21 22 साल की उम्र अपना भविष्य करने की उम्र होती है। भविष्य संवारने भव्य की दिशा तय करने की उम्र होती है। नई ऊंचाइयों नई मंजिल को हासिल करने की उम्र होती है। आप कल्पना कर सकते हैं इस उम्र में जिनके हाथों में हथकड़ियां पहना दी जाती हैं जो बंदी बन गए हैं उनका सब कुछ कैद हो जाता है।बच्चों के खिलाफ हिंसा न केवल उनके जीवन और स्वास्थ्य को,बल्कि उनकेभावात्मक कल्याण और भविष्य को भी खतरे में डालती है। भारत में बच्चों के खिलाफ हिंसा अत्यधिक है और लाखों बच्चों के लिए यह कठोर वास्तविकता है। दुनिया के आधे से अधिक बच्चों ने गंभीर हिंसा को सहन किया हैं और इस तादाद के 64 प्रतिशत बच्चे दक्षिण एशिया में हैं।सभी बच्चों को हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार से सुरक्षित रहने का अधिकार है। फिर भी,दुनिया भर में सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के सभी उम्र,धर्मों और संस्कृतियों के लाखों बच्चे हर दिन हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं। यह हिंसा शारीरिक,यौन और भावनात्मक हो सकती है और उपेक्षा का रूप भी ले सकती है। यह हिंसा अंतर्वैयक्तिक हो सकती है और उन संरचनाओं का परिणाम है जो हिंसक व्यवहार को अनुमति और बढ़ावा देते हैं।
प्रशासन, अदालतों में देरी को खत्म करने और बकाया के शीघ्र निपटान को सुनिश्चित करने के लिए। आयोग ने ट्रायल कोर्ट में देरी और बकाया पर अपनी रिपोर्ट पहले ही सरकार को भेज दी है। वर्तमान रिपोर्ट उच्च न्यायालयों और अन्य अपीलीय अदालतों में देरी और बकाया से संबंधित है।
हम पहले समस्या की भयावहता और उसके समाधान के लिए अब तक किए गए प्रयासों से निपटेंगे। उच्च न्यायालयों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के अधिकार क्षेत्र को संक्षेप में बताने के बाद, हम ऐसे क्षेत्राधिकार की विशेष प्रजातियों के भीतर आने वाली कार्यवाही पर विचार करने के लिए आगे बढ़ेंगे - अपीलीय, मूल, विशेष और इसी तरह। प्रत्येक प्रकार की कार्यवाही के संबंध में निपटान में तेजी लाने के उपायों का स्वाभाविक रूप से उस विशेष प्रकार की कार्यवाही के लिए समर्पित अध्याय में उल्लेख किया जाएगा, लेकिन हम एक सामान्य प्रकृति के कुछ सुझाव भी देने का प्रस्ताव करते हैं जो उच्च न्यायालय के संपूर्ण न्यायिक कार्य पर लागू होंगे। न्यायालयों।
द्वितीय। बकाया 1.2। जैसा कि बाद के अध्याय से स्पष्ट होगा? इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार अनंत किस्म का है। एक व्यथित व्यक्ति को उपलब्ध उपचार और कार्यवाही जो वह राहत पाने के लिए स्थापित कर सकता है, उसकी कानूनी शिकायत की प्रकृति और मामले की स्थिति पर निर्भर करता है। ये उपचार - उच्च न्यायालय में प्रथम अपील, द्वितीय अपील, पुनरीक्षण और रिट याचिकाओं के माध्यम से उपचार सहित - हमारे विचार से, न्याय के उचित प्रशासन के लिए, कानूनी विवेक की संतुष्टि के लिए आवश्यक हैं और कानूनी अधिकारों का उचित प्रवर्तन।
हालांकि, उच्च न्यायालयों में दायर और लंबित विभिन्न कार्यवाही, समय के साथ, एक बेचैन करने वाले आंकड़े तक पहुंच गई हैं और वर्तमान में, बकाया के संबंध में स्थिति इतनी गंभीर है कि इसे बिना किसी देरी से निपटने की आवश्यकता है?' समस्या नई नहीं है: और इसे हल करने के लिए अतीत में कई प्रयास किए गए हैं।" लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं हुआ है, जैसा कि, वास्तव में, हो नहीं सकता, क्योंकि समाज का विस्तार हो रहा है। लगातार बदलते सामाजिक मूल्य और सबसे बढ़कर, सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में राज्य के लगातार बढ़ते और विविध कार्य और नए कानून का पारित होना, जो अदालतों के बोझ और जिम्मेदारियों को जोड़ता है।
1.3। वर्तमान स्थिति से युक्तिसंगत ढंग से निपटने के लिए यह देखना आवश्यक होगा कि किस प्रकार के लम्बित प्रकरणों को पुराना कहा जा सकता है ताकि बकाया का गठन किया जा सके। हम इस मुद्दे पर उचित समय पर विचार करेंगे।5 1.4। जबकि निपटान में गिरावट, कुछ हद तक, उच्च न्यायालयों के बकाया में वृद्धि करने में योगदान दे सकती है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि, जैसा कि हमने पहले कहा है, उच्च न्यायालयों में नए संस्थानों में पर्याप्त वृद्धि हुई है। विशेष रूप से, यह वृद्धि विभिन्न अधिनियमों के तहत इसके विशेष क्षेत्राधिकार के विस्तार और संविधान के लागू होने के कारण है। अनुच्छेद 226 और 227 के साथ पीड़ित नागरिकों को प्रभावी उपचार प्रदान करना जो। अब तक, अपने अधिकारों के प्रति अधिक सचेत हो गए हैं - हालाँकि शायद अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति थोड़े बेखबर हैं।
साक्ष्य दिखाते हैं कि हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार अक्सर बच्चे के जानकार व्यक्ति द्वारा किया जाता है। इसमें माता-पिता,परिवार के अन्य सदस्य,उन्हें देखभाल करने वाले,शिक्षक,मालिक,कानून प्रवर्तन अधिकारी,राज्य और गैर-राज्य एक्टर और अन्य बच्चे शामिल हैं।
घर,परिवार,स्कूल,देखभाल और न्याय प्रणाली संबद्ध स्थान,कार्यस्थल और समुदाय में सभी संदर्भो में-जिसमें संघर्ष और प्राकृतिक आपदाएं भी शामिल है- हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार होता है। कई बच्चों को कई प्रकार की हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है, जिसमें यौन दुर्व्यवहार व शोषण,सशस्त्र हिंसा,तस्करी,बाल श्रम,लिंग आधारित हिंसा,दादागीरी (देखें यूनिसेफ प्रकाशन,टू ऑफन इन साइलेंस,2010),गैंग हिंसा,महिला जननांग विकृति,बाल विवाह,शारीरिक और भावनात्मक रूप से हिंसक बाल अनुशासन,और अन्य हानिकारकप्रथाएं शामिल हैं । इंटरनेट के बढ़ते उपयोग से बच्चों के साथ हिंसा के नए आयाम,जैसे साइबर-उत्पीड़न और ऑनलाइन यौन शोषण,के रूप में हो रही है। इस तरह की हिंसा के नतीजे हानिकारक और दीर्घकालिक हैं।
लोग,बच्चों के खिलाफ हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार की रिपोर्ट देने में हिचकिचाते हैं। इस कारण हिंसा का सामना करने वाले बच्चों की संख्या की जानकारी वास्तविकता से कम ही है। नतीजन इन अपराधों की जाँच कम हो पाती है और बहुत कम दोषियों को जिम्मेदार ठहराया जाता है।
इस बात के महत्वपूर्ण सबूत हैं कि हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अल्प और दीर्घकालिक रूप से हानिकारक हैं। ऐसे बच्चों की सीखने और सामाजिक समन्वय की क्षमता कम हो सकती है। उनके व्यस्क जीवन में भी इसके प्रतिकूल परिणाम देखने को मिलते हैं।
सरकारों,नीति निर्माताओं और यूनिसेफ जैसे बाल-केंद्रित संगठनों परबच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने और हिंसा के शिकार हुए बच्चों की रक्षा की ज़िम्मेदारी है। बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने में सरकार,समुदाय,स्थानीय प्रशासन,गैर-सरकारी संगठन,धार्मिक और सामाजिक संगठन मदद कर सकते हैं।
न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर प्राप्त कई अच्छे अनुभव बताते है कि हिंसा की रोकथाम से ही हिंसा का अंत होता है। बच्चों में व्यक्तिगत सुरक्षा को बढ़ावा देना,स्कूलों में बाल संरक्षण नीतियों और बच्चों के यौन शोषण को रोकने के लिए माता-पिता की बढ़ती जागरूकता आवश्यक है। छोटे बच्चे अपने बचाव करने में और भी अधिक अशक्त होते हैं। उनके लिए परिवारों और शिक्षा संस्थानों की सुरक्षात्मक भूमिका को मजबूत करने के लिए विशिष्ट तरीके अपनाने होंगे।
बच्चों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है कि हम इसके पीछे कारणों और उनके बीच के परस्पर क्रिया को समझें। बाल संरक्षण प्रणालियाँ,सभी बच्चों और उनके परिवारों के जीवन में बाल हिंसा के जोखिम के हर पहलू को संबोधित करने का प्रयास करती हैं। सरकारी,गैर-सरकारी संगठनों,सिविल सोसाइटी कार्यकर्ताओं और निजी क्षेत्र सहित भागीदारों के साथ,यूनिसेफ बाल संरक्षण प्रणालियों के सभी घटकों जैसे कि मानव संसाधन,वित्त,कानून,मानक,शासन,निगरानी और सेवाएं को मजबूत करने को बढ़ावा देता है।
यूनिसेफ और उसके सहयोगी, बाल संरक्षण प्रणालियों के विश्लेषण और मानचित्रण में सहयोग करते हैं । यह कार्य, सरकार और समाज के बीच ऐसी प्रणालियों के लक्ष्यों और घटकों, उनकी क्षमताओं, कमजोरियों और प्राथमिकताओं पर आम सहमति बनाने में मदद करता है। जिससे यह बच्चों की सुरक्षा में बेहतर कानूनों, नीतियों, विनियमों, मानकों और सेवाओं के रूप में परिवर्तित होता है। यह बच्चों के लिए बेहतर परिणाम देने वाली प्रणालियों के लिए आवश्यक वित्तीय और मानव संसाधनों को भी सुदृढ़ करता है।
पिछले एक दशक में,यूनिसेफ ने उन सामाजिक प्रथाओं को समझने में सहयोग किया जिसके परिणामस्वरूप हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार होता है,और पूरे देश में परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए काम किया है। सकारात्मक मानकों को बढ़ावा दे कर हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करने के लिए,यूनिसेफ,एडवोकेसी करने और जागरूकता बढ़ाने में संलग्न है और समुदाय,जिला,राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर चर्चा,शिक्षा कार्यक्रम और विकास के लिए संचार रणनीतियों आदि में संलग्न है। प्रभावी कानून,नीतियों,विनियमों और सेवाओं के साथ संयुक्त होने पर स्थापित होने वाली प्रक्रिया सामुदायिक मूल्यों और मानव अधिकारों पर केंद्रित होती हैं औरसकारात्मक और स्थायी परिवर्तन लाती है।
हिंसा,शोषण और दुर्व्यवहार की रोकथाम और प्रतिक्रिया,बच्चे के संपूर्ण जीवन चक्र पर केंद्रित है।
बच्चों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को रोकने और प्रतिक्रिया देने के लिए,मानव अधिकारों,नैतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से,बाल संरक्षण प्रणालियों में निवेश करना महत्वपूर्ण है।
यूनिसेफ सरकार और समाज के साथ बच्चों को हिंसा से बचाने के लिए कार्यबल की क्षमता को मजबूत करने का काम करता है। इसमें सामाजिक सेवा से संबंधित क्षेत्रों में डिग्री कार्यक्रमों को शुरू करने या सुधारने के लिए विश्वविद्यालयों के साथ काम करना,और पुलिस और न्यायपालिका के मौजूदा पाठ्यक्रमों में बाल संरक्षण विशिष्ट मॉड्यूल को जोड़ना शामिल है। इस क्षेत्र में कार्यरत कर्मियों को नए साधन और तरीके की निरंतर पहुँच सुनिश्चित करने के लिए यूनिसेफ उनके साथ काम करता है,और उन्हे लागू करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराने में सहयोगदेता है।
