15 जून, बुधवार को सूर्य की मिथुन संक्रांति है। इस समय से सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्...
15 जून, बुधवार को सूर्य की मिथुन संक्रांति है। इस समय से सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसे संक्रांति कहा जाता है। जिस राशि में प्रवेश करते हैं, उस राशि से जुड़ी संक्रांति होती है। सूर्य का राशि परिवर्तन सभी 12 राशियों को प्रभावित करता है। किसी राशि के लिए सूर्य की संक्रांति अच्छे परिणाम देने वाली होती है, तो किसी के लिए यह अशुभ या नकारात्मक परिणाम देने वाली साबित होती है। आइए जानते हैं सूर्य के मिथुन संक्रांति से जुड़े समय के बारे में।
मिथुन संक्रांति पुण्य काल
पंचांग के अनुसार मिथुन संक्राति 15 जून, बुधवार को है। इस दिन संक्रांति का समय दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर है। इस समय से मिथुन संक्रांति शुरू हो जाएगी। इस समय सूर्य देव मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। मिथुन संक्रांति के दिन महा पुण्य काल की शुरुआत दोपहर 12 बजकर 18 मिनट से होगी। वहीं महा पुण्य काल की समाप्ति 2 बजकर 38 मिनट पर होगी। ऐसे में महा पुण्य काल की अवधि 2 घंटे 20 मिनट की होगी। इस दिन स्नान के बाद किसी ब्राम्हण को गेहूं, गुड़, घी, अनाज इत्यादि वस्तुओं का दान करना शुभ माना गया है।
मिथुन संक्रांति का प्रभाव
इस संक्रांति के कारण भय और चिंता का माहौल रहता है। लोग सर्दी-जुकाम से पीड़ित रहेंगे। कई स्थानों पर या देशों के मध्य संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। वस्तुओं की लागत सामान्य होगी। मिथुन संक्रांति में भ्रष्टाचारी और अपराधी सक्रिय हो सकते हैं।
यह है मिथुन संक्रांति कथा
मान्यता के अनुसार जैसे औरतों को हर महीने मासिक धर्म होता है, जो उनके शरीर के विकास का प्रतीक है, वैसे ही धरती माँ या भूदेवी, उन्हें शुरुवात के तीन दिनों में मासिक धर्म हुआ, जो धरती के विकास का प्रतीक है। मिथुन संक्रांति पर्व में ये तीन दिन यही माना जाता है कि भूदेवी को मासिक धर्म हो रहे है। चौथे दिन भूदेवी को स्नान कराया गया, इसी दिन को वासुमती गढ़ुआ कहते है। पिसने वाले पत्थर जिसे सिल बट्टा कहते है, भूदेवी का रूप माना जाता है। इस पर्व में धरती की पूजा की जाती है, ताकि अच्छी फसल मिले। विष्णु के अवतार जगतनाथ भगवान की पत्नी भूदेवी की चांदी की प्रतिमा आज भी उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में विराजमान है।