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पास्को एक्ट 2

पास्को एक्ट 2 महिलाएं समाज का आधा हिस्सा हैं। वे घर परिवार की रीढ़ होती हैं।  महिलाओं का सम्मान होता है, उन्हें समुचित दर्जा दिया जाता है, व...

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पास्को एक्ट 2


महिलाएं समाज का आधा हिस्सा हैं। वे घर परिवार की रीढ़ होती हैं।  महिलाओं का सम्मान होता है, उन्हें समुचित दर्जा दिया जाता है, वहां कहा जाता है कि देवता निवास करते हैं। लेकिन हजारों वर्ष पहले के दिनों के उलट, सदियों से विभिन्न कारणों से हमारी महिलाओं को घरों के भीतर रखा गया। हमारे समाज में आज भी विकृत मानसिकता के लोग बसे हुए हैं। वह स्त्री को सिर्फ भोग की वस्तु समझते हैं। ऐसे लोगों को लगता है कि सारा अधिकार उनके पास है। स्त्री के पास कोई अधिकार नहीं है। ऐसी मानसिकता के लोग, नारी का हर हाल में नमन करना चाहते हैं कुशल लेना चाहते हैं शोषण करना चाहते हैं। और यह नारी एक छोटी बच्ची भी हो सकती है एक अल्पवय लड़की भी हो सकती है। दुनिया की कुटिल चालों को नहीं समझने वाली युवा किशोरी हो सकती है। तरह-तरह के चक्र चक्र से उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश की जाती है। अपने कुचक्रों के जाल में दबोच लेने की कोशिश की जाती है। ऐसे शातिर लोग उसे समझाने की कोशिश में लग जाते हैं कि वह उसके सच्चे हितैषी हैं। वे ही उसके लिए पूरी दुनिया में सब कुछ कर सकते हैं। प्रलोभन देकर बनाया बदला जाता है। यह कुचक्र जाल इतने शातिराना तरीके से रचा जाता है कि यह किशोरी  इस शातिराना  मकड़जाल में फस कर अपने परिवार जनों से भी लड़ने पर उतारू हो जाती है। और वह जब सब कुछ लुटा बाकी है उसकी अस्मत लूटी जाती है तब उसे वास्तविकता समझना आपकी आता है और वह तब तक समाज में परिवार में कहीं भी कुछ करने में असमर्थ हो जाती है,।

 आज विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं ने बहुत कुछ हासिल किया है। जब महिलाएं असाधारण कार्य करती हैं, तो उनका नाम लिया जाता है और उनकी सराहना की जाती है और राष्ट्र उन्हें स्वीकार करता है। वे कई युवाओं के लिए आदर्श बन जाती हैं और इसीलिए लड़कियां बड़े सपने देख रही हैं क्योंकि उन्हें यह मालूम है कि नीतियां उनके पक्ष में हैं और उन सपनों को साकार किया जा सकता है।



युवा किसी राष्ट्र के विकास के आधार हैं। वे राष्ट्र के सबसे ऊर्जावान भाग हैं और इसलिए उनसे बहुत उम्मीदें हैं। सही मानसिकता और क्षमता के साथ युवा राष्ट्र के विकास में योगदान कर सकते हैं और इसे आगे बढ़ा सकते हैं।युवा ऊर्जा से भरी नदी की तरह है, जिसके प्रवाह को एक सही दिशा की आवश्यकता है।

आधुनिक युवा

आज का युवा प्रतिभा और क्षमता वाला है। आज का युवा सीखने और नई चीजों को तलाशने के लिए उत्सुक हैं। युवा पीढ़ी आज विभिन्न चीजों को पूरा करने की जल्दबाजी में है और अंत में परिणाम प्राप्त करने की दिशा में इतना मग्न हो जाता है कि उन्होंने इसका चयन किस लिए किया इसकी ओर भी ध्यान नहीं देते हैं।

पुरानी पीढ़ियां अक्सर युवाओं को आवेगपूर्ण और गुस्सैल स्वभाव के कारण गंभीरता से नहीं लेती हैं। वे यह नहीं समझ पाते हैं की उनका यह स्वभाव मुख्य रूप से इस चीज़ का परिणाम है कि उनकी कैसे परवरिश की गई है। इस प्रकार प्रत्येक पीढ़ी का अपनी अगली पीढ़ी को शिक्षित करने का कर्तव्य है ताकि वे उन्हें और राष्ट्र को गर्व करने का मौका दे सकें।

जिम्मेदार युवा कैसे तैयार करें?

