वारा अभियुक्त को लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत 200 सिद्ध पाए जाने पर 20 वर्ष का सश्रम कारावास और ₹50000 के अर्थदंड की सजा सुनाई गई है। अर्थदंड की संपूर्ण राशि अपील अवधि के बाद अभियोक्तरी को देने का आदेश दिया गया है।