Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Pages

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

ब्रेकिंग :

latest

Breaking News

डॉ. मेरीली रॉय की काव्य कृति 'डिवाइन रिलेशंस' का विमोचन

भिलाई। असल बात न्यूज़।। इंदिरा गांधी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, वैशाली नगर में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. मेरीली रॉय के काव्य संग्रह...

Also Read


भिलाई।

असल बात न्यूज़।।

इंदिरा गांधी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, वैशाली नगर में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. मेरीली रॉय के काव्य संग्रह 'डिवाइन रिलेशंस' का विमोचन महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. अलका मेश्राम द्वारा किया गया । जीवन के विविध रंगों और संवेदनाओं को रूपायित करती कविताएं कभी पाठक के मन को आंदोलित कर हलचल मचाती है और कभी शांत चित्त के लिए प्रेरित करती है । कुछ कविताएं रिश्तों की बुनियाद के इर्द गिर्द रहकर पैनी नजरों से उनके कच्चे पक्के होने का अहसास कराती है । 'यूअर आइज़ विल लिव फॉरएवर' सरीखी रचनाओं में सामाजिक सरोकार का प्रेषण है तो 'कन्ट्री नीड्स अस' में राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता । कहा जाए तो 'डिवाइन रिलेशंस' उन्तीस कविताओं से सुसज्जित  'काव्य गुलदस्ता' है ।


विमोचन के अवसर पर डॉ. रबिन्दर छाबड़ा, प्राध्यापक अंग्रेजी विभाग ने प्रस्तावना रखी । महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. अलका मेश्राम ने रचनाकार डॉ. मेरीली रॉय की अनवरत साहित्य सर्जना के लिए शुभकामनाएं दी । विमोचन समारोह का संचालन करते हुए डॉ. कैलाश शर्मा, प्राध्यापक हिंदी विभाग ने 'डिवाइन रिलेशंस' में संग्रहित कविता 'बरिअल' का हिन्दी अनुवाद का वाचन किया ।

*क़ब्रगाह....*


एक रास्ता है बिल्कुल अलग,

जो मेरे कॉलेज की ओर जाता है,

सँकरा या धूलभरा होना कारण नहीं,

पर ख़ास है, एक कब्रगाह से गुजरना...!


हर रोज जब मैं गुजरती,

अनजाने ही मेरी नजर ठहरती

उस ओर, जिधर है शांत क़ब्रगाह,

ऋतुएँ ग़ुज़र जाती है,

मौसम बदल जाते हैं,

पर वे अब भी वहीं

अनदेखे, अनसुने, अनकहे...!


मैंने देखा उन्हें, जब होती है कँपकपाती ठंड,

मैंने देखा उन्हें, जब होता है झुलसाता ताप,

मैंने देखा उन्हें, जब चुभता बरसता पानी,

पर वे अब भी वहीं, नितांत शांत,

अनदेखे, अनकहे, अनसुने...!


अब उनकी निष्प्राण देह,

जो थे कभी हमारे प्रियवर ! 

क्या हम बदल गए ?

या फिर अब वक्त नहीं !

वे अब भी वहीं, हर बदलाव सहते !

अनदेखे, अनसुने, अनकहे...!


हर शख्स भाग रहा,

एक अंतहीन दौड़ में,

एक दूजे के हक़ को छीनता-झपटता,

वक्त ही नहीं पराई साँसों के लिए,

फिर कौन पूछेगा तुम्हें, प्रिय अजनबी !

पर वे अब भी वहीं, व्यंग्य भरी मुस्कान लिए,

अनदेखे, अनसुने, अनकहे...!!


डॉ. मेरीली रॉय

( मूल आंग्ल रचना burial से हिन्दी में अनूदित )