इस दुनिया में मुख्य रूप से दो प्रकार के लोग हैं – पहले वो जो जिम्मेदारी से काम करते हैं और निर्धारित मानदंडों का पालन करते हैं और दूसरे वो जो मानदंडों पर सवाल उठाते हैं और गैर जिम्मेदार रूप से काम करते हैं। हालांकि तर्क के आधार पर मानदंडों पर सवाल उठाने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन गैर जिम्मेदारियों से कार्य करना स्वीकार्य नहीं है। आज के युवाओं में बहुत सी क्षमताएं हैं और यह माता-पिता और शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे सही दिशा में उनकी रचनात्मकता और क्षमता को निर्देशित करें। यहां कुछ चीजें बताई हैं जिनसे आप जिम्मेदार युवाओं को तैयार कर सकते हैं:

  1. प्रारंभिक शुरुआत करें

अपने बच्चे को नैतिक मूल्यों या और काम सिखाने के लिए उनकी 10 या 10 साल से अधिक की उम्र के लिए इंतजार न करें। इसकी शुरुआत तब करें जब वे बच्चे हो। उन्हें सिखाएं कि कैसे सार्वजनिक रूप से व्यवहार करें, अलग-अलग कार्य और अन्य चीजों को एक शुरुआती उम्र से कैसे संभाले। बेशक उन्हें कुछ भी पढ़ाते वक्त या उनके द्वारा किए किसी कार्य को जांचने के दौरान उनकी आयु को ध्यान में रखें।

  1. नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहित करें

यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने बच्चों को क्या सही है और क्या गलत है इसके बारे में सिखाएं। उनकी उम्र के आधार पर उन्हें समय-समय पर नैतिक शिक्षा दें। इसके साथ ही उन्हें बुरे व्यवहार या कार्यों के परिणाम पता करें।

  1. उन्हें मदद करने की अनुमति दें

अपने बच्चों को हर समय लाड़-प्यार करने की बजाए उन्हें आपकी सहायता करने दें। छोटे कार्यों को उन्हें करने दें जैसे कि आप खाने की मेज व्यवस्थित करने या फलों और सब्जियों को अलग करने या खिलौने को सही जगह पर रखने में उनसे मदद ले सकते हैं। यह उनमें ज़िम्मेदारी की भावना को जन्म देता है और उन्हें जीवन में बड़ी जिम्मेदारियों को लेने के लिए तैयार करता है।

  1. सराहना

अपने बच्चों के अच्छे काम की सराहना करें। यह उन्हें बार-बार अच्छे व्यवहार को करने के लिए प्रोत्साहित करने मदद करेगा और यही अंततः उनके व्यवहार में शामिल हो जाएगा। हर बार उन्हें इनाम देने की कोशिश न करें।

जैसे-जैसे आप उन्हें बताएंगे कि सही और क्या गलत है, उन्हें नैतिक शिक्षा देंगे और कार्य सौंपगें तो उनके प्रति बहुत कठोर ना बनें। आपको यह समझने की ज़रूरत है कि ऐसा वक़्त भी हो सकता है जब वे आपकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरेंगे और इसमें कोई बुराई नहीं है।