समुदायों और परिवारों के साथ हिंसा को पहचानने और सकारात्मक अनुशासन जैसी उन प्रथाओं का समर्थन करना भी यूनिसेफ कार्यक्रम का हिस्सा हैं। हिंसा के खिलाफ खड़ा होना और रिपोर्ट करने के लिए वातावरण तैयार करना समुदायों का महत्वपूर्ण पहला कदम है। हिंसा को संबोधित करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसे होने ही न दिया जाए
लीडिंग केसेस
Dahej pratishedh adhiniyam
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छत्तीसगढ़ में 18 वर्ष से कम उम्र की बालिकाएं शारीरिक शोषण का बहुत अधिक शिकार हो रही है। छत्तीसगढ़ देश के उन राज्यों में से है जहां 18 वर्ष से कम उम्र की बालिकाएं शारीरिक शोषण का बहुत अधिक शिकार हो रही है।
छत्तीसगढ़ देश के उन राज्यों में शामिल हैं जहां बालिकाओं जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है बड़ी संख्या में शारीरिक शोषण का शिकार हो रही हैं। यह वास्तविकता है और विडंबना है कि इसके बहुत सारे मामले हमारे सामने आ ही नहीं पाते। आर्थिक कमजोरियों का फायदा उठाकर दबाव बनाकर ऐसे मामले को सामने नहीं आने दिया जाता।
कहीं महिलाओं और युवकों पर तेजाब के हमले हो रहे हैं, तो कहीं लगातार हत्याएं-बलात्कार हो रहे हैं और कहीं दहेज उत्पीडऩ की घटनाएं हो रही हैं। इन घटनाओं पर कभी-कभी गाली-गलौज भी होती है, लोग विरोध प्रकट करते हैं, मीडिया सक्रिय होती है पर अपराध कम होने की बजाय बढ़ रहे हैं। एक ओर भारतीय नेतृत्व में प्राप्त करता है लेकिन विदम्बना यह है कि आम नागरिक महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को लेकर स्वाभाव से ही पुरुष प्रभुत्व के पक्षधर और सामंती मनः स्थिति के कायल हैं।
हमारे देश-समाज में दावों का यौन उत्पीड़न लगातार जारी है लेकिन यह बिडम्बना ही कहावत है कि सरकार, प्रशासन, न्यायालय, समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मीडिया भी इस कुकृत्य में कमी आने में सफल नहीं हो सकती है। देश के हर कोने से महिलाओं के साथ बलात्कार, यौन शोषण, दहेज के लिए जलाया जाना, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना और अजनबियों की खरीदारी-फरोख्त के समाचार सुनने को मिलते हैं। साथ ही छोटे से बड़े हर स्तर पर निरंतर और भेदभाव के कारण कुछ भी गिरावट के लोगो को कभी नहीं देखा गया।
देश में लोगों को महिलाओं के अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है और इसका पालन पूरी तरह से ग्रेविटेशन और प्राधिकरण से नहीं होता है। महिला सशक्तिकरण के सभी दोषी के बाद भी महिलाएं अपने वास्तविक अधिकार से कोस दूर हैं।
भारत में महिलाओं के प्रति परिचय की बारंबरता
26 जून 2018 को थॉमसन रॉयटर्स फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार निर्भया कांड के बाद देश भर में रतन के बीच सरकार ने इस समस्या से निपटने का संकल्प लिया था। लेकिन भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कोई कमी नहीं आई और अब वह इस मामले में दुनिया में पहली लापरवाही पर पहुंच गई है, जबकि 2011 में भारत में चौथी गिरावट पर थी। 2011 में भारत के इस खराब प्रदर्शन के लिए पंजीकृत कन्या भ्रूण हत्या, नवजात बच्चियों की हत्या और मानव तस्कर जिम्मेदार थे, जबकि 2018 का सर्वे बताता है कि भारत यौन हिंसा, सांस्कृतिक-धार्मिक कारण और मानव तस्करता इन तीन कारणों के कारण महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है।
2018 में भारत में महिलाओं और नाबालिगों के खिलाफ यौन हिंसा का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी हुआ। जम्मू-कश्मीर की कठुआ जिले में आठ साल की आसिफा और झारखंड में मानव तस्कर के खिलाफ अभियान चलाने वाले सामाजिक आरक्षण के साथ बलात्कार की खबरें दुनिया भर में चर्चा का विषय बनीं।
दिसंबर 2017 को इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के प्रति घंटे औसतन 39 मामले दर्ज किए गए। वर्ष 2007 में यह संख्या मात्र 21 थी। सरकार ने प्रतिक्रिया में बलात्कारियों के लिए सजा का प्रावधान किया और बच्चों के साथ बलात्कार करने वाले को मौत की सजा देने का ऐलान किया। लेकिन इंडियास्पेंड ने मई 2018 की अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि इन सजाओं के चलते बलात्कार के मामले दर्ज किए जाने में कमी आ सकती है।
भारत में लिपटने का मामला एवं दोष सिद्धि की दर
साल 2016 के एक आंकड़े के मुताबिक भारत में हर रोज 106 मामले सामने आए हैं। इससे पूरी तस्वीर साफ नहीं होती, क्योंकि यहां सभी मामलों की रपट दर्ज नहीं कराई जाती। कुछ सामाजिक भेदभाव और असुरक्षा के लिए जटिल अस्पष्टता प्रक्रिया के कारण इससे जुड़े सभी अपराध दिखाई नहीं देते। उस पर हर चार में से एक मामला में ही अपराध सिद्ध हो जाता है। यह बहुत निश्चित दर है।
डीएनए विश्लेषण जैसी तकनीक से दोषसिद्धि दर आवर्त हो सकती है। इसमें 2018 की एक रिपोर्ट बताती है कि लिप्स से जुड़े 12,000 मामले सिर्फ सीधे हैं, क्योंकि लीक की जांच के लिए पर्याप्त उजागर नहीं हैं। यह क्या नहीं बताया गया है? एक तो अपराध सिद्ध होने की दर इतनी कमजोर होती है और जिन धारणाओं से उन अपराधियों के मामले हो सकते हैं, उनमें इतनी देरी हो सकती है। अगर यह महिलाएं इंसाफ में शामिल होने का उदाहरण नहीं है तो और क्या है?
आध्यात्मिक ज्ञान मानव को पतन की ओर अग्रसर होने से रोकता है। भौतिकता के कारण इंसान के अंदर जो अंधकार उत्पन्न हुआ है, उसे अध्यात्म के प्रकाश से ही दूर किया जा सकता है। आध्यात्मिक ज्ञान ही उसे यह समझाने में सहायक हो सकता है कि इस जगत का असली सृष्टिकर्ता और सर्वेसर्वा ईश्वर ही है। मानव तो उसकी एक रचना मात्र है।
व्यक्ति के जीवन में कई तरह के पड़ाव आते रहते हैं। कभी सुख, कभी दुःख, विपदाएं, परेशानियाँ, कठिनाईयां आदि का सामना करते करते सकारात्मक ऊर्जा नहीं मिलने के कारण व्यक्ति थक जाता हैं, हार जाता हैं, टूट जाता हैं। आत्महत्या तक कर लेता हैं। परन्तु जिस व्यक्ति के जीवन में अध्यात्म हो और आदर्श महापुरुषों के प्रेरक जीवन चरित्र, उनके संघर्ष की कहानिया व उनके त्याग व साहस का स्वाध्याय हो तो उसे भीतर से सकारात्मक ऊर्जा का बल प्राप्त होता हैं।
वह अपने आपको कमजोर नहीं बल्कि मजबूत महसूस करता हैं। अध्यात्म में वो शक्ति हैं जो हारे हुए जीवन को जित में बदल देता हैं। अध्यात्म के बहुत सारे अंग हैं योग, प्राणायाम, ध्यान, आदि के माध्यम से व्यक्ति अपने आप को भीतर से मज़बूत बना सकता हैं। जो व्यक्ति अपने जीवन में अध्यात्म को अपना लेता हैं, वो जीवन में कभी संसार की कैसी भी स्थिति - परिस्थिति में कभी हार नहीं सकता...वो जीत जाता हैं।
सृजनात्मक शक्ति का विकास अध्यात्म से ही संभव है। हमेशा इस बात के लिए प्रयत्नशील रहें कि हमारे विचार सकारात्मक रहें। विध्वंसक तथा नकारात्मक विचार से आपका कल्याण असंभव है। प्रेम, करूणा, सेवा, सहानुभूति जैसी बातें ही हमारा सृजनात्मक विकास करेगी। हमारे ऋषि मुनियों ने चिरंतन तप से ज्ञान प्राप्त कर शाश्वत, चिरन्तन कल्याण का मार्ग दिखलाया है। हम इस क्षणभंगुर मनुष्य देह को अर्थोपार्जन की होड़ में लगाकर अपना जीवन जीना चाहते हैं और अपनी अध्यात्मिक उन्नति को दरकिनार कर जाते हैं। फिर अन्त में पछताना पड़ता है। अपने संस्कार से जुड़े रहें। भावी पीढ़ी को भी संस्कार से जोड़ें। अध्यात्म की शक्ति अपने आप प्राप्त होगी।
विश्व के महान देशों के वैज्ञानिकों ने विज्ञान में अपूर्व प्रगति की है। चन्द्रमा, मंगल आदि कई ग्रहों, उपग्रहों पर अंतरिक्ष में पहुँच रहे हैं। विशाल पहाड़ों को काटा जा रहा है। बड़ी-बड़ी नदियों को बाँधा जा रहा है। इतना सब कुछ होने पर भी हमारे जीवन में आत्मिक शान्ति नहीं है। चारों ओर अशान्ति, बैचेनी, अकुलाहट, दौड़भाग तथा आपाधापी का वातावरण परिलक्षित हो रहा है। हमारा जीवन भौतिकवाद की ओर द्रुतगति से दौड़ रहा है। हम पश्चिमी सभ्यता के समान जीवन यापन करने में स्वयं को प्रगतिशील समझ रहे हैं। प्राचीन जीवन पद्धति का माखौल उड़ाया जा रहा है। उसे हेय दृष्टि से देखा जा रहा है। यह सही है कि हम ऋषि मुनियों जैसे वस्त्र धारण कर, हिमालय की कन्दराओं में बैठकर, ध्यानस्थ होकर आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते हैं, किन्तु मानव जीवन के चरमोत्कर्ष की आधारशिला, मानवता का मेरूदण्ड, 'अध्यात्म’ को हम दरकिनार कदापि नहीं कर सकते हैं। सत्ययुग में अध्यात्मिक प्रेरणा से ही जीवन अनुशासित था। कोई राजकीय सत्ता इसके लिए व्यक्ति को बाध्य नहीं करती थी। मानवीय स्वभाव ही व्यक्ति को आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करता था। प्राचीन ऋषि मुनियों ने क्रमबद्धतापूर्वक आध्यात्मिक उन्नति की उच्च साधना के द्वारा अपना जीवन यापन किया। उनके द्वारा प्राप्त ज्ञान का चरमोत्कर्ष का प्रकाशपुंज की एक छोटी सी किरण ही हमारे भौतिक जीवन को आध्यात्मिक विकास के लिए प्रेरित कर सकती है। ब्रह्मचर्य, सच्चरित्रता, सदाचार, स्वानुशासन, मर्यादापालन आदि गुण ऐसे हैं जो हमारे जीवन में सुख का संचार कर सकते हैं। अस्तव्यस्तता, व्यसन, प्रमाद, आलस्य आदि ऐसे जीवनकाल के दुर्गण हैं जो हमारी आत्मोन्नति में बाधक हैं। हमारी शक्ति दूसरों को पीड़ा देने के लिए न हो, विद्या दान के लिए न हो, धन आमोद-प्रमोद, व्यसन में खर्च करने के लिए न हो तो ही हम अध्यात्म की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। सर्वप्रथम हमें अपने भौतिक जीवन या बाह्य जीवन को सुधारना होगा तभी हम अध्यात्म की ओर बढ़ सकते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति लौकिक और आत्मिक दोनों प्रकार की विचारधाराओं में ऐक्य स्थापित कर अपना जीवन व्यतीत करता है। अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना भी आवश्यक है। भगवद्गीता में कहा है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।
पॉक्सो एक्ट क्या है? 2012 में भारत सरकार ने नाबालिग बच्चों की सुरक्षा के लिए पॉक्सो बनाया था. इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों को बच्चा माना गया है और उसके साथ यौन उत्पीड़न को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. साल 2019 में कानून में संशोधन कर दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है.
