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निरंकुशता की हद, पहले दबाव बनाकर फिर प्रलोभन देकर 6 महीने तक करता रहा शारीरिक शोषण, क्षेत्र में चारों तरफ आक्रोश व्याप्त

  ऐसे मामले में पास्को एक्ट के जैसे कड़े कानून की जरूरत, जिससे जिम्मेदार लोगों को ध्यान रहे कि विवेचना करने जाना है,कहीं अस्मत लूटने नहीं जा...

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 ऐसे मामले में पास्को एक्ट के जैसे कड़े कानून की जरूरत, जिससे जिम्मेदार लोगों को ध्यान रहे कि विवेचना करने जाना है,कहीं अस्मत लूटने नहीं जाना है।

दुर्ग।

असल बात न्यूज।।  

   00  अशोक त्रिपाठी    

ऐसी ही घटनाए सामने आती है तो लगता है कि हम,18 वी शताब्दी की मानसिकता,कुंठा से उबर नहीं सके हैं और एक,दूसरे को 21वीं शताब्दी में पहुंच जाने का झूठा भ्रमजाल दिखाते भटकते हैं। वही दूसरे को कुचल देने, दूसरों का सब कुछ छीन लेने, शोषण,दमन की मानसिकता,वही निरंकुशता, तानाशाही,वही हवशीपन, वही हैवानियत।लेकिन इस सब को  स्वीकार करने में हमें शर्म आती है और हम 21वीं सदी का सभ्य होने की दुहाई देते दिखने का दंभ भरते दिखते हैं।अमलेश्वर पाटन की उस पीड़ित महिला ने जिस तरह की शिकायत की है कि उसे किस तरह से प्रताड़ित किया गया,अपनी व्यथा बताई है, उससे ऐसी कई सारी बाते स्पष्ट सामने आ रही है कि वहां के तत्कालीन थाना निरीक्षक के कृत्य को भयानक गंदी, घिनौनी हरकत कहने से इनकार नहीं किया जा सकता है और वह पुलिस विभाग ही नहीं पूरे समाज माथे पर कलंक के जैसा है। ऐसी घटना पूरे समाज को शर्मसार कर देने वाली है। ऐसी घटना सामने आती है तो पूरा मन क्षोम और घृणा से भर उठता है। मन में एक टीस भर उठती है। जिस पर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है उसने ही दबाव बनाकर,ऐसा कृकृत्य किया है। जिस तरह का बताया गया है पीड़िता के बयान में यह बात भी सामने आई है कि उस निरीक्षक ने पीड़िता के घर जाकर,दबाव बनाकर उसका शारीरिक शोषण किया और 6 महीने तक शारीरिक शोषण करता रहा। ऐसे आरोपी की निरंकुश खतरनाक तानाशाही मानसिकता को आसानी से समझा जा सकता है। वह जाता था शासकीय काम निपटाने। अपराधी के रिपोर्ट की विवेचना करने। लेकिन करता क्या था यह सबके सामने आ गया है। शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाने को गंभीर अपराध की श्रेणी में माना जाता है और एक लोक सेवक इस तरह का कृकृत्य करता है तो उसे किस तरह से सबक सिखाए जाना चाहिए ?कैसी सजा मिलनी चाहिए ? इस पर बार-बार बहस होती रही है। आरोपी निरीक्षक अपने पद के प्रभाव का दबाव भी बनाता रहा, तो वहीं शादी करने का प्रलोभन भी देता रहा। उस पीड़ित महिला और उसके परिवार की व्यथा, आक्रोश की हम अपने आप को सभ्य कहने वाले लोग, सहज ही कल्पना कर सकते हैं,कि वह पीड़िता कैसे अपनी शिकायत लेकर लंबे समय तक  दर-दर भटकती रही। यहां से वहां जाती रही लेकिन उसकी बात, शिकायत, व्यथा ज्यादातर अनसुनी ही कर दी जाती रही। अच्छा हुआ कि वरिष्ठ अधिकारियों ने उसकी व्यथा,पीड़ा को समझा और कार्रवाई शुरू हुई।

पद पर आसीन हो जाने पर एक ताकत आ जाती है। यही ताकत कई बार निरंकुश, वहशी दरिंदा,मनमर्जी का मालिक, अहंकारी बना देती है, और दूसरों को तुच्छ समझते हुए कुचल देने की इच्छा शक्ति पैदा करती है। जिला पुलिस अधीक्षक डॉ अभिषेक पल्लव ने बताया है कि पीड़िता की शिकायत प्रथम दृष्टया ही प्रतीत होती है। हम स्वयं को सौभाग्यशाली  समझ सकते हैं कि एक वरिष्ठ अधिकारी तक शिकायत पहुंची तो वह शिकायत पहली ही नजर में सही महसूस की गई। लेकिन वह पीड़िता  6 महीने तक बार-बार तार तार होती रही, भटकती रही। उसकी सुनवाई नहीं हुई। कहीं से न्याय नहीं मिला। वरिष्ठ अधिकारियों ने उसकी पीड़ा को समझा तब उसके बाद मामले में कार्रवाई शुरू हुई है। 

