Field report अशोक त्रिपाठी रायपुर, दुर्ग। असल बात न्यूज़। जो लोग कह रहे हैं कि दशहरा दिवाली में पटाखे फोड़ने से भयंकर प्रदूषण फैलता है और यह...
Field report
अशोक त्रिपाठी
रायपुर, दुर्ग। असल बात न्यूज़।जो लोग कह रहे हैं कि दशहरा दिवाली में पटाखे फोड़ने से भयंकर प्रदूषण फैलता है और यह प्रदूषण बीमारी फैलाने में बहुत खतरनाक साबित हो सकता है उन सभी को यह चित्र भी देखना चाहिए। गांव की क्या हालत कर दी जा रही है। किस तरह से हरे - भरे गांवो को धूल के गुबार के नीचे धकेल दिया जा रहा है।
चित्र में आप सभी को साफ दिख रहा होगा कि जमीन की सतह से 500 फीट तक की ऊंचाई तक कैसे धूल का गुबार भर गया है।जिस इलाके में यह धूल का गुबार फैला हुआ है उस इलाकों के लोगों को सांस लेने में कितनी परेशानी होती होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि यह धूल सिर्फ उस इलाके में फैली हुई है जहां से यह उठ रही है बल्कि बताया जाता है कि इसका दायरा कई किलोमीटर दूर तक है। सामान्य व्यक्ति भी जानता है कि धूल से सांस से संबंधित बीमारियां पैदा होती है। और जब इस तरह की धूल प्रतिदिन उठती और भरती हो तो प्रभावित इलाके में सांस की बीमारी से संक्रमित होने वालों की संख्या लगातार बढ़ते जाना स्वाभाविक ही है। अस्थमा, दमा तथा सांस से संबंधित दूसरे रोग से प्रभावित इलाके के लोग लगातार जकड़ते जाते हैं। और अब तो लगता है कि यह सब इस इलाके के लोगों के भाग्य में ही लिख दिया गया है।
प्रदूषण फैलाने के लिए औद्योगिक इलाकों को बहुत ज्यादा कोसा जाता रहा है। लेकिन यह चित्र शहरी इलाकों का नहीं है। ग्रामीण इलाकों की ऐसी दुर्गति हो रही है। जहां चारों तरफ खेत फैले हुए हैं। हरे भरे खेत और उनमें अभी धान की फसल लहहला रही है। धान की हरी-भरी खड़ी फसल पर यह धूल बैठ रही है और उस फसल को यह धूल कितना नुकसान पहुंचाएगी इसका पता आने वाले समय में चलेगा। अभी रोज धूल का गुबार उठता देख रहे हैं उसे जमते हुए देख रहे हैं।
असल में हर चीज में राजनीति हो रही है। वास्तविकता को नजरअंदाज किया जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में इस तरह से धूल का गुबार उठने और प्रदूषण फैलने की कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन यह हकीकत है। चित्र में यह साफ साफ दिख रहा है। अब गांव, पहले के जैसे हरे भरे पेड़ पौधों से, फसल से लहलहाते खेतों से पटे, फूलों की महक , सोंधी माटी की महक वाले गांव नहीं रह गए हैं। मोटी आमदनी के चक्कर में गांव की तस्वीर भी बदलती जा रही है।
नई योजनाओं ने गांव को बदल दिया है। गांव की जमीन को जगह-जगह खनिज निकालने के लिए लीज पर दे दिया गया है। उसके बाद उस जमीन से बड़े पैमाने पर खनिज के उत्खनन का कार्य शुरू हो जाता है। बेहिसाब उत्खनन। दुर्ग से पाटन मार्ग पर चले जाइए आपको प्रत्येक एक मिनट में रेत, गिट्टी से लदे भारी वाहन दौड़ते नजर आ जाएंगे। छत्तीसगढ़ माता की धरती का कितनी गहराई तक उत्खनन किया जा रहा है। धरती का सीना किस हद तक छलनी किया जा रहा है।