समाज में युवाओं की भूमिका

अगर देश में युवाओं की मानसिकता सही है और उनके नवोदित प्रतिभाओं को प्रेरित किया गया तो वे निश्चित रूप से समाज के लिए अच्छा काम करेंगे। उचित ज्ञान और सही दृष्टिकोण के साथ वे प्रौद्योगिकी, विज्ञान, चिकित्सा, खेल और अन्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं। यह न केवल उन्हें व्यक्तिगत रूप से और पेशेवर रूप में विकसित करेगा बल्कि पूरे राष्ट्र के विकास और प्रगति के लिए भी योगदान देगा। दूसरी ओर यदि देश के युवा शिक्षित नहीं हैं या बेरोजगार हैं तो यह अपराध को जन्म देगा।

निष्कर्ष

युवाओं में एक राष्ट्र को बनाने या बिगाड़ने की शक्ति है। इसलिए युवा दिमाग का पोषण बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए ताकि उनमें जिम्मेदार युवाओं को विकसित किया जा सके।

निबंध 4 (600 शब्द)

परिचय

युवा उस पीढ़ी को संदर्भित करता है जिन्होंने अभी तक वयस्कता में प्रवेश नहीं किया है लेकिन वे अपनी बचपन की उम्र को पूरी कर चुके हैं। आधुनिक युवक या आज के युवा पिछली पीढ़ियों के व्यक्तियों से काफी अलग हैं। युवाओं की विचारधाराओं और संस्कृति में एक बड़ा बदलाव हुआ है। इसका समाज पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव पड़ा है।

आधुनिक युवकों की संस्कृति

मानसिकता और संस्कृति में परिवर्तन के लिए एक कारण पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव है और दूसरा तकनीक के क्षेत्र में बढ़ती उन्नति है।

पहले ज़माने के लोग एक-दूसरे की जगह पर जाते थे और साथ में अच्छा वक्त बिताते थे। जब भी कोई ज़रूरत होती थी तो पड़ोसी भी एक-दूसरे की मदद के लिए इक्कठा होते थे। हालांकि आज के युवाओं को यह भी पता नहीं है कि बगल के घर में कौन रहता है। इसका मतलब यह नहीं है कि वे लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं करते हैं। वे सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ मिलते-जुलते हैं जिनसे वे सहज महसूस करते हैं और ज़रूरी नहीं कि वे केवल किसी के रिश्तेदार या पड़ोसी ही हो। तो मूल रूप से युवाओं ने आज समाज के निर्धारित मानदंडों पर संदेह जताना शुरू कर दिया है।

आधुनिक युवक अपने बुजुर्गों द्वारा निर्धारित नियमों के अनुरूप नहीं चलते हैं। वे अपने माता-पिता और अभिभावकों का साथ तो चाहते हैं 

युवा शक्ति राष्ट्र का प्राण तत्त्व है। वही उनकी गति है, स्फूर्ति है, चेतना है, आज है, राष्ट्र का ज्ञान है। युवाओं की प्रतिभा, पौरुष, तप, त्याग और गरिमा राष्ट्र के लिए गर्व का विषय है। युवा वर्ग का पथ, संकल्प और सिद्धियाँ राष्ट्रीय पराक्रम और प्रताप के प्रतीक हैं। उनकी शक्ति अमर है। युवा शापित राष्ट्र की दूसरी रेखा है तथा कल की कर्णधार है जिन्हे देश का संचालन करना है। अपनी शक्ति, सामर्थ्य और साहस से देश को परम वैभव तक पहुँचाने का दायित्व युवाओं को स्वीकारना है। युवाओं का ऊर्जा अक्षत, यश अक्षय, जीवन अंतहीन, पराक्रम अपराजेय, आस्था अडिग और संकल्प अटल होता है। 16 उम्र से 35 उम्र तक के युवाओं की ताकत ही युवा शक्ति है।