यह बात सामने आ रही है कि उस निरीक्षक, ने पीड़िता के घर विवेचना करने के नाम पर जाना शुरू किया। अभी हमारे पास इसकी जानकारी नहीं है कि वह निरीक्षक, किस मामले की विवेचना कर रहा था और उसके विवेचना के लिस्ट में क्या पीड़ित महिला भी शामिल थी। पीड़िता से भी अगर पूछताछ की जानी थी तो उससे पूछताछ करने के लिए क्या किसी महिला सहकर्मी को ले जाना उचित समझा गया था अथवा नहीं। अथवा कानून व्यवस्था के नाम पर आज भी क्या कहीं आदिम जमाने का कानून तो नहीं चल रहा है। 

विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने ही जानकारी दी है कि वह निरीक्षक पीड़िता का पिछले 6 महीने से शोषण करता रहा। इससे समझा जा सकता है कि उसकी मानसिकता कितनी विकृत हो गई थी। एक जिम्मेदार ओहदेदार अधिकारी पहले पद का डर दिखाकर फिर दबाव बना कर शारीरिक शोषण करने लगा। हद तो यह हो गई कि शारीरिक शोषण करने वाला ही उसकी बात नहीं मानने पर पीड़िता के साथ मारपीट भी करने लगा उसके परिवार के सदस्यों के साथ भी मारपीट की गई।परिवार और समाज आज भी कितना असहाय हो सकता है इस घटना से इसे भी समझा जा सकता है। पीड़िता उसके परिवार के लोग अपनी पीड़ा स्वाभाविक रूप से कई लोगों को बताते रहें होंगे, लेकिन संभवत किसी ने उन्हें टाल दिया तो कइयों ने उसकी  पीड़ा शिकायत तो सुनी ही नहीं होगी। कानून के डंडे में फंस जाने का डर लोगों की जुबान पर ताला लगा देता है। एक किसी से भी पूछ लेता है कि मेरे थाना क्षेत्र में क्या कर रहे हो। निरीक्षक को विभाग से वाहन मिला हुआ होता है। कोई निरीक्षक वाहन से कांव कांव करता हुआ विवेचना करने पहुंचता है जिसके मन में छल भरा हुआ है, जिसके मन में पाप भरा हुआ है, जिसके भीतर दरिंदगी छिपी हुई है तो वह जिस घर पहुंचता है उसके परिवार के सदस्यों की क्या हालत होती रही होगी, बयां नहीं किया जा सकता। हमें बताया गया है,पढ़ाया गया है कि अंग्रेजी शासनकाल में ऐसी ही दरिंदगी होती थी। इसी तरह से दमन किया जाता था। आम लोगों पर ऐसे ही क्रूर मानसिकता के साथ अत्याचार किया जाता था। शोषण किया जाता था। लूट लिया जाता था। जब आज भी ऐसी ही घटना सामने आती है तो यही लगता है कि हम उस दमन, अत्याचार से अभी उबर नहीं सके हैं। वह जुल्म झेलना हमारे लिए अभी बाकी है।

ऐसी जो घटनाएं आज सभ्य समाज में सामने आ रही हैं वह हम सबके लिए चिंताजनक है। यहां कहीं राजनीति की बात नहीं है। जब हम नारी शक्ति को बराबरी का दर्जा दे रहे हैं, उनके निर्भीकतापूर्वक कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात करते हैं, उस समय ऐसी घटनाएं सामने आती हैं तब वास्तव में पता चलता है कि हम धरातल पर असलियत में कहां पर हैं। हमारी असलियत सामने आ जाती है। कानून व्यवस्था का चेहरा सामने आ जाता है। दूसरों को निगल  जाने का जो दंभ है,उसमे निरंकुशता का कुटिल चेहरा सामने आ जाता है। तब पता चलता है कि हमने सभ्यता की सफेद चादर जरूर पहन ली है लेकिन समाज जिन पीड़ाओं से वर्षों से जूझता रहा है वास्तव में हम उससे आज भी जूझ रहे हैं। उस पीड़ित महिला की व्यथा को समझ पाना सबके लिए आसान नहीं है जिसने इतनी दरिंदगी और  वहशीपन को झेला है। फिर भी उम्मीद की जा सकती है कि उसे न्याय जरूर मिलेगा। ऐसी घटनाएं होती हैं तभी  समझ आता है कि हमें अभी ऐसे कानून बनाने की भी जरूरत है कि जिम्मेदार लोगों को समझ आ सके की विवेचना करने जाना है तो कहीं अस्मत लूटने नहीं जाना है।