इसे नियंत्रित करने वाला शायद ही कोई नजर आता है। और यह तो तय है कि जितने गाड़ियों, वाहनों में रेत गिट्टी लोड हो रही है रिकॉर्ड में उसकी उतनी संख्या नहीं होगी। राजस्व को नुकसान पहुंचाना बड़ी बात नहीं माने जाने लगा है। गंभीर बात है कि लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है। गांव के सीधे साधे, भोले भाले लोगो ने किताबों में पढ़ा है और सिर्फ सुना है कि बड़े उद्योगों, कल कारखानों से इतना विशाल प्रदूषण फैलता है। अब उसे अपने सामने, अपने आसपास देख रहे हैं। ग्रामीण ने बताया जब धूल का गुबार उठता है तो आसपास के लोगों का सांस लेना मुश्किल होने लगता है। लोगों में त्वचा से संबंधित बीमारियां भी हो रही है। विडंबना है कि जो जिम्मेदार लोग हैं, जिनका काम प्रदूषण नहीं फैलने देना है, प्रदूषण की रोकथाम करना है उन्हें ऐसे धूल के गुबार नहीं दिखते हैं। उन्हें धान की खड़ी फसल पर जम रहे धूल की परत भी नजर नहीं आती। उन्हें यह भी नजर नहीं आता कि यह धूल, प्रदूषण खड़ी फसल को नुकसान पहुंचा रहा है। शादी का भी होगा तो ऊपर से जो दबाव बनता है वह, यह सब उन्हें देखने और समझने नहीं देता।
चित्र में साफ- साफ दिख रहा है कि धूल का गुबार लगभग 500 फीट की ऊंचाई तक उठ रहा है। यह सभी को आसानी से दिख सकता है और यह सभी को समझ में आ सकता है। असल में यह चित्र सेलूद से कुछ आगे के एक गांव का है। पाटन के विभिन्न गांवो में बड़े पैमाने पर खनिज का उत्खनन किया जाने लगा है। गिट्टी के पत्थरों को तोड़ने के लिए विस्फोटक का उपयोग किया जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि इस विस्फोट की गूंज 5,6 किलोमीटर तक सुनाई देती है। लेकिन उनको नहीं सुनाई देती जिन्हें इसे सुनना चाहिए और इतना भीषण विस्फोट यहा होना चाहिए कि नहीं उसकी जांच करने की जिम्मेदारी उनके जिम्मे में है। असल में कहा जाता है कि अवैध दारू बेचने वालों और खरीद माफिया लोगों के हाथ बहुत लंबे होते हैं। इनकी पहुंच बहुत ऊपर तक होती है। इनका प्रभाव ऐसा होता है कि सब कुछ बदल देने में सक्षम लगते हैं। इनके फर्राटे भरते वाहनों से किसी ग्रामीण का कुचल जाना बड़ी घटना नहीं होती।यह लोग जब भारी विस्फोट से धरती को कपा देते हैं तो ऐसे में उसका कंपन महसूस कर भी सुनकर भी अनसुना कर दिया जाता है।
पटाखे से प्रदूषण फैलने की बात को लेकर चिल्लाने वाले लोगों को नगरीय क्षेत्रों की हालत की हालत की ओर भी ध्यान देना चाहिए । नगरीय क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण कितना अधिक बढ़ता जा रहा है इसको संज्ञान में लेना चाहिए। ध्वनि प्रदूषण बढ़ने की वजह से लोगों में चिड़चिड़ापन कितना बढ़ता जा रहा है, इसका आकलन करना चाहिए। ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए शायद ही कोई गंभीर दिख रहा है। कोरोना महामारी के फैलाव के संकट के समय में तेजी से बढ़ता ध्वनि प्रदूषण लोगों में टेंशन बढ़ा रहा है। रोज बढ़ते जा रहे ध्वनि प्रदूषण से बीमार लोगों, बुजुर्गों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है इसकी कल्पना की जा सकती है। परंतु इसकी चिंता करने वाला कोई नजर नहीं आता। अभी तो स्कूली बच्चों को घर में रहकर करना पड़ रहा है। ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ रही है। सब लोग बड़े जागरूक होने की बात करते हैं। नई सदी में पहुंचना चाहते हैं। लेकिन जो नई परिस्थितियां हैं, नई व्यवस्था बन रही हैं। भीषण कानफोडू शोर से किस तरह की नई समस्या पैदा हो रही है ऐसे तथाकथित जागरूक लोगों को शायद इसका आभास नहीं पाता। इन समस्याओं को समझने की मन स्थिति बनने लगे तो कई समस्याएं स्वयं ही सुलझ सकती हैं।
रायपुर पाटन, दुर्ग ब्यूरो
असल बात न्यूज़