भारत का संविधान 1950 में लागु हुआ। किशोरों के लिये अलग कानून की आवश्यक्ता अनुभव की गई संविधान द्वारा 1992 मैं शामिल किया गया जो अमेरिका के संविधान से लिया गया जो मूल रूप से बालको के प्रति होने वाले यौन अपराधों के प्रतिषेध कानून है 2002 मे अधिनियमित हुआ वर्ष 2012 मैं यह कानून का रूप ले चूका था लेकिन यह अपराध श्रेणी मै आता है
नीचे दी गई तालिका यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ है:
अधिनियमन तिथि: | जून 19, 2012 |
अधिनियम वर्ष: | 2012 |
छोटा शीर्षक: | यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 |
लंबा शीर्षक: | बच्चों को यौन हमले, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के अपराधों से बचाने के लिए अधिनियम और ऐसे अपराधों के परीक्षण के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना और उनसे जुड़े या प्रासंगिक मामलों के लिए प्रावधान। |
मंत्रालय: | महिला एवं बाल विकास मंत्रालय |
प्रवर्तन दिनांक: | नवम्बर 14, 2012 |
POCSO अधिनियम की आवश्यकता
भारत दुनिया में बच्चों की सबसे बड़ी आबादी वाले देशों में से एक है - 2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में अठारह वर्ष से कम उम्र के 472 मिलियन बच्चों की आबादी है। राज्य द्वारा बच्चों के संरक्षण की गारंटी भारतीय नागरिकों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के विस्तृत पठन द्वारा दी जाती है और बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में भारत की स्थिति को भी अनिवार्य किया गया है। POCSO अधिनियम के कार्यान्वयन से पहले, गोवा बाल अधिनियम, 2003, बाल दुर्व्यवहार कानून का एकमात्र विशिष्ट भाग था।
भारतीय दंड संहिता की निम्नलिखित धाराओं के तहत बाल यौन शोषण का मुकदमा चलाया गया :
- आईपीसी (1860) 375- बलात्कार
- आईपीसी (1860) 354- महिला की लज्जा भंग करना
- आईपीसी (1860) 377- अप्राकृतिक अपराध
हालाँकि, इस तरह के उपाय में कमियाँ थीं क्योंकि IPC विभिन्न खामियों के कारण प्रभावी रूप से बच्चे की रक्षा नहीं कर सका:
- IPC 375 पुरुष पीड़ितों या किसी को भी "पारंपरिक" लिंग-योनि संभोग के अलावा प्रवेश के यौन कृत्यों से नहीं बचाता है।
- IPC 354 में "विनम्रता" की वैधानिक परिभाषा का अभाव है। यह एक कमजोर जुर्माना है और एक समझौता योग्य अपराध है। इसके अलावा, यह एक लड़के के "शील" की रक्षा नहीं करता है।
- आईपीसी 377 में, "अप्राकृतिक अपराध" शब्द परिभाषित नहीं है। यह केवल उन पीड़ितों पर लागू होता है जो उनके हमलावर के यौन कृत्य से प्रभावित होते हैं और बच्चों के यौन शोषण को आपराधिक बनाने के लिए नहीं बनाया गया है।
इसलिए एक विशिष्ट बाल संरक्षण अधिनियम को ध्यान में रखते हुए एक विधायी सुधार की आवश्यकता थी।
सभी सरकारी परीक्षा के उम्मीदवारों को नीचे दिए गए लिंक में दुनिया भर में बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाली अन्य पहलों, योजनाओं और संगठनों को भी पढ़ना चाहिए:
एकीकृत बाल संरक्षण योजना | राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना योजना |
बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग | संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) |
बाल श्रम निषेध अधिनियम | शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 |
POCSO अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
- अधिनियम के अनुसार "बच्चे" 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति हैं। अधिनियम लिंग-तटस्थ है।
- यौन शोषण के विभिन्न रूपों को अधिनियम में परिभाषित किया गया है, जिसमें यौन उत्पीड़न, पोर्नोग्राफी, पेनिट्रेटिव और नॉन-पेनिट्रेटिव हमले शामिल हैं, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है।
- यौन हमले को कुछ परिस्थितियों में "गंभीर" माना जाता है, जैसे कि जब बच्चा मानसिक रूप से बीमार हो। साथ ही जब दुर्व्यवहार किसी भरोसेमंद व्यक्ति जैसे डॉक्टर, शिक्षक, पुलिसकर्मी, परिवार के सदस्य द्वारा किया जाता है।
- न्यायिक प्रणाली के हाथों बच्चे के पुन: उत्पीड़न से बचने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं। अधिनियम जांच प्रक्रिया के दौरान एक पुलिसकर्मी को बाल रक्षक की भूमिका सौंपता है।
- अधिनियम में कहा गया है कि ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए जो जांच प्रक्रिया को यथासंभव बच्चों के अनुकूल बनाते हैं और अपराध की रिपोर्ट करने की तारीख से एक वर्ष के भीतर मामले का निपटारा कर दिया जाता है।
- अधिनियम ऐसे अपराधों और इससे संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
- अधिनियम की धारा 45 के तहत, नियम बनाने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है।
- अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) को नामित प्राधिकरण बनाया गया है। दोनों वैधानिक निकाय हैं।
- अधिनियम की धारा 42 ए प्रदान करती है कि किसी अन्य कानून के प्रावधानों के साथ असंगतता के मामले में, POCSO अधिनियम ऐसे प्रावधानों को ओवरराइड करेगा।
- अधिनियम यौन अपराधों की अनिवार्य रिपोर्टिंग के लिए कहता है। किसी व्यक्ति को बदनाम करने के इरादे से की गई झूठी शिकायत अधिनियम के तहत दंडनीय है।
- जीवन और उत्तरजीविता का अधिकार - एक बच्चे को किसी भी प्रकार के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण और उपेक्षा से बचाना चाहिए
- बच्चे के सर्वोत्तम हित - प्राथमिक विचार बच्चे के सामंजस्यपूर्ण विकास पर होना चाहिए
- सम्मान और करुणा के साथ व्यवहार का अधिकार - पूरी न्याय प्रक्रिया के दौरान बाल पीड़ितों के साथ देखभाल और संवेदनशील तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए
- भेदभाव से सुरक्षा का अधिकार - न्याय प्रक्रिया को पारदर्शी और न्यायपूर्ण होना चाहिए; बच्चे की सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई या सामाजिक अभिविन्यास के बावजूद
- विशेष निवारक उपायों का अधिकार - यह सुझाव देता है कि पीड़ित बच्चों के साथ फिर से दुर्व्यवहार होने की संभावना अधिक होती है, इसलिए उन्हें आत्म-सुरक्षा के लिए निवारक उपाय और प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
- सूचना पाने का अधिकार - पीड़ित बच्चे या गवाह को कानूनी कार्यवाही के बारे में अच्छी जानकारी होनी चाहिए
- सुने जाने का अधिकार और विचार और चिंता व्यक्त करने का अधिकार - प्रत्येक बच्चे को उसे प्रभावित करने वाले मामलों के संबंध में सुने जाने का अधिकार है
- प्रभावी सहायता का अधिकार - वित्तीय, कानूनी, परामर्श, स्वास्थ्य, सामाजिक और शैक्षिक सेवाएं, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्प्राप्ति सेवाएं और बच्चे के उपचार के लिए आवश्यक अन्य सेवाएं प्रदान की जानी चाहिए।
- निजता का अधिकार - बच्चे की निजता और पहचान को प्री-ट्रायल और ट्रायल प्रक्रिया के सभी चरणों में संरक्षित किया जाना चाहिए
- न्याय प्रक्रिया के दौरान कठिनाई से सुरक्षित होने का अधिकार - न्याय प्रक्रिया के दौरान एक बच्चे के लिए द्वितीयक उत्पीड़न या कठिनाइयों को न्यूनतम किया जाना चाहिए
- सुरक्षा का अधिकार - न्याय प्रक्रिया से पहले, उसके दौरान और बाद में पीड़ित बच्चे की सुरक्षा की जानी चाहिए
- मुआवज़े का अधिकार - पीड़ित बच्चे को उसकी राहत और पुनर्वास के लिए मुआवज़ा दिया जा सकता है
- POCSO अधिनियम 2012 के तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की आसान और प्रत्यक्ष रिपोर्टिंग और मामलों के समय पर निपटान की सुविधा के लिए केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली में एक ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली, POCSO ई-बॉक्स लॉन्च किया गया।
भारत में बाल स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से जानने के लिए , उम्मीदवार लिंक किए गए लेख पर जा सकते हैं।
POCSO अधिनियम - सामान्य सिद्धांत
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 में 12 प्रमुख सिद्धांतों का उल्लेख है, जिनका राज्य सरकारों, बाल कल्याण समिति, बाल कल्याण समिति सहित सभी को पालन करना है।
पुलिस, विशेष अदालतें, एनजीओ या सुनवाई के दौरान मौजूद कोई अन्य पेशेवर और सुनवाई के दौरान बच्चे की सहायता करना। इसमे शामिल है:
ᱹिगक हमला, लिगक उत् ᱹ पीड़न और अश् लील सािहत् य के अपराधᲂ स बालकᲂ का े
संरक्षण करन और ऐस े े अपराधᲂ का िवचारण करन के े िलए
िवशष न् े यायालयᲂ की स् थापना तथा उनसे संबंिधत या
आनुषंिगक िवषयᲂ के िलए उपबंध
करन के े िलए
अिधिनयम
संिवधान के अनुच् छेद 15 का खंड (3), अन् य बातᲂ के साथ राज् य को बालकᲂ के िलए िवशेष उपबध करन ं े के िलए सशक् त
करता है;
संयुक् त राष् टर् की महासभा ᳇ारा अंगीकृत बालकᲂ के अिधकारᲂ से संबंिधत अिभसमय को, जो बालक के सवᲃᱫम िहतᲂ को
सुरिक्षत करने के िलए सभी राज् य पक्षकारᲂ ᳇ारा पालन िकए जाने वाले मानकᲂ को िविहत करता ह, भारत सरकार न ै े तारीख
11 िदसम् बर, 1992 को अंगीकृत िकया है;
बालक के उिचत िवकास के िलए यह आवश् यक ह िक पर्त् ै येक व् यिक् त ᳇ारा उसकी िनजता और गोपनीयता के अिधकार का
सभी पर्कार से तथा बालकᲂ को अंतवर्िलत करने वाली न् याियक पर्िकर्या के सभी पर्कर्मᲂ के माध् यम से संरिक्षत और सम् मािनत िकया जाए;
यह अिनवायर् ह िक िविध ऐसी रीित स ै े पर्वितत हो िक बालक के अच् छे शारीिरक, भावात् मक, बौिक और सामािजक िवकास
को सुिनिश् चत करने के िलए पर्त् येक पर्कर्म पर बालक के सवᲃᱫम िहत और कल् याण पर सवᲃपिर महत् व के रूप मᱶ ध् यान िदया जाए;
बालक के अिधकारᲂ से संबंिधत अिभसमय के राज् य पक्षकारᲂ से िनम् निलिखत का िनवारण करने के िलए सभी समुिचत