युवाओं का गौरवशाली इतिहास

युवाओं का गौरवशाली की कई इतिहास रची गयी है। युवा शक्ति को देश-सेवा, समाज सेवा और विश्व कल्याण की कथाएँ इतिहास के पन्नों पर स्वर्णक्षरों में अंकित हैं । युवा ने मृत्यु के अधिष्ठाता यमराज तक को झुका दिया था। भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धारक शंकराचार्य 32 वर्ष की आयु में प्रत्येक भारत को एकता के सूत्र में झुकाकर वेदान्त दर्शन की विजय दिग्दिगंत में फहरा गये। वीर सावरकर, चाफेकर बंधु, मदनलाल धींगड़ा, चन्रशेखरआजाद, अशफाकुल्लाखाँ, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि कितने युवा थे जिनके अस्त्रों से अग्नि की ज्वालाएँ फूटती थीं। ब्रिटिश साम्राज्यवाद को भस्म करने के लिए 23 वर्ष की आयु में आर्य भट्ट और 17 वर्षीय रामानुजम्‌ ने गणित और ज्योतिष में जो चमत्कार किए, वे आज भी अद्वितीय हैं। केवल 14 वर्ष की अल्पायु में ही सन्त ज्ञानेश्वर ने श्रीमद्भगवद्गीता पर अपूर्व भाष्य लिखकर सबको चमत्कृत कर दिया था।


आज के युवा शक्ति

आज के युवा शक्ति की राह भ्रष्ट हो रही है। उनका धार्मिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय चरित्र मानो मिट गया है। स्वतंत्रता के पश्चात्‌ धर्म निरपेक्षता के नाम पर धर्म से परहेज की भावना पनपाई गई, पर धार्मिक उत्सवों में भाग लेने के लिए उकसाया गया। सत्ता सुरक्षा के लिए खोखले मस्तिष्क वाले प्रशासनिक ढाँचे को जुटाया गया, जिसे मनचाहे ढंग से संचालित किया जा सके। बौद्धिक चिन्तनशील समाज के बदले ठग वह भींड बटोरी गई, जिसने राजाओं-नवाबों के चारणों को भी नीचा दिखा दिया। टेलीविजन और इंटरनेट की दुनिया टेलीविजन और इंटरनेट की दुनिया ने युवकों के लिए सूचनाओं का भण्डार लगा दिया है। इसलिए उनका आई.क्यू. अर्थात्‌ बुद्धिलब्धि काफी ऊँचा होता है। इस हाई-फाई सूचना तंत्र ने उनकी मौलिक कल्पना-शक्ति व तार्किक क्षमता को नष्ट किया है। वे स्थितियों से निबटने और विरोधी वातावरण में खुद को संतुलित रखने में अक्षम हो गए है । उनकी सहन शक्ति कमजोर हो गयी है तथा वे जल्द होशो-हवास खो बैठते हैं। इनका संज्ञानात्मक विकास (कॉगनिटिव डेवलपमेंट) कम हो पाता है और मनोवेगपूर्ण व्यक्तित्व(इम्पल्सिव पर्सनॉल्टी) का स्वामी बन जाता है। उनके लिए उनकी मर्जी ही सब कुछ हो जाती है।


नैतिक मूल्यों का विनाश

नैतिक मूल्यों से हीन आज के युवा सड़कों पर नारियों के आभूषण झटकता है, पुरुषों के पौरुष को चाकू और पिस्टल से चुनौती देते है। लूट मचाते है, चोरी करते है, बैकों में डाके डालते है तथा आंदोलन खड़े करते है। दूसरी ओर सुन्दरी नारी को अपना साथी बनने को विवश करते है। आज का भारतीय युवक सिगरेट, शराब, भाँग, तथा अन्य नशीले पदार्थों में आत्मविस्मृत रहना पसंद करने लगे है। जो आज के युवक अपने नैतिक मूल्यों का विनाश की और ले जा रहे हैं।

युवा शक्ति हमारे राष्ट्र के गौरव है तथा हमारे राष्ट्र को विकास और उनत्ति के और ले जाने के लिए एक सक्षम शक्ति है। लेकिन आज के युवा अपने गलत दिशा की और बढ़ते जा रहे है। उन्हें खुद पे काबू नहीं रहता है तथा कई गलत कामो में हिस्सा लेकर देश की विकास को खंडित कर रहे है। आज के युवा को समझना होगा की उन्ही के हाथ हमारे देश का भविष्य निर्भर है। देश को युवा शक्ति की अधिक जरुरत है।

*नारी शक्ति: राष्ट्र की शक्ति*


*सुधा मूर्ति, पद्म भूषण सम्मान प्राप्त  शिक्षाविद, लेखिका और समाजसेवी*



यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता...


