दुर्ग । असल बात न्यूज़।। 00 विधि संवाददाता यहां न्यायालय ने लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 में दोषी पाए जाने पर अभि...
दुर्ग ।
असल बात न्यूज़।।
00 विधि संवाददाता
यहां न्यायालय ने लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 में दोषी पाए जाने पर अभियुक्त को 20 साल की सजा सुनाई है। अपर सत्र न्यायाधीश चतुर्थ एफटीएसई दुर्ग श्रीमती संगीता नवीन तैयारी के न्यायालय ने सुनवाई और विचारण के बाद यह सजा सुनाई है। न्यायालय ने अभियोक्तरी की मानसिक व शारीरिक पीड़ा को समझते हुए आहत प्रतिकार योजना से उसको पुनर्वास हेतु विधि अनुरूप राशि प्रदान करने का भी आदेश भी दिया है।
यह घटना 12 मार्च 2020 की आरक्षी केंद्र नंदनी की है। अभियोक्तरी के माता-पिता ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि मार्च 2020 में स्कूल में परीक्षा देने के लिए गई उनकी पुत्री स्कूल नहीं पहुंची। स्कूल से उसके परीक्षा में उपस्थित नहीं होने का फोन आया। तब उन्होंने उसकी आसपास तलाश की और नंदनी थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पीड़िता को मध्य प्रदेश के जिला मंडला के ग्राम बिछिया से आरोपी रामप्रकाश मरावी के कब्जे से गवाहों के समक्ष बरामद किया गया।
न्यायालय के समक्ष अभियोक्तरी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि वह स्कूल आने के बाद स्वेच्छा से अभियुक्त के साथ गई और बेमेतरा से बस पर बैठकर बिछिया गई थी। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अभियोक्तरी घटना दिनांक को 18 वर्ष से कम उम्र की अप्राप्तवय बालिका थी अतः उसकी स्वेच्छा या सहमति का कोई विधिक महत्व नहीं रह जाता। न्यायालय के समक्ष अभियुक्त ओर से कोई बचाव साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया। अभियोक्तरी की उम्र को प्रमाणित करने उसका रेडियोलॉजिकल परीक्षण भी कराया जिसमें उसकी उम्र 16 से 17 वर्ष के बीच आंकी गई है।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने पीड़ित अभियोक्त्री के सहमत पक्षकार होने का तर्क दिया जिसमें विशेष लोक अभियोजक संतोष कसार ने पीड़िता के अवयस्क होने की वजह से उसके सहमत होने अथवा नहीं होने का तर्क दिया। न्यायालय में कई साक्षी पक्ष द्रोही घोषित कर लिए गए। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि अभियुक्त ने विधिक संरक्षक के सहमति के बिना पीड़िता को अपने साथ ले गया तो व्यपहरण का अपराध स्वयं पूर्ण हो जाता है।