राष् टर्ीय, ि᳇पक्षीय या बहुपक्षीय उपाय करना अपेिक्षत है,––
(क) िकसी िविधिवरु लᱹिगक िकर्याकलाप मᱶ लगाने के िलए िकसी बालक को उत् पर्ेिरत या पर्पीड़न करना;
(ख) वेश् यावृिᱫ या अन् य िविधिवरु लᱹिगक व् यवसायᲂ मᱶ बालकᲂ का शोषणात् मक उपयोग करना;
(ग) अश् लील गितिविधयᲂ और सामिगर्यᲂ मᱶ बालकᲂ का शोषणात् मक उपयोग करना;
बालकᲂ के लᱹिगक शोषण और लᱹिगक दरुपयोग जघन् ु य अपराध ह, और उन पर पर्भावी रूप स ᱹ े कारर्वाई करने की आवश् यकता
है;
भारत गणराज् य के ितरसठवᱶ वषर् मᱶ संसद ᳇ारा िनम् ् निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो : ᱶ ––
अध् याय 1
पर्ारंिभक
1. संिक्षप् त नाम, िवस् तार और पर्ारम् भ––(1) इस अिधिनयम का संिक्षप् त नाम लᱹिगक अपराधᲂ से बालकᲂ का संरक्षण
अिधिनयम, 2012 ह ।ै
(2) इसका िवस् तार जम् मू-कश् मीर राज् य के िसवाय संपूणर् भारत पर ह ।ै
(3) यह उस तारीख को पर्वृᱫ होगा जो केन् दर्ीय सरकार, राजपतर् मᱶ अिधसूचना ᳇ारा, िनयत करे ।
2. पिरभाषाएं––(1) इस अिधिनयम मᱶ, जब तक िक संदभर् से अन् यथा अपेिक्षत न हो,––
(क) “गुरुतर पर्वशन ल े ᱹिगक हमला” का वही अथर् ह जो धारा ै 5 मᱶ है;
(ख) “गुरुतर लᱹिगक हमला” का वही अथर् ह जो धारा ै 9 मᱶ है;
(ग) “सशस् तर् बल या सुरक्षा बल” से संघ के सशस् तर् बल या अनुसूची मᱶ यथािविनिदष् ट सुरक्षा बल या पुिलस बल
अिभपर्ेत है;
(घ) “बालक” से ऐसा कोई व् यिक् त अिभपर्ेत ह िजसकी आय ै ु अठारह वषर् से कम है;
उपबंध
कानून के प्रभाग इस अधिनियम के अंतर्गत यौन अपराध यौन छेड़छाड़ व अश्लील चित्र या वीडियो बनाने के अपराधों के प्रतिषेध कृत कानून है कुछ धाराओं के अंतर्गत उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है
विशेष नये संशोधन के अंतर्गत बालक अपने ऊपर हुए अपराधों की ऍफ़ आई आर करने के उपरांत आरोपी को अपने को निर्दोष साबित करना होता है बच्चे को अपराध हुआ इसके लिए सिर्फ आरोप लगाना पर्याप्त है इस कानून के अंतर्गत बालक बालिका दोनों को समान रूप से सुरक्षा प्रदान की गई है विशेष न्यायलय बालक के प्रति अपराध की गम्भीरता व उसे हुए सामाजिक व मानसिक नुकसान का आकलन करता है। सामाजिक शिक्षा
भावनात्मक व शारीरिक नुकसान के अनुसार दंडात्मक कार्यवाही करता है।
(ङ) “घरेलू संबंध” का वह अथर् होगा जो घरेलू िहसा से मिहला संरक्षण अिधिनयम, 2005 (2005 का 43) की धारा
2 के खण् ड (च) मᱶ है;
(च) “पर्वेशन लᱹिगक हमला” का वही अथर् ह जो धारा ै 3 मᱶ है;
(छ) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयमᲂ ᳇ारा िविहत अिभपर्ेत है;
(ज) “धािमक संस् था” का वह अथर् होगा जो धािमक संस् था (दुरुपयोग िनवारण) अिधिनयम, 1988 (1988 का 41)
मᱶ है;
(झ) “लᱹिगक हमला” का वही अथर् ह जो धारा ै 7 मᱶ है;
(ञ) “लᱹिगक उत् पीड़न” का वही अथर् ह जो धारा ै 11 मᱶ है;
(ट) “साझी गृहस् थी” से ऐसी गृहस् थी अिभपर्ेत ह जहा ै ं अपराध से आरोिपत व् यिक् त, बालक के साथ घरेलू नातदारी े
मᱶ रहता ह या िकसी समय पर रह च ै ुका है;
(ठ) “िवशेष न् यायालय” से धारा 28 के अधीन उस रूप मᱶ अिभिहत कोई न् यायालय अिभपर्ेत है;
(ड) “िवशेष लोक अिभयोजक” से धारा 32 के अधीन िनयुक् त कोई अिभयोजक अिभपर्ेत ह ।ै
(2) उन शब् दᲂ और पदᲂ के, जो इसमᱶ पर्युक् त ह, और पिरभािषत नहᱭ ह ᱹ िकन् ᱹ तु भारतीय दड स ं ंिहता (1860 का 45), दड ं
पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2), िकशोर न् याय (बालकᲂ की दखर े ेख और संरक्षण) अिधिनयम, 2000 (2000 का 56) और सूचना
पर्ौ᳒ोिगकी अिधिनयम, 2000 (2000 का 21) मᱶ पिरभािषत ह, वही अथ ᱹ र् हᲂगे जो उक् त संिहताᲐ या अिधिनयमᲂ मᱶ ह ।ᱹ
अध् याय 2
बालकᲂ के िवरु लᱹिगक अपराध
क.––पर्वशन ल े िगक हमला और उसक ᱹ े िलए दंड
3. पर्वशन ल े ᱹिगक हमला––कोई व् यिक् त, “पर्वेशन लᱹिगक हमला” करता ह, यह कहा जाता ह ै , यिद वह ै ––
(क) अपना िलग, िकसी भी सीमा तक िकसी बालक की योिन, मुंह, मूतर्मागर् या गुदा मᱶ पर्वेश करता ह या बालक स ै े
उसके साथ या िकसी अन् य व् यिक् त के साथ ऐसा करवाता ह; या ै
(ख) िकसी वस् तु या शरीर के िकसी ऐसे भाग को, जो िलग नहᱭ ह, िकसी सीमा तक बालक की योिन, म ै ूतर्मागर् या
गुदा मᱶ घुसेड़ता ह या बालक स ै े उसके साथ या िकसी अन् य व् यिक् त के साथ ऐसा करवाता ह; या ै
(ग) बालक के शरीर के िकसी भाग के साथ ऐसा अिभचालन करता ह िजसस ै े वह बालक की योिन, मूतर्मागर् या गुदा
या शरीर के िकसी भाग मᱶ पर्वेश कर सके या बालक से उसके साथ या िकसी अन् य व् यिक् त के साथ ऐसा करवाता ह; या ै
(घ) बालक के िलग, योिन, गुदा या मूतर्मागर् पर अपना मुंह लगाता ह या ऐस ै े व् यिक् त या िकसी अन् य व् यिक् त के
साथ बालक से ऐसा करवाता ह ।ै
4. पर्वेशन लᱹिगक हमल के े िलए दंड––जो कोई पर्वेशन लᱹिगक हमला करेगा, वह दोनᲂ मᱶ से िकसी भांित के कारावास से,
िजसकी अविध सात वषर् से कम की नहᱭ होगी िकन् तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दिडत िकया जाएगा और ज ं ुमार्ने से भी
दंडनीय होगा ।
ख.––गुरुतर पर्वशन ल े िगक हमला और उसक ᱹ े िलए दडं
5. गुरुतर पर्वशन ल े िगक ᱹ हमला––(क) जो कोई, पुिलस अिधकारी होते हुए, िकसी बालक पर––
(i) पुिलस थाने या ऐसे पिरसरᲂ की सीमाᲐ के भीतर जहां उसकी िनयुिक् त की गई ह; या ै
(ii) िकसी थाने के पिरसरᲂ मᱶ, चाह उस प े ुिलस थाने मᱶ अविस् थत ह या नहᱭ िजसम ᱹ ᱶ उसकी िनयुिक् त की गई ह; या ै
(iii) अपने कतर्व् यᲂ के अनुकर्म मᱶ या अन् यथा; या
(iv) जहां वह, पुिलस अिधकारी के रूप मᱶ ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो,
पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ख) जो कोई सशस् तर् बल या सुरक्षा बल का सदस् य होते हुए बालक पर,––
(i) ऐसे क्षेतर् की सीमाᲐ के भीतर िजसमᱶ वह व् यिक् त तैनात ह; या ै
(ii) बलᲂ या सशस् तर् बलᲂ की कमान के अधीन िकन् हᱭ क्षेतर्ᲂ मᱶ; या
(iii) अपने कतर्व् यᲂ के अनुकर्म मᱶ या अन् यथा; या
(iv) जहां उक् त व् यिक् त, सुरक्षा या सशस् तर् बलᲂ के सदस् य के रूप मᱶ ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो,
पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ग) जो कोई लोक सेवक होते हुए, िकसी बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(घ) जो कोई िकसी जेल, पर्ितपर्ेषण गृह, संरक्षण गृह, संपर्ेक्षण गृह या तत् समय पर्वृᱫ िकसी िविध ᳇ारा या उसके अधीन
स् थािपत अिभरक्षा या दखर े ेख और संरक्षण के िकसी अन् य स् थान का पर्बंध या कमर्चािरवृंद ऐसे जेल, पर्ितपर्ेषण गृह, संपर्ेक्षण गृह या
अिभरक्षा या दखर े ेख और संरक्षण के अन् य स् थान पर रह रह िकसी बालक पर पर्व े ेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ङ) जो कोई, िकसी अस् पताल, चाह सरकारी या पर्ाइव े ेट हो, का पर्बंध या कमर्चािरवृंद होते हुए उस अस् पताल मᱶ िकसी
बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(च) जो कोई, िकसी शैक्षिणक संस् था या धािमक संस् था का पर्बंध या कमर्चािरवृंद होते हुए उस संस् था मᱶ िकसी बालक पर
पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(छ) जो कोई, िकसी बालक पर सामूिहक पर्वेशन लिगक हमला करता ह ᱹ ।ै
स् पष् टीकरण––जहां िकसी बालक पर, िकसी समूह के एक या अिधक व् यिक् तयᲂ ᳇ारा उनके सामान् य आशय को अगर्सर करने मᱶ
लᱹिगक हमला िकया गया ह वहा ै ं ऐसे पर्त् येक व् यिक् त ᳇ारा इस खंड के अथार्ंतगर्त सामूिहक पर्वेशन लᱹिगक हमला िकया जाना समझा
जाएगा और ऐसा पर्त् येक व् यिक् त उस कृत् य के िलए वैसी ही रीित से दायी होगा मानो वह उसके ᳇ारा अकेले िकया गया था; या
(ज) जो कोई, िकसी बालक पर घातक आयुध, अग् न् यायुध, गमर् पदाथर् या संक्षारक पदाथर् का पर्योग करते हुए पर्वेशन लᱹिगक
हमला करता ह; या ै
(झ) जो कोई, िकसी बालक को घोर उपहित कािरत करते हुए या शारीिरक रूप से नुकसान और क्षित करत हुए या े
उसके/उसकी जननᱶिदर्यᲂ को क्षित करते हुए पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ञ) जो कोई, िकसी बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह िजसस ै े,––
(i) बालक शारीिरक रूप से अशक् त हो जाता ह या बालक मानिसक स् ै वास् थ् य अिधिनयम, 1987 (1987 का 14) की
धारा 2 के खंड (ख) के अधीन यथापिरभािषत मानिसक रूप से रोगी हो जाता ह या िकसी पर्कार का ऐसा हर्ास कािरत करता ै
है िजससे बालक अस् थायी या स् थायी रूप से िनयिमत कायर् करने मᱶ अयोग् य हो जाता ह; या ै
(ii) बािलका की दशा मᱶ, वह लᱹिगक हमले के पिरणामस् वरूप, गभर्वती हो जाती है;
(iii) बालक, मानव पर्ितरक्षाहर्ास िवषाणु या िकसी ऐसे अन् य पर्ाणघातक रोग या संकर्मण से गर्स् त हो जाता ह जो ै
बालक को शारीिरक रूप से अयोग् य, या िनयिमत कायर् करने मᱶ मानिसक रूप से अयोग् य करके अस् थायी या स् थायी रूप से
हर्ास कर सकेगा; या
(ट) जो कोई, बालक की मानिसक और शारीिरक अशक् तता का लाभ उठाते हुए बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ठ) जो कोई, उसी बालक पर एक से अिधक बार या बार-बार पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ड) जो कोई, बारह वषर् से कम आयु के िकसी बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ढ) जो कोई, बालक का रक् त या दᱫक या िववाह या संरक्षकता ᳇ारा या पोषण दखभाल करन े े वाला नातेदार या बालक के
मात-िपता के साथ घरेलू संबंध रखते हुए या जो बालक के साथ साझी गृहस् थी मᱶ रहता ह, ऐस ै े बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता
है; या
(ण) जो कोई, बालक को सेवा पर्दान करने वाली िकसी संस् था का स् वामी या पर्बंध या कमर्चािरवृंद होते हुए बालक पर पर्वेशन
लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(त) जो कोई, िकसी बालक के न् यासी या पर्ािधकारी के पद पर होते हुए बालक की िकसी संस् था या गृह या कहᱭ और, बालक
पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(थ) जो कोई, यह जानते हुए िक बालक गभर् से ह, बालक पर पर्व ै ेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(द) जो कोई, बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह और बालक की हत् ै या करने का पर्यत् न करता ह; या ै
(ध) जो कोई, सामुदाियक या पंिथक िहसा के दौरान बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(न) जो कोई, बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह और जो प ै ूवर् मᱶ इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध करने के िलए
या तत् समय पर्वृᱫ िकसी अन् य िविध के अधीन दडनीय कोई ल ं ᱹिगक अपराध िकए जाने के िलए दोषिस िकया गया ह; या
(प) जो कोई, बालक पर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह और बालक को साव ै र्जिनक रूप से िववस् तर् करता ह या नग् ै न करके
पर्दशर्न करता है,
वह गुरुतर पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह, यह कहा जाता ह ै ।ै
6. गुरुतर पर्वेशन लᱹिगक हमल के े िलए दंड––जो कोई, गुरुतर पर्वेशन लᱹिगक हमला करेगा वह कठोर कारावास से िजसकी
अविध दस वषर् से कम की नहᱭ होगी िकन् तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दिडत िकया जाएगा और ज ं मा ु र्ने से भी दडनीय ं
होगा ।
ग.––लᱹिगक हमला और उसके िलए दंड
7. लᱹिगक हमला––जो कोई, लᱹिगक आशय से बालक की योिन, िलग, गुदा या स् तनᲂ को स् पशर् करता ह या बालक स ै े ऐसे
व् यिक् त या िकसी अन् य व् यिक् त की योिन, िलग, गुदा या स् तन का स् पशर् कराता ह या ल ै ᱹिगक आशय स कोई अन् े य कायर् करता ह िजसम ै ᱶ
पर्वेशन िकए िबना शारीिरक संपकर् अंतगर्र्स् त होता ह, लै ᱹिगक हमला करता ह, यह कहा जाता ह ै ।ै
8. लᱹिगक हमल के े िलए दंड––जो कोई, लᱹिगक हमला करेगा वह दोनᲂ मᱶ से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध तीन
वषर् से कम की नहᱭ होगी िकन् तु जो पांच वषर् तक की हो सकेगी, दिडत िकया जाएगा और ज ं ुमार्ने से भी दडनीय होगा । ं
घ.––गुरुतर लिगक हमला और उसक ᱹ े िलए दंड
9. गुरुतर लᱹिगक हमला––(क) जो कोई, पुिलस अिधकारी होते हुए, िकसी बालक पर––
(i) पुिलस थाने या ऐसे पिरसरᲂ की सीमाᲐ के भीतर जहां उसकी िनयुिक् त की गई ह; या ै
(ii) िकसी थाने के पिरसरᲂ मᱶ चाह उस प े ुिलस थाने मᱶ अविस् थत ह या नहᱭ िजसम ᱹ ᱶ उसकी िनयुिक् त की गई ह; या ै
(iii) अपने कतर्व् यᲂ के अनुकर्म मᱶ या अन् यथा; या
(iv) जहां वह, पुिलस अिधकारी के रूप मᱶ ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो,
पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ख) जो कोई, सशस् तर् बल या सुरक्षा बल का सदस् य होते हुए बालक पर,––
(i) ऐसे क्षेतर् की सीमाᲐ के भीतर िजसमᱶ वह व् यिक् त तैनात ह; या ै
(ii) सुरक्षा या सशस् तर् बलᲂ की कमान के अधीन िकन् हᱭ क्षेतर्ᲂ मᱶ; या
(iii) अपने कतर्व् यᲂ के अनुकर्म मᱶ या अन् यथा; या
(iv) जहां वह, सुरक्षा या सशस् तर् बलᲂ के सदस् य के रूप मᱶ ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो,
लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ग) जो कोई लोक सेवक होते हुए, िकसी बालक पर लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(घ) जो कोई, िकसी जेल, पर्ितपर्ेषण गृह या संरक्षण गृह या संपर्ेक्षण गृह या तत् समय पर्वृᱫ िकसी िविध ᳇ारा या उसके अधीन
स् थािपत अिभरक्षा या दखर े ेख और संरक्षण के िकसी अन् य स् थान का पर्बंध या कमर्चािरवृंद होते हुए, ऐसे जेल या पर्ितपर्ेषण गृह या
संपर्ेक्षण गृह या अिभरक्षा या दखर े ेख और संरक्षण के अन् य स् थान पर रह रह िकसी बालक पर ल े ᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ङ) जो कोई, िकसी अस् पताल, चाह सरकारी या पर्ाइव े ेट हो, का पर्बंध या कमर्चािरवृंद होते हुए उस अस् पताल मᱶ िकसी
बालक पर लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(च) जो कोई, िकसी शैक्षिणक संस् था या धािमक संस् था का पर्बंध तंतर् या कमर्चािरवृंद होते हुए उस संस् था मᱶ के िकसी बालक
पर लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(छ) जो कोई, िकसी बालक पर सामूिहक लᱹिगक हमला करता ह ।ै
स् पष् टीकरण––जहां िकसी बालक पर, िकसी समूह के एक या अिधक व् यिक् तयᲂ ᳇ारा उनके सामान् य आशय को अगर्सर करने मᱶ
लᱹिगक हमला िकया गया ह वहा ै ं ऐसे पर्त् येक व् यिक् त ᳇ारा इस खंड के अथार्न् तगर्त सामूिहक लᱹिगक हमला िकया जाना समझा जाएगा
और ऐसा पर्त् येक व् यिक् त उस कृत् य के िलए वैसी ही रीित से दायी होगा मानो वह उसके ᳇ारा अकेले िकया गया था; या
(ज) जो कोई, िकसी बालक पर घातक आयुध, अग् न् यायुध, गमर् पदाथर् या संक्षारक पदाथर् का पर्योग करते हुए लᱹिगक हमला
करता ह; या ै
(झ) जो कोई, िकसी बालक को घोर उपहित कािरत करते हुए या शारीिरक रूप से नुकसान और क्षित करत हुए या े
उसके/उसकी जननᱶिदर्यᲂ को क्षित करते हुए पर्वेशन लᱹिगक हमला करता ह; या
(ञ) जो कोई, िकसी बालक पर लᱹिगक हमला करता ह िजसस ै े––
(i) बालक शारीिरक रूप से अशक् त हो जाता ह या बालक मानिसक स् ै वास् थ् य अिधिनयम, 1987 (1987 का 14) की
धारा 2 के खंड (ठ) के अधीन यथापिरभािषत मानिसक रूप से रोगी हो जाता ह या िकसी पर्कार का ऐसा हर्ास कािरत करता ै
है िजससे बालक अस् थायी या स् थायी रूप से िनयिमत कायर् करने मᱶ अयोग् य हो जाता ह; या ै
(ii) बालक, मानव पर्ितरक्षाहर्ास िवषाणु या िकसी ऐसे अन् य पर्ाणघातक रोग या संकर्मण से गर्स् त हो जाता ह जो ै
बालक को शारीिरक रूप से अयोग् य, या िनयिमत कायर् करने मᱶ मानिसक रूप से अयोग् य करके अस् थायी या स् थायी रूप से
हर्ास कर सकेगा; या
(ट) जो कोई, बालक की मानिसक और शारीिरक अशक् तता का लाभ उठाते हुए बालक पर लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ठ) जो कोई, बालक पर एक से अिधक बार या बार-बार लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ड) जो कोई, बारह वषर् से कम आयु के िकसी बालक पर लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ढ) जो कोई, बालक का रक् त या दᱫक या िववाह या संरक्षकता ᳇ारा या पोषण दखभाल करन े े वाला नातेदार या बालक के
मात-िपता के साथ घरेलू संबंध रखते हुए या जो बालक के साथ साझी गृहस् थी मᱶ रहता ह, ऐस ै े बालक पर लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(ण) जो कोई, बालक को सेवा पर्दान करने वाली िकसी संस् था का स् वामी या पर्बंध या कमर्चािरवृंद होते हुए बालक पर लᱹिगक
हमला करता ह; या ै
(त) जो कोई िकसी बालक के न् यासी या पर्ािधकारी के पद पर होते हुए, बालक की िकसी संस् था या गृह या कहᱭ और, बालक
पर लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(थ) जो कोई, यह जानते हुए िक बालक गभर् से ह, बालक पर ल ै ᱹिगक हमला करता ह; या ै
(द) जो कोई, बालक पर लᱹिगक हमला करता ह और बालक की हत् ै या करने का पर्यत् न करता ह; या ै
(ध) जो कोई, सामुदाियक या पंिथक िहसा के दौरान बालक पर लᱹिगक हमला करता ह; या ै
(न) जो कोई, बालक पर लᱹिगक हमला करता ह और जो प ै ूवर् मᱶ इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध करने के िलए या
तत् समय पर्वृᱫ िकसी अन् य िविध के अधीन दडनीय कोई ल ं ᱹिगक अपराध िकए जाने के िलए दोषिस िकया गया ह; या ै
(प) जो कोई, बालक पर लᱹिगक हमला करता ह और बालक को साव ै र्जिनक रूप से िववस् तर् करता ह या नग् ै न करके पर्दशर्न
करता है,
वह गुरुतर लᱹिगक हमला करता ह, यह कहा जाता ह ै ।ै
10. गुरुतर लिगक हमल ᱹ के े िलए दंड––जो कोई, गुरुतर लᱹिगक हमला करेगा, वह दोनᲂ मᱶ से िकसी भांित के कारावास से
िजसकी अविध पांच वषर् से कम की नहᱭ होगी िकन् तु जो सात वषर् तक की हो सकेगी, दिडत िकया जाएगा और ज ं ुमार्ने से भी दडनीय ं
होगा ।
ङ.––लᱹिगक उत् पीड़न और उसके िलए दंड
11. लᱹिगक उत् पीड़न––कोई व् यिक् त, िकसी बालक पर लᱹिगक उत् पीड़न करता ह, यहा कहा जाता ह ै जब ऐसा व् ै यिक् त लᱹिगक
आशय से––
(i) कोई शब् द कहता ह या कोई ध् ै विन या अंगिवक्षप करता ह े या कोई वस् ै तु या शरीर का भाग इस आशय के साथ
पर्दिशत करता ह िक बालक ᳇ारा ऐसा शब् ै द या ध् विन सुनी जाएगी या ऐसा अंगिवक्षेप या वस् तु या शरीर का भाग दखा े
जाएगा; या
(ii) िकसी बालक को उसके शरीर या उसके शरीर का कोई भाग पर्दिशत करवाता ह िजसस ै े उसको ऐसे व् यिक् त या
िकसी अन् य व् यिक् त ᳇ारा दखा जा सक े े;
(iii) अश् लील पर्योजनᲂ के िलए िकसी पर्रूप या मीिडया मᱶ िकसी बालक को कोई वस् तु िदखाता ह; या ै
(iv) बालक को या तो सीधे या इलेक् टर्ािनक, अकीय या िकन् ं हᱭ अन् य साधनᲂ के माध् यम से बार-बार या िनरंतर
पीछा करता ह या द ै खता ह े या स ै ंपकर् करता ह; या ै
(v) बालक के शरीर के िकसी भाग या लᱹिगक कृत् य मᱶ बालक के अंतगर्र्स् त होने का, इलेक् टर्ािनक, िफल् म या अंकीय
या िकसी अन् य पित के माध् यम से वास् तिवक या गढ़े गए िचतर्ण को मीिडया के िकसी रूप मᱶ उपयोग करने की धमकी दता े
है; या
(vi) अश् लील पर्योजनᲂ के िलए िकसी बालक को पर्लोभन दता ह े या उसक ै े िलए पिरतोषण दता ह े ।
स् पष् टीकरण––कोई पर्श् न, िजसमᱶ “लᱹिगक आशय” अंतवर्िलत ह, तथ् ᱹ य का पर्श् न होगा ।
12. लᱹिगक उत् पीड़न के िलए दंड––जो कोई, िकसी बालक पर लᱹिगक उत् पीड़न करेगा वह दोनᲂ मᱶ से िकसी भांित के कारावास
से िजसकी अविध तीन वषर् तक की हो सकेगी, दिडत िकया जाएगा और ज ं ुमार्ने से भी दडनीय होगा । ं