यह श्लोक हजारों वर्ष पहले हमारे भारत में उस समय लिखा गया था जब हमारे पूर्वज नारी की शक्ति से अच्छी तरह परिचित थे। ‘महिला’ से आशय सिर्फ स्त्री लिंग नहीं है, बल्कि इसका अर्थ इससे भी कहीं आगे है। 


प्राचीन भारत में, महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर माना जाता था और उन्हें बौद्धिक बहसों, प्रशासन, संपत्ति उत्तराधिकार, विद्वतापूर्ण ज्ञान आदि के मामले में मौके दिए जाते थे। बाद में महिलाओं को शिक्षा, सामाजिक स्थिति और काफी हद तक उनके अस्तित्व से वंचित कर दिया गया। उनकी पहचान केवल एक बेटी के रूप में, एक पत्नी के रूप में या एक मां के रूप में ही सिमट गई और उन्हें समानता एवं साहस के गौरव से वंचित हो जाना पड़ा।


मुझे लगता है कि महिलाएं पेड़ से बंधी मादा हाथी की तरह होती हैं। एक मादा हाथी के लिए  एक पेड़ को उखाड़ देना कोई बड़ी बात नहीं है, और वह उसे आसानी से खींच सकती है। लेकिन मादा हाथी सोचती है कि वह जंजीर से बंधी है और इसलिए वह अपनी क्षमता का उपयोग नहीं करती है। महिलाओं के मामले में भी कुछ ऐसा ही है। वे कुशल प्रबंधक होती हैं, परिवार की नींव होती हैं, बेहद मेहनती होती हैं; लेकिन वे इस मानसिकता में जकड़ी होती हैं कि वे अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकतीं या अपनी क्षमताओं का उपयोग नहीं कर सकतीं।


इस तरह से सोचना संभव है क्योंकि किसी भी हलचल या लहर को प्रेरित करने के लिए एक प्रस्थान बिंदु की जरूरत होती है। यह बिंदु मिलेगा कैसे? कौन उनकी मदद करेगा? कौन उन्हें विश्वास दिलाएगा? कौन उनकी मदद करने के लिए नीति प्रदान करेगा या कौन पहली बार उसकी क्षमता को सामने लाएगा?  धुएं से भरे रसोईघर से उसका बाहर आना कौन स्वीकार करेगा?  एक नया उद्यम शुरू करने की इच्छा जताने पर कौन उसकी मदद करेगा? कौन खेल, स्वास्थ्य, रक्षा और विमानन के क्षेत्र में उसकी क्षमता की सराहना करेगा?


एकबारगी यह सब हो जाए,  तो वह राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में भरपूर क्षमता के साथ खुद को आगे बढ़ाएगी। उनके जीवन में इस तरह का अदभुत बदलाव एक ऐसे सही नेता की वजह से संभव हुआ है, जिन्होंने महिलाओं की स्थिति को लेकर बात की और लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया कि बेटियां ईश्वर का अनमोल उपहार हैं। उक्त नेता ने इस देश के सभी आम पुरुषों व महिलाओं के साथ अच्छे जीवंत और वास्तविक उदाहरणों के साथ एक कार्यक्रम के माध्यम से बातचीत शुरू की। उन्होंने सही शब्दों के साथ सही वादा किया और सही दिशा में आगे बढ़े। चाहे वह ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का मामला हो या  ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’, ‘उज्ज्वला योजना’, ‘स्वच्छ भारत मिशन’ हो या फिर  '#सेल्फी विद डॉटर' की बात हो। 


