नयी दिल्ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के लिए वनों को जरूरी बताते हुए कहा है कि वनों को जीवंत एव...
नयी दिल्ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने
सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के लिए वनों को जरूरी बताते हुए कहा
है कि वनों को जीवंत एवं स्वस्थ बनाये रखने में सभी को योगदान देना चाहिए।
श्रीमती मुर्मू ने भारतीय वन सेवा के परिवीक्षाधीन अधिकारियों को संबोधित
करते हुए कहा कि विकास आवश्यक है लेकिन इसके साथ स्थायित्व भी आवश्यक है।
उन्होेंने कहा, “ प्रकृति ने हमें भरपूर उपहार दिए हैं तथा यह हममें से
प्रत्येक का कर्तव्य है कि हम पर्यावरण के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी
बनें। हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को पुनर्जीवित प्राकृतिक संसाधनों और
स्थायी पारिस्थितिक तंत्र के साथ एक सुंदर देश का उपहार देना होगा।”
राष्ट्रपति ने कहा कि वन पृथ्वी पर सभी जीवधारियों के लिए आश्रयस्थल हैं।
वन आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने एवं कार्बन के बड़े अवशोषक के रूप में
कार्य करने के अलावा वन्यजीवों के आवास और लोगों के लिए आजीविका के स्रोत
हैं। साथ ही वन विश्व की कई लुप्तप्राय प्रजातियों का घर होने के साथ साथ
औषधीय जड़ी बूटियां भी उपलब्ध कराते हैं।
श्रीमती मुर्मू ने कहा कि देश में वन में रहने वाले समुदायों के अधिकारों
पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। भारतीय वन सेवा के अधिकारियों का
उत्तरदायित्व है कि वे इन समुदायों को जैव-विविधता के संरक्षण के प्रति
उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों के बारे में जागरूक करें।
राष्ट्रपति ने कहा कि इन दिनों देश और विश्व के विभिन्न भागों में वनों में
आग लगने की कई घटनाएं हो रही हैं। इसे देखते हुए हमारे सामने न केवल वनों
के संरक्षण की बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की भी बड़ी चुनौती है।
उन्होंने अधिकारियों से कहा की वे वन संसाधनों के सतत प्रबंधन के लिए
नवाचार करें और नए तरीके खोजें। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को वनों को ऐसी
अवैध गतिविधियों से बचाने में प्रभावी भूमिका निभानी चाहिए जिनका
नकारात्मक आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव पड़ता है।