राज्य में समर्थन मूल्य पर  52 लघु वनोपजों की खरीदी की जा रही है।कोंडागांव जिले की साल गांव के रूप में पहचान है और यहां साल बीच का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। इसके साथ ही यहां इमली भी बड़े पैमाने पर उत्पादित होती है।हर्रा, ईमली बीज हर्रा सहित,महुआ बीज, कुसुमी लाख, रंगीनी लाख, , बहेड़ा जैसे लघु वनोपज का भी यहां संग्रहण किया जा रहा है। 

कोंडागांव के जिला वन परिक्षेत्र अधिकारी उत्तम कुमार गुप्ता ने हमसे बातचीत करते हुए बताया कि-पिछले साल कोरोना संकट शुरू हुआ तो वन क्षेत्रों में और वनवासियों के रोजगार के अवसर छीनने लगे। यूको पाजन का साधन ना के बराबर रह गया था।ऐसे समय में हमारे सामने चुनौती थी कि हम वनवासियों को कैसे रोजगार के अवसर उपलब्ध कराएं।चुनौती बड़ी सी हमले से निपटने के लिए योजना बनाई। हमें मालूम है कि कोंडागांव जिला साल बीच का छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। यहां इमली का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन उत्पादन होता है।केंद्र और राज्य सरकार दोनों के द्वारा   साल बीज तथा इमली का  न्यूनतम संकुल पर अधिक से अधिक खरीदी के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। हमने इसे रोजगार से जोड़ने की योजना बनाई।वासियों को  साल बीज तथा इमली  का अधिक से अधिक संग्रहण करने के लिए प्रेरित किया। हमारा यह प्रयास सफल रहा।वन क्षेत्र के लोग इससे बड़ी संख्या में जुड़ें।इसी का परिणाम रहा है कि पिछले साल के दौरान हमने एक लाख 1260 क्विंटल लघु वन उपज की खरीदी की है। इस वन क्षेत्र में साल बीज तथा इमली की  शायद ही पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर अधिक खरीद की गई। 

वन परिक्षेत्र अधिकारी श्री गुप्ता बताते हैं कि इस काम के लिए हमने सबसे पहले सहकारी समितियों और स्व सहायता समूह के लोगों को तैयार किया। उन्हें इसका लाभ बताएं गया।लोग जागरूक होने लगे तो मैं गांव गांव मैं समूहों का चयन किया गया। लगभग 155 समूह चयनित किए गए। वहीं  जहां साल बीज तथा इमली अधिक मात्रा में बिकने आते हैं उन साप्ताहिक हाट बाजारों में वहां अलग समूह बनाए गए। इसके लिए पूरा सर्वे कर तैयारी की गई। इसमें लघु वनोपज समितियों का पूरा सहयोग मिला।पूरी खरीदी लघु वनोपज समितियों के माध्यम से की गई।

उन्होंने कहा कि वन क्षेत्रों के लोगों के जागरूक होने के फलस्वरूप  हमारा यह प्रयास सफल रहा। लघु वनोपज संघ ग्राहकों की संख्या लगातार बढ़ रही है।गुलशन ग्राहकों की संख्या 61000 तक पहुंच गई है और पिछले सीजन में इन्हें लगभग साढे ₹21 करोड़ रुपए  का भुगतान किया गया। चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक 51 हजार 537 क्विंटल साल बीज की खरीदी की जा चुकी है और यह खरीदी मार्च महीने तक चलेगी। राज्य में साल बीज की खरीदी मई से जुलाई और इमली की खरीदी फरवरी से मार्च महीने तक होती है। उन्होंने बताया कि नक्सल प्रभावित गांव के आसपास के लोग भी लघु वनोपज के क्षरण के काम में जोड़ रहे हैं। कड़ेनार, बेचा जैसे इलाकों में भी इनकी खरीदी की गई।

कोरोना संकट के समय में वन क्षेत्र के लोगों को रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराने के लिए यहां इमली के बीज अलग करने का काम भी दिलाया गया है।पिछले साल से जब सारा काम बंद था तो यह काम शुरू किया गया।इस दौरान एकजुट होकर 30000 