किसने नारी शक्ति को प्रोत्साहित किया और महिलाओं को यह याद दिलाया कि देश के राष्ट्रीय धन के निर्माण में उनकी भी जिम्मेदारी है? इस नेता ने यह सब 2014 में शुरू हुए ‘मन की बात’ की विभिन्न कड़ियों के जरिए किया, जिसमें बच्चों में परीक्षा का डर, माता-पिता का दबाव, महिला सशक्तिकरण (नारी शक्ति) आदि जैसे विभिन्न सामाजिक मुद्दे शामिल थे।


वह नेता कोई और नहीं बल्कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी हैं।


देश की जनता के साथ उनकी बातचीत के इस प्रसारित कार्यक्रम को ‘मन की बात’ के नाम से जाना जाता है। वह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े अलग-अलग लोगों के साथ, विभिन्न हितों के बारे में बात करते हैं और उन वास्तविक नायकों का पता लगाते हैं जो गुमनाम, अनसुने व अनदेखे हैं, लेकिन जिन्होंने महान कार्य किया है।



कुछ महीने पहले, मैं अपने काम के सिलसिले में एक गांव में गई थी और वहां बच्चों के एक समूह के साथ बातचीत कर रही थी। हम आपस में अलग-अलग विषयों पर सवाल-जवाब कर रहे थे। बातचीत के अंत में, उस समूह की युवा लड़कियों से मेरा आखिरी सवाल यह था कि ‘तुम बड़ी होकर क्या बनना चाहती हो?’ चमक भरी आंखों वाली एक लड़की ने तुरंत कहा, “मैं जोया अग्रवाल बनना चाहती हूं।” मुझे उत्सुकता हुई और मैंने पूछा, क्यों। उसने कहा, “आप टीवी नहीं देखतीं? आप अखबार नहीं पढ़तीं? जोया अग्रवाल संपूर्ण महिला पायलट टीम को उत्तरी ध्रुव के ऊपर से उड़ान भरती हुई 16,000 किलोमीटर की दूरी तय करके सन फ्रांसिस्को से बैंगलोर तक ले गईं। वह हमारे प्रधानमंत्री से मिलीं। मैं उनके जैसा बनना चाहती हूं।”


एक दूसरी लड़की ने कहा, “मैं ओलंपिक में भाग लेना चाहती हूं, क्योंकि मैं अन्य लड़कियों के लिए एक आदर्श बनूंगी और प्रधानमंत्री से सम्मान पाउंगी।” तीसरी लड़की ने कहा, “मैं एक महिला उद्यमी बनना चाहती हूं, क्योंकि पीएमएमवाई जैसी बड़ी परियोजनाएं उपलब्ध हैं जो मेरी मदद करेंगी।” उनकी मां बाहर आईं और बोलीं, “मैडम, मैं प्रधानमंत्री जी को एलपीजी दिलवाने के लिए धन्यवाद देना चाहती हूं। इसने मेरी आंखों को धुएं से बचाया है और मेरे स्वास्थ्य को बेहतर किया है।” एक अन्य महिला ने कहा, “मैं अब शौचालय जाने में सुरक्षित महसूस करती हूं।”


कुछ बूढ़ी औरतें आगे आईं और बोलीं, “हम 'मन की बात’ तो सुनती हैं, लेकिन धन्‍यवाद कैसे करें यह हमें नहीं पता। मैडम, अगर आप उनसे मिलें या उन्हें लिखें, तो कृपया उन्हें हमारी तरफ से यह बताएं कि इस देश की आपकी बहनें आपका धन्यवाद करना चाहती हैं। उनके आंसुओं ने यह दर्शाया कि वे किस कदर आभार व्यक्त करना चाहती थीं। मैंने उनसे कहा था कि कभी, कहीं, किसी तरह यह कर दूंगी। और, मेरे मन में अनायास ही हमारी नारी शक्ति में आत्मविश्वास से भरा यह बदलाव दर्ज हो रहा रहा था।


मुझे एक बार फिर से यह श्लोक याद आया, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।