अध् याय 3
अश् लील पर्योजनᲂ के िलए बालक का उपयोग और उसके िलए दंड
13. अश् लील पर्योजनᲂ के िलए बालक का उपयोग––जो कोई, िकसी बालक का, मीिडया के (िजसमᱶ टेलीिवजन चैनलᲂ या
इंटरनेट या कोई अन् य इलेक् टर्ािनक पर्रूप या मुिदर्त पर्रूप ᳇ारा पर्सािरत कायर्कर्म या िवज्ञापन चाह ऐस े काय े र्कर्म या िवज्ञापन का आशय
व् यिक् तगत उपयोग या िवतरण के िलए हो या नहᱭ, सिम् मिलत ह)ᱹ िकसी पर्रूप मᱶ ऐसे लᱹिगक पिरतोषण के पर्योजनᲂ के िलए उपयोग
करता ह, िजसम ै ᱶ िनम् निलिखत सिम् मिलत ह–– ᱹ
(क) िकसी बालक की जननᱶिदर्यᲂ का पर्ितदशर्न करना;
(ख) िकसी बालक का उपयोग वास् तिवक या नकली लᱹिगक कायᲄ मᱶ (पर्वेशन के साथ या उसके िबना) करना;
(ग) िकसी बालक का अशोभनीय या अश् लीलतापूणर् पर्ितदशर्न करना,
वह िकसी बालक का अश् लील पर्योजनᲂ के िलए उपयोग करने के अपराध का दोषी होगा ।
स् पष् टीकरण––इस धारा के पर्योजनᲂ के िलए “िकसी बालक का उपयोग” पद मᱶ अश् लील सामगर्ी को तैयार, उत् पादन,
पर्स् थापन, पारेषण, पर्काशन, सुकर और िवतरण करने के िलए मुदर्ण, इलेक् टर्ािनक, कम् प् यूटर या िकसी अन् य तकनीक के िकसी माध् यम से
िकसी बालक को अंतवर्िलत करना सिम् मिलत ह ।ै
14. अश् लील पर्योजनᲂ के िलए बालक के उपयोग के िलए दंड––(1) जो कोई, अश् लील पर्योजनᲂ के िलए िकसी बालक या
बालकᲂ का उपयोग करेगा, वह दोनᲂ मᱶ से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध पांच वषर् तक की हो सकेगी, दिडत िकया जाएगा ं
और जुमार्ने से भी दडनीय होगा तथा द ं सर ू े या पश् चात्वतᱮ दोषिसि की दशा मᱶ, वह दोनᲂ मᱶ से िकसी भांित के कारावास से िजसकी
अविध सात वषर् तक की हो सकेगी, दिडत िकया जाएगा और ज ं ुमार्ने से भी दडनीय ह ं ोगा ।
(2) यिद अश् लील पर्योजनᲂ के िलए बालक का उपयोग करने वाला व् यिक् त धारा 3 मᱶ िनिदष् ट िकसी अपराध को, अश् लील
कायᲄ मᱶ पर्त् यक्ष रूप से भाग लेकर करेगा, वह िकसी भांित के कारवास से िजसकी अविध दस वषर् से कम नहᱭ होगी िकतु जो आजीवन
कारावास तक की हो सकेगी, दिण् डत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दडनीय होगा । ं
(3) यिद अश् लील पर्योजनᲂ के िलए बालक का उपयोग करने वाला व् यिक् त धारा 5 मᱶ िनिदष् ट िकसी अपराध को, अश् लील
कायᲄ मᱶ पर्त् यक्ष रूप से भाग लेकर, करेगा, वह कठोर आजीवन कारावास से दिडत िकया जाएगा और ज ं ुमार्ने से भी दडनीय होगा । ं
(4) यिद अश् लील पर्योजनᲂ के िलए बालक का उपयोग करने वाला व् यिक् त धारा 7 मᱶ िनिदष् ट िकसी अपराध को, अश् लील
कायᲄ मᱶ पर्त् यक्ष रूप से भाग लेकर, करेगा, वह िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध छह वषर् से कम नहᱭ होगी िकन् तु जो आठ वषर्
तक की हो सकेगी, दिडत िकया जाएगा और ज ं ुमार्ने से भी दडनीय होगा । ं
(5) यिद अश् लील पर्योजनᲂ के िलए बालक का उपयोग करने वाला व् यिक् त धारा 9 मᱶ िनिदष् ट िकसी अपराध को, अश् लील
कायᲄ मᱶ पर्त् यक्ष रूप से भाग लेकर करेगा, वह िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध आठ वषर् से कम नहᱭ होगी िकतु जो दस वषर्
तक की हो सकेगी, दिडत िकया जाएगा और ज ं ुमार्ने से भी दडनीय होगा । ं
15. बालक को सिम् मिलत करन वाली अश् े लील सामगर्ी के भंडारकरण के िलए दंड––कोई व् यिक् त जो वािणिज् यक पर्योजनᲂ के
िलए बालक को सिम् मिलत करते हुए िकसी अश् लील सामगर्ी का िकसी भी रूप मᱶ भंडारकरण करेगा, वह िकसी भांित के कारावास से,
जो तीन वषर् तक का हो सकेगा या जुमार्ने से या दोनᲂ से दिडत िकया ं जाएगा ।
अध् याय 4
िकसी अपराध का दष् ुपर्ेरण और उसको करन का पर्यत् े न
16. िकसी अपराध का दष् ुपर्ेरण––कोई व् यिक् त िकसी अपराध के िकए जाने का दष् ुपर्ेरण करता ह, जो ै ––
पहला––उस अपराध को करने के िलए िकसी व् यिक् त को उकसाता ह; अथवा ै
दसरा ू ––उस अपराध को करने के िलए िकसी षᲽंतर् मᱶ एक या अिधक अन् य व् यिक् त या व् यिक् तयᲂ के साथ
सिम् मिलत होता ह, यिद उस षᲽ ै ंतर् के अनुसरण म, और उस अपराध को करन ᱶ े के उेश् य से, कोई कायर् या अवैध लोप घिटत
हो जाए; अथवा
तीसरा––उस अपराध के िलए िकए जाने मᱶ िकसी कायर् या अवैध लोप ᳇ारा साशय सहायता करता ह।
स् पष् टीकरण 1––कोई व् यिक् त जो जानबूझकर दव् ुयर्पदशन ᳇ारा या ताित्त्वक तथ् े य, िजसे पर्कट करने के िलए वह
आब है, जानबूझकर िछपाने ᳇ारा, स् वेच् छया िकसी अपराध का िकया जाना कािरत या उपाप् त करता ह अथवा कािरत या ै
उपाप् त करने का पर्यत् न करता ह, वह उस अपराध का िकया जाना उकसाता ह ै , यह कहा जाता ह ै ।ै
स् पष् टीकरण 2––जो कोई या तो िकसी कायर् के िकए जाने से पूवर् या िकए जाने के समय, उस कायर् के िकए जाने को
सुकर बनाने के िलए कोई कायर् करता ह और तरा उसक ै े िकए जाने को सुकर बनाता ह, वह उस काय ै र् के करने मᱶ सहायता
करता ह, यह कहा जाता ह ै ।ै
स् पष् टीकरण 3––जो कोई िकसी बालक को इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध के पर्योजन के िलए धमकी या
बल पर्योग या पर्पीड़न के अन् य रूप, अपहरण, कपट, पर्वंचना, शिक् त या िस् थित के दरुपयोग, भ ु े᳒ता या संदायᲂ को देने या
पर्ाप् त करने या अन् य व् यिक् त पर िनयंतर्ण रखने वाले िकसी व् यिक् त की सहमित पर्ाप् त करने के िलए फायदᲂ के माध् यम से
िनयोिजत करता ह, आशर्य द ै ता ह े या उस ै े पर्ाप् त या पिरवािहत करता ह, उस काय ै र् के करने मᱶ सहायता ह, यह कहा ै
जाता ह ।ै
17. दुष् पर्ेरण के िलए दंड––जो कोई इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध का दष् ुपर्ेरण करता ह, यिद द ै ष् ुपर्ेिरत कायर् दष् ुपर्ेरण
के पिरणामस् वरूप िकया जाता ह, तो वह उस द ै ड स ं े दिडत िकया जाएगा जो उस अपराध क ं े िलए उपबंिधत ह ।ै
स् पष्टीकरण ––कोई कायर् या अपराध दष् ुपर्ेरण के पिरणामस् वरूप िकया गया तब कहा जाता ह, जब वह उस उकसाहट क ै े
पिरणामस् वरूप या उस षᲽंतर् के अनुसरण मᱶ या उस सहायता से िकया जाता ह, िजसस ै े दष् ुपर्रेण गिठत होता ह ।ै
18. िकसी अपराध को करन के े पर्यत् न के िलए दंड––जो कोई इस अिधिनयम के अधीन दडनीय िकसी अपराध को करन ं े का
पर्यत् न करेगा या िकसी अपराध को करवाएगा और ऐसे पर्यत् न मᱶ अपराध करने हेतु कोई कायर् करेगा वह अपराध के िलए उपबंिधत
िकसी भांित के ऐसे कारावास से, यथािस् थित, िजसकी अविध आजीवन कारावास के आधे तक की या उस अपराध के िलए उपबंिधत
कारावास से िजसकी अविध दीघतम अविध क र् े आधे तक की हो सकेगी या जुमार्ने से या दोनᲂ से दडनीय होगा । ं
अध्याय 5
मामलᲂ की िरपोटर् करन के े िलए पर्िकर्या
19. अपराधᲂ की िरपोटर् करना––(1) दड पर्िकर्या स ं ंिहता, 1973 (1974 का 2) मᱶ िकसी बात के होते हुए भी कोई व् यिक् त
(िजसके अंतगर्त बालक भी ह)ै िजसको यह आशंका ह िक इस अिधिनयम क ै े अधीन कोई अपराध िकए जाने की संभावना ह या यह ै
जानकारी रखता ह िक ऐसा कोई अपराध िकया गया ह ै , वह िनम् निलिखत को ऐसी जानकारी उपलब् ै ध कराएगा :––
(क) िवशेष िकशोर पुिलस यूिनट; या
(ख) स् थानीय पुिलस ।
(2) उपधारा (1) के अधीन दी गई पर्त् येक िरपोटर् मᱶ––
(क) एक पर्िविष् ट संख् या अंिकत होगी और लेखब की जाएगी;
(ख) सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी;
(ग) पिलस य ु ूिनट ᳇ारा रखी जाने वाली पुिस् तका मᱶ पर्िवष् ट की जाएगी ।
(3) जहां उपधारा (1) के अधीन िरपोटर् बालक ᳇ारा दी गई ह, उस ै े उपधारा (2) के अधीन सरल भाषा मᱶ अिभिलिखत िकया
जाएगा िजससे बालक अिभिलिखत की जा रही अंतवर्स् तुᲐ को समझ सके ।
(4) यिद बालक ᳇ारा नहᱭ समझी जाने वाली भाषा मᱶ अंतवर्स् तु अिभिलिखत की जा रही ह या बालक यिद वह उसको समझन ै े
मᱶ असफल रहता ह तो कोई अन ै ुवादक या कोई दभािषया जो ऐसी अह ु ताए र् ं, अनभव रखता हो और ऐसी फीस क ु े संदाय पर जो िविहत
की जाए, जब कभी आवश् यक समझा जाए, उपलब् ध कराया जाएगा ।
(5) जहां िवशेष िकशोर पुिलस यूिनट या स् थानीय पुिलस का यह समाधान हो जाता ह िक उस बालक को, िजसक ै े िवरु कोई
अपराध िकया गया ह, दै खर े ेख और संरक्षण की आवश् यकता ह तब िरपोट ै र् के चौबीस घंटे के भीतर कारणᲂ को लेखब करने के पश् चात्
उसको यथािविहत ऐसी दखर े ेख और संरक्षण मᱶ (िजसके अंतगर्त बालक को संरक्षण गृह या िनकटतम अस् पताल मᱶ भतᱮ िकया जाना भी
है) रखने की तुरन् त व् यवस् था करेगी ।
(6) िवशेष िकशोर पुिलस यूिनट या स् थानीय पुिलस अनावश् यक िवलंब के िबना िकन् तु चौबीस घंटे की अविध के भीतर मामले
को बालक कल् याण सिमित और िवशेष न् यायालय या जहां कोई िवशेष न् यायालय पदािभिहत नहᱭ िकया गया ह वहा ै ं सेशन न् यायालय
को िरपोटर् करेगी, िजसके अंतगर्त बालक की दखभाल और स े ंरक्षण के िलए आवश् यकता और इस संबंध मᱶ िकए गए उपा ।
उपधारा (1) के पर्योजन के िलए सावपूवर्क दी गई जानकारी के िलए िकसी व् यिक् त ᳇ारा िसिवल या दांिडक कोई
दाियत् व उपगत नहᱭ होगा ।
20. मामल को िरपोट े र् करन के े िलए मीिडया, स् टूिडयो और फोटो िचतर्ण सिवधाᲐ की बाध् ु यता––मीिडया या होटल या लॉज
या अस् पताल या क् लब या स् टूिडयो या फोटो िचतर्ण संबंधी सुिवधाᲐ का कोई कािमक, चाह िजस नाम स े े ज्ञात हो, उनमᱶ िनयोिजत
व् यिक् तयᲂ की संख् या को दिष् ृ ट मᱶ लाए िबना िकसी ऐसी सामगर्ी या वस् तु की िकसी माध् यम से, जो िकसी बालक के लᱹिगक शोषण संबंधी
है, (िजसके अंतगत अश् र् लील सािहत् य, िलग संबंधी या बालक या बालकᲂ का अश् लील पर्दशर्न करना भी ह)ै, यथािस् थित, िवशेष िकशोर
पुिलस यूिनट या स् थानीय पुिलस को ऐसी जानकारी उपलब् ध कराएगा ।
21. मामल की िरपोट े र् करन ये ा अिभिलिखत करन मे िवफल रहन ᱶ के े िलए दंड––(1) कोई व् यिक् त जो धारा 19 की उपधारा
(1) या धारा 20 के अधीन िकसी अपराध के िकए जाने की िरपोटर् करने मᱶ िवफल रहगा या जो धारा े 19 की उपधारा (2) के अधीन ऐसे
अपराध को अिभिलिखत करने मᱶ िवफल रहगा, वह िकसी भी भा े ंित के कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा या जुमार्ने से या
दोनᲂ से, दिडत िकया जाएगा । ं
(2) िकसी कंपनी या िकसी संस् था (चाह िजस नाम स े े ज्ञात हो) का भारसाधक कोई व् यिक् त जो अपने िनयंतर्णाधीन िकसी
अधीनस् थ के संबंध मᱶ धारा 19 की उपधारा (1) के अधीन िकसी अपराध के िकए जाने की िरपोटर् करने मᱶ िवफल रहगा, वह ऐसी अविध े
के कारावास से, जो एक वषर् तक का हो सकेगा और जुमार्ने से दिडत िकया जाएगा । ं
(3) उपधारा (1) के उपबंध इस अिधिनयम के अधीन िकसी बालक को लागू नहᱭ हᲂगे ।
22. िमथ् या पिरवाद या िमथ् या सचना क ू े िलए दंड––(1) कोई व् यिक् त जो धारा 3, धारा 5, धारा 7 और धारा 9 के अधीन
िकए गए िकसी अपराध के संबंध मᱶ िकसी व् यिक् त के िवरु उसको अपमािनत करन, उािपत करन े े या धमकाने या उसकी मानहािन
करने के एकमातर् आशय से िमथ् या पिरवाद करेगा या िमथ् या सूचना उपलब् ध कराएगा, वह ऐसे कारावास से, जो छह मास तक का हो
सकेगा या जुमार्ने से या दोनᲂ से, दिडत िकया जाएगा । ं
(2) जहां िकसी बालक ᳇ारा कोई िमथ् या पिरवाद िकया गया ह या िमथ् ै या सूचना उपलब् ध कराई गई ह, वहा ै ं ऐसे बालक पर
कोई दड अिधरोिपत नहᱭ िकया जाएगा । ं
(3) जो कोई, बालक नहᱭ होते हुए, िकसी बालक के िवरु कोई िमथ् या पिरवाद करेगा या िमथ् या सूचना उसको िमथ् या
जानते हुए उपलब् ध कराएगा िजसके ᳇ारा ऐसा बालक इस अिधिनयम के अधीन िकन् हᱭ अपराधᲂ के िलए उत् पीिड़त हो, वह ऐसे
कारावास से, जो एक वषर् तक का हो सकेगा या जुमार्ने से या दोनᲂ से दिडत िकया जाएगा । ं
23. मीिडया के िलए पर्िकर्या––(1) कोई व् यिक् त, िकसी भी पर्कार के मीिडया या स् टूिडयो या फोटो िचतर्ण संबंधी सुिवधाᲐ
से, कोई पूणर् या अिधपर्मािणत सूचना रखे िबना, िकसी बालक के संबंध मᱶ कोई ऐसी िरपोटर् नहᱭ करेगा या उस पर कोई ऐसी टीका-
िटप् पणी नहᱭ करेगा िजससे उसकी ख् याित का हनन या उसकी िनजता का अितलंघन होना पर्भािवत होता हो ।
(2) िकसी मीिडया मᱶ कोई िरपोटर्, बालक की पहचान को, िजसके अंतगर्त उसका नाम, पता, फोटोिचतर्, पिरवार के ब् यौरे,
िव᳒ालय, पड़ोस या कोई ऐसी अन् य िविशिष् टयां भी ह, िजनस ᱹ े बालक की पहचान का पर्कटन होता हो, पर्कट नहᱭ करेगी :
परन् तु ऐसे कारणᲂ से जो अिभिलिखत िकए जाएंगे, अिधिनयम के अधीन मामल का िवचारण करन े े के िलए सक्षम िवशेष
न् यायालय ऐसे पर्कटन के िलए अनुज्ञात कर सकेगा यिद उसकी राय मᱶ ऐसा पर्कटन, बालक के िहत मᱶ ह ।ै
(3) मीिडया या स् टूिडयो या फोटो िचतर्ण संबंधी सुिवधाᲐ का कोई पर्काशक या स् वामी, संयुक् त रूप से और पृथक् रूप से
अपने कमर्चारी के कायᲄ और लोपᲂ के िलए दाियत् वाधीन होगा ।
(4) कोई व् यिक् त जो उपधारा (1) या उपधारा (2) के उपबंधᲂ का उल् लंघन करेगा, िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध छह मास से कम की नहᱭ होगी िकन् तु जो एक वषर् तक की हो सकेगी या जुमार्ने से या दोनᲂ से, दिडत िकए जान ं े के िलए दायी
होगा ।
अध् याय 6
बालक के कथनᲂ को अिभिलिखत करन के े िलए पर्िकर्या
24. बालक के कथन को अिभिलिखत िकया जाना––(1) बालक के कथन को, बालक के िनवास पर या ऐसे स् थान पर जहां वह
साधारणतया िनवास करता ह या उसकी पस ै ंद के स् थान पर और यथासाध् य, उप-िनरीक्षक की पंिक् त से अन् यून िकसी मिहला पुिलस
अिधकारी ᳇ारा अिभिलिखत िकया जाएगा ।
(2) बालक के कथन को अिभिलिखत िकए जाते समय पुिलस अिधकारी वदᱮ मᱶ नहᱭ होगा ।
(3) अन् वेषण करने वाला पुिलस अिधकारी, बालक की परीक्षा करते समय यह सुिनिश् चत करेगा िक बालक िकसी भी समय
पर अिभयुक् त के िकसी भी पर्कार से संपकर् मᱶ न आए ।
(4) िकसी बालक को िकसी भी कारण से राितर् मᱶ िकसी पुिलस स् टेशन मᱶ िनरु नहᱭ िकया जाएगा ।
(5) पुिलस अिधकारी यह सुिनिश् चत करᱶगे िक बालक की पहचान पिब् लक मीिडया से तब तक सरिक्षत की ह ं जब तक िक ै
बालक के िहत मᱶ िवशेष न् यायालय ᳇ारा अन् यथा िनदिशत न िकया गया हो । े
25. मिजस् टर्ेट ᳇ारा बालक के कथन का अिभलखने ––(1) यिद बालक का कथन, दण् ड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2)
(िजसे इसमᱶ इसके पश् चात् संिहता कहा गया ह) ै की धारा 164 के अधीन अिभिलिखत िकया जाता ह तो उसम ै ᱶ अंतिवष् ट िकसी बात के
होते हुए भी, ऐसे कथन को अिभिलिखत करने वाला मिजस् टर्ेट, बालक ᳇ारा बोले गए अनुसार कथन को अिभिलिखत करेगा :
परंतु संिहता की धारा 164 की उपधारा (1) के पर्थम पंरतुक मᱶ अतिवष् ं ट उपबंध, जहां तक वह अिभयुक् त के अिधवक् ता की
उपिस् थित अनुज्ञात करता ह, इस मामल ै े मᱶ लागू नहᱭ होगा ।
(2) मिजस् टर्ेट, उस संिहता की धारा 173 के अधीन पुिलस ᳇ारा अंितम िरपोटर् फाइल िकए जाने पर, बालक और उसके
माता-िपता या उसके पर्ितिनिध को संिहता की धारा 207 के अधीन िविनिदष् ट दस् तावज की एक पर्ित, पर्दान कर े ेगा ।
26. अिभिलिखत िकए जान वाल े कथन क े े संबंध म अितिरक् ᱶ त उपबंध––(1) यथािस् थित, मिजस् टर्ेट या पुिलस अिधकारी,
बालक के माता-िपता या ऐसे िकसी अन् य व् यिक् त, िजसमᱶ बालक का भरोसा या िवश् वास ह, उपिस् ै थित मᱶ बालक ᳇ारा बोले गए अनुसार
कथन अिभिलिखत करेगा ।
(2) जहां आवश् यक ह, वहा ै ं, यथािस् थित, मिजस् टर्ेट या पुिलस अिधकारी, बालक का कथन अिभिलिखत करते समय िकसी
अनुवादक या िकसी दभािषए की, जो ऐसी अह ु ताए र् ं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर जो िविहत की जाए, सहायता ले
सकेगा ।
(3) यथािस् थित, मिजस् टर्ेट या पुिलस अिधकारी िकसी बालक का कथन अिभिलिखत करने के िलए मानिसक या शारीिरक
िन:शक् तता वाले बालक के मामले मᱶ िकसी िवशेष िशक्षक या बालक से संपकर् की रीित से सुपिरिचत िकसी व् यिक् त या उस क्षेतर् मᱶ िकसी
िवशेषज्ञ की, जो ऐसी अहताए र् ं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर जो िविहत की जाए, की सहायता ले सकेगा ।
(4) जहां संभव ह, वहा ै ं, यथािस् थित, मिजस् टर्ेट या पुिलस अिधकारी यह सुिनिश् चत करेगा िक बालक का कथन शर्व् य-दश् ृय
इलेक् टर्ािनक माध् यमᲂ से भी अिभिलिखत िकया जाए ।
27. बालक की िचिकत् सीय परीक्षा––(1) उस बालक की िचिकत् सीय परीक्षा, िजसके संबंध मᱶ इस अिधिनयम के अधीन कोई
अपराध िकया गया ह, इस बात क ै े होते हुए भी िक इस अिधिनयम के अधीन अपराधᲂ केिलए कोई पर्थम सूचना िरपोटर् या पिरवाद
रिजस् टर्ीकृत नहᱭ िकया गया ह, दै ड पर्िकर्या स ं ंिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 164क के अनुसार की जाएगी ।
(2) यिद पीिड़त कोई बािलका ह तो िचिकत् ै सीय परीक्षा िकसी मिहला डॉक् टर ᳇ारा की जाएगी ।
(3) िचिकत् सीय परीक्षा बालक के माता-िपता या िकसी अन् य व् यिक् त की उपिस् थित मᱶ की जाएगी िजसमᱶ बालक भरोसा या
िवश् वास रखता हो ।
(4) जहां उपधारा (3) मᱶ िनिदष् ट बालक के माता-िपता या अन् य व् यिक् त, बालक की िचिकत् सीय परीक्षा के दौरान िकसी
कारण से उपिस् थत नहᱭ हो सकता ह तो िचिकत् ै सीय परीक्षा, िचिकत् सा संस् था के पर्मुख ᳇ारा नामिनिदष् ट िकसी मिहला की उपिस् थित मᱶ
की जाएगी ।
अध् याय 7
िवशष न् े यायालय
28. िवशष न् े यायालयᲂ को अिभिहत िकया जाना––(1) त् विरत िवचारण उपलब् ध कराने के पर्योजनᲂ के िलए राज् य सरकार,
उच् च न् यायालय के मुख् य न् यायामूित के परामशर् से, राजपतर् मᱶ अिधसूचना ᳇ारा पर्त् येक िजला के िलए इस अिधिनयम के अधीन अपराधᲂ
का िवचारण करने के िलए िकसी सेशन न् यायालय को एक िवशेष न् यायालय होने के िलए, अिभिहत करेगी :
परन् तु यिद िकसी सेशन न् यायालय को, बालक अिधकार सरंक्षण आयोग अिधिनयम, 2005 (2006 का 4) या तत् समय पर्वृᱫ
िकसी अन् य िविध के अधीन उन् हᱭ पर्योजनᲂ के िलए अिभिहत िकसी िवशेष न् यायालय को, बालक न् यायालय के रूप मᱶ अिधसूिचत कर
िदया ह, तो ऐसा न् ै यायालय इस धारा के अधीन िवशेष न् यायालय समझा जाएगा ।
(2) इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध का िवचारण करते समय कोई िवशेष न् यायालय िकसी ऐसे अपराध का [उपधारा
(1) मᱶ िनिदष् ट िकसी अपराध से िभन् न] िवचारण भी करेगा िजसके साथ अिभयुक् त को दड पर्िकर्या स ं ंिहता, 1973 (1974 का 2) के
अधीन उसी िवचारण मᱶ आरोिपत िकया जा सकेगा ।
(3) इस अिधिनयम के अधीन गिठत िवशेष न् यायालय को, सूचना पर्ौ᳒ोिगकी अिधिनयम, 2000 (2000 का 21) मᱶ िकसी बात
के होते हुए भी, उस अिधिनयम की धारा 67ख के अधीन अपराधᲂ का, जहां तक िक वे िकसी कृत् य या व् यवहार या रीित मᱶ बालकᲂ को
िचितर्त करने वाली लᱹिगक पर्कटन सामगर्ी के पर्काशन या पारेषण से संबंिधत ह, या बालकᲂ का आन-लाईन द ᱹ रुपयोग स ु ुकर बनात ।
29. कितपय अपराधᲂ के बारे म उपधारणा ᱶ ––जहां िकसी व् यिक् त को इस अिधिनयम की धारा 3, धारा 5, धारा 7 और
धारा 9 के अधीन िकसी अपराध को करने या दष् ुपर्रेण करने या उसको करने का पर्यत् न करने के िलए अिभयोिजत िकया गया ह वहा ै ं
िवशेष न् यायालय तब तक यह उपधारणा करेगा िक ऐसे व् यिक् त ने, यथािस् थित, वह अपराध िकया ह, दै ष् ुपर्ेरण िकया ह या उसको करन ै े
का पर्यत् न िकया ह जब तक िक इसक ै े िवरु सािबत नहᱭ कर िदया जाता ह ।ै
30. आपरािधक मानिसक दशा की उपधारणा––(1) इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध के िलए िकसी अिभयोजन मᱶ, जो
अिभयुक् त की ओर से आपरािधक मानिसक िस् थित की अपेक्षा करता ह, िवश ै ेष न् यायालय ऐसी मानिसक दशा की िव᳒मानता की
उपधारणा करेगा, िकन् तु अिभयुक् त के िलए यह तथ् य सािबत करने के िलए पर्ितरक्षा होगी िक उस अिभयोजन मᱶ िकसी अपराध के रूप
मᱶ आरोिपत कृत् य के संबंध मᱶ उसकी ऐसी मानिसक दशा नहᱭ थी ।
(2) इस धारा के पर्योजनᲂ के िलए िकसी तथ् य का सािबत िकया जाना केवल तभी कहा जाएगा जब िवशेष न् यायालय उसके
युिक् तयुक् त संदेह से परे िव᳒मान होने पर िवश् वास करता ह और क ै ेवल तब नहᱭ जब इसकी िव᳒मानता संभाव् यता की पर्बलता ᳇ारा
स् थािपत होती ह ।ै
स् पष् टीकरण––इस धारा मᱶ “आपरािधक मानिसक दशा” के अंतगर्त आशय, हेतुक, िकसी तथ् य का ज्ञान और िकसी तथ् य मᱶ
िवश् वास या िवश् वास िकए जाने का कारण भी ह ।ै
31. िवशष न् े यायालय के समक्ष कायवािहयᲂ को द र् ड पर्िकर्या स ं िहता, ं 1973 का लाग होना ू ––इस अिधिनयम म अन् ᱶ यथा
उपबंिधत के िसवाय दड पर्िकर्या स ं ंिहता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध (जमानत और बंधपतर् िवषयक उपबंधᲂ सिहत) िकसी िवशेष
न् यायालय के समक्ष कायर्वािहयᲂ को लागू हᲂगे और उक् त उपबंधᲂ के पर्योजनᲂ के िलए िवशष न् े यायालय को सेशन न् यायालय समझा
जाएगा तथा िवशेष न् यायालय के समक्ष अिभयोजन का संचालन करने वाले व् यिक् त को, लोक अिभयोजक समझा जाएगा ।
32. िवशष लोक अिभयोजक े ––(1) राज् य सरकार, राजपतर् मᱶ अिधसूचना ᳇ारा, केवल इस अिधिनयम के उपबंधᲂ के अधीन
मामलᲂ का संचालन करने के िलए पर्त् येक िवशेष न् यायालय के िलए एक िवशेष लोक अिभयोजक की, िनयुिक् त करेगी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िवशष लोक अिभयोजक क े े रूप मᱶ िनयुक् त िकए जाने के िलए कोई व् यिक् त केवल तभी पातर् होगा
यिद उसने सात वषर् से अन् यून अविध के िलए अिधवक् ता के रूप मᱶ िविध व् यवसाय िकया हो ।
(3) इस धारा के अधीन िवशेष लोक अिभयोजक के रूप मᱶ िनयुक् त पर्त् येक व् यिक् त, दड पर्िकर्या स ं ंिहता, 1973 (1974 का 2)
की धारा 2 के खंड (प) के अथार्ंतगर्त एक लोक अिभयोजक समझा जाएगा और उस सिहता क ं े उपबंध तद्नुसार पर्भावी हᲂगे ।
अध् याय 8
िवशष न् े यायालयᲂ की पर्िकर्या और शिक् तया तथा सा᭯ ं य का अिभलखने
33. िवशष न् े यायालयᲂ की पर्िकर्या और शिक् तया––ं (1) कोई िवशेष न् यायालय, अिभयुक् त को िवचारण के िलए उसको सुपुदर्
िकए िबना िकसी अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध का गठन करने वाले तथ् यᲂ का पिरवाद पर्ाप् त होने पर या ऐसे तथ् यᲂ की पुिलस िरपोटर्
पर, ले सकेगा ।
(2) यथािस् थित, िवशेष लोक अिभयोजक या अिभयुक् त के िलए उपसंजात होने वाला काउंसेल बालक की मुख् य परीक्षा,
पर्ितपरीक्षा, या पुन: परीक्षा अिभिलिखत करते समय बालक से पूछे जाने वाले पर्श् नᲂ को, िवशेष न् यायालय को संसूिचत करेगा जो कर्म
से उन पर्श् नᲂ को बालक के समक्ष रखेगा ।
(3) िवशेष न् यायालय, यिद वह आवश् यक समझे, िवचारण के दौरान बालक के िलए बार-बार िवराम अनुज्ञात कर सकेगा ।
(4) िवशेष न् यायालय, बालक के पिरवार के िकसी सदस् य, संरक्षक, िमतर् या नातेदार की, िजसमᱶ बालक का भरोसा और
िवश् वास ह, न् ै यायालय मᱶ उपिस् थित अनुज्ञात करके बालक के िलए िमतर्तापूणर् वातावरण सृिजत करेगा ।
(5) िवशेष न् यायालय यह सुिनिश् चत करेगा िक बालक को न् यायालय मᱶ सा᭯ य देने के िलए बार-बार नहᱭ बुलाया जाए ।
(6) िवशेष न् यायालय, िवचारण के दौरान आकर्ामक या बालक के चिरतर् हनन संबंधी पर्श् न पूछने के िलए अनुज्ञात नहᱭ करेगा
और यह सुिनिश् चत करेगा िक सभी समय बालक की गिरमा बनाए रखी जाए ।
(7) िवशेष न् यायालय यह सुिनिश् चत करेगा िक अन् वेषण या िवचारण के दौरान िकसी भी समय बालक की पहचान पर्कट नहᱭ
की जाए :
परंतु ऐसे कारणᲂ से जो अिभिलिखत िकए जाएं, िवशेष न् यायालय ऐसे पर्कटन की अनुज्ञा द सक े ेगा, यिद उसकी राय मᱶ ऐसा
पर्कटन बालक के िहत मᱶ ह । ै
स् पष् टीकरण––इस उपधारा के पर्योजनᲂ के िलए, बालक की पहचान मᱶ, बालक के कुटुंब, िव᳒ालय, नातेदार, पड़ोसी की
पहचान या कोई अन् य सूचना िजसके ᳇ारा बालक की पहचान का पता चल सके सिम् मिलत हᲂगे ।
परंतु यिद बालक का कुटुंब या संरक्षक िविधक का काउंसेल का व् यय वहन करने म असमथ ᱶ र् ह तो िविधक स ै ेवा पर्ािधकरण
उसको वकील उपलब् ध कराएगा ।
41. कितपय मामलᲂ म धारा ᱶ 3 स धारा े 13 तक के उपबधᲂ का लाग ं न होना ू ––धारा 3 से धारा 13 (िजसमᱶ दोनᲂ सिम् मिलत
हᱹ) तक के उपबंध बालक की िचिकत् सीय परीक्षा या िचिकत् सीय उपचार की दशा मᱶ तब लागू नहᱭ हᲂग जब ऐसी िचिकत् े सीय परीक्षा या
िचिकत् सीय उपचार उसके माता-िपता या संरक्षक की सहमित से िकए जा रह हᲂ । े
1
[42. आनकिल् पक द ु ंड––जहां िकसी कायर् या लोप से इस अिधिनयम के अधीन और भारतीय दड स ं ंिहता (1860 का 45) की
धारा 166क, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 370, धारा 370क, धारा 375, धारा 376, धारा 376क, धारा
376ख, धारा 376ग, धारा 376घ, 376ङ या धारा 509 के अधीन भी दडनीय कोई अपराध गिठत होता ह ं वहा ै ं, तत् समय पर्वृᱫ िकसी
िविध मᱶ अतिवष् ं ट िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे अपराध का दोषी पाया गया अपराधी उस दड का भागी होगा, जो इस अिधिनयम क ं े
अधीन या भारतीय दड स ं ंिहता के अधीन मातर्ा मᱶ गुरुतर ह ।ै
42क. अिधिनयम का िकसी अन् य िविध के अल् पीकरण म नᱶ होना––इस अिधिनयम के उपबंध तत् समय पर्वृᱫ िकसी अन् य िविध
के उपबंधᲂ के अितिरक् त हᲂगे न िक उनके अल् पीकरण मᱶ और िकसी असंगित की दशा मᱶ इस अिधिनयम के उपबधᲂ का उस अस ं ंगित की
सीमा तक ऐसी िकसी िविध के उपबंधᲂ पर अध् यारोही पर्भाव होगा ।]
43. अिधिनयम के बारे म लोक जागरुकता ᱶ ––केन् दर्ीय सरकार और पर्त् येक राज् य सरकार यह सुिनिश् चत करने के िलए सभी
उपाय करᱶगी िक––
(क) साधारण जनता, बालकᲂ के साथ ही उनके माता-िपता और सरक्षकᲂ को इस अिधिनयम क ं े उपबंधᲂ के पर्ित
जागरुक बनाने के िलए इस अिधिनयम के उपबधᲂ का मीिडया, िजसक ं े अंतगर्त टेलीिवजन, रेिडयो और िपर्ट मीिडया भी
सिम् मिलत ह, कै े माध् यम से िनयिमत अतरालᲂ पर व् ं यापक पर्चार िकया जाता है;
(ख) केन् दर्ीय सरकार और राज् य सरकारᲂ के अिधकािरयᲂ और अन् य संब व् यिक् तयᲂ (िजसके अन् तगत प र् ुिलस
अिधकारी भी ह)ᱹ को अिधिनयम के उपबंधᲂ के कायार्न् वयन से संबंिधत िवषयᲂ पर आविधक पर्िशक्षण पर्दान िकया जाता ह ।ै
44. अिधिनयम के िकर्यान् वयन की मानीटरी––(1) यथािस् थित, बालक अिधकार सरक्षण आयोग अिधिनयम, ं 2005 (2006 का
4) की धारा 3 के अधीन गिठत बालक अिधकार संरक्षण के िलए राष् टर्ीय आयोग या धारा 17 के अधीन गिठत बालक अिधकार संरक्षण
के िलए राज् य आयोग, उस अिधिनयम के अधीन उनको समनुदेिशत कृत् यᲂ के अितिरक् त इस अिधिनयम के उपबंधᲂ के िकर्यान् वयन की
मानीटरी ऐसी रीित से, जो िविहत की जाए, करᱶगे ।
(2) उपधारा (1) मᱶ िनिदष् ट, यथािस् थित, राष् टर्ीय आयोग या राज् य आयोग को इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध से
संबंिधत िकसी मामले की जांच करते समय वही शिक् तयां हᲂगी जो उनको बालक अिधकार संरक्षण आयोग अिधिनयम, 2005 (2006
का 4) के अधीन िनिहत की गई ह ।ᱹ
(3) उपधारा (1) मᱶ िनिदष् ट, यथािस् थित, राष् टर्ीय आयोग या राज् य आयोग इस धारा के अधीन उनके कायर्कलापᲂ को, बालक
अिधकार संरक्षण आयोग अिधिनयम, 2005 (2006 का 4) की धारा 16 मᱶ िनिदष् ट िरपोटर् मᱶ भी सिम् मिलत करᱶगे ।
45. िनयम बनान की शिक् े त—(1) केन् दर्ीय सरकार इस अिधिनयम के पर्योजनᲂ को कायार्िन् वत करने के िलए राजपतर् मᱶ
अिधसूचना ᳇ारा िनयम बना सकेगी ।
(2) िविशष् टतया और पूवर्गामी शिक् त की व् यापकता पर पर्ितकूल पर्भाव डाले िबना ऐसे िनयम िनम् निलिखत सभी या िकन् हᱭ
िवषयᲂ के िलए उपबंध कर सकᱶगे, अथार्त्:—
(क) धारा 19 की उपधारा (4), धारा 26 की उपधारा (2) और उपधारा (3) तथा धारा 38 के अधीन िकसी
अनुवादक या दभािषए, िकसी िवश ु ेष िशक्षक या बालक से संपकर् करने की रीित से सुपिरिचत िकसी व् यिक् त या उस क्षेतर् के
िकसी िवशेषज्ञ की अहताए र् ं और अनुभव तथा संदेय फीस;
(ख) धारा 19 की उपधारा (5) के अधीन बालक की दखभाल और स े रक्षण तथा आपात िचिकत् ं सीय उपचार;
(ग) धारा 33 की उपधारा (8) के अधीन पर्ितकर का संदाय;
(घ) धारा 44 की उपधारा (1) के अधीन अिधिनयम के उपबंधᲂ की आविधक मानीटरी की रीित ।
(3) इस धारा के अधीन बनाया गया पर्त् येक िनयम बनाए जाने के पश् चात् यथाशीघर् संसद क् े पर्त् येक सदन के समक्ष जब वह
सतर् मᱶ हो, कुल तीस िदन की अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक सतर् मᱶ अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर्ᲂ मᱶ पूरी हो
सकेगी । यिद उस सतर् के या पूवᲃक् त आनुकर्िमक सतर्ᲂ के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोनᲂ सदन उस िनयम मᱶ कोई पिरवतन र्
करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत् पश् चात् वह ऐसे पिरवितत रूप मᱶ ही पर्भावी होगा । यिद उक् त अवसान के पूवर् दोनᲂ सदन सहमत ।
ो जाएं िक वह िनयम नहᱭ बनाया जाना चािहए तो तत् पश् चात् वह िनष् पर्भाव हो जाएगा िकन् तु िनयम के ऐसे पिरवितत या िनष् पर्भाव
होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान् यता पर पर्ितकूल पर्भाव नहᱭ पड़गा । े
46. किठनाइयᲂ को दर करन ू की शिक् े त—(1) यिद इस अिधिनयम के उपबंधᲂ को पर्भावी करने मᱶ कोई किठनाई उत् पन् न होती
है तो केन् दर्ीय सरकार, राजपतर् मᱶ पर्कािशत आदश ᳇ारा, ऐस े े उपबंध कर सकेगी, जो उसे किठनाइयां दर करन ू े के िलए आवश् यक या
समीचीन पर्तीत हᲂ और जो इस अिधिनयम के उपबंधᲂ से असंगत न हᲂ :
परंतु कोई आदश इस धारा क े े अधीन इस अिधिनयम के पर्ारंभ से दो वषर् की अविध की समािप् त के पश् चात् नहᱭ िकया
जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन िकया गया पर्त् येक आदश िकए जान े े के पश् चात्, यथाशीघर्, संसद क् े पर्त् येक सदन के समक्ष रखा
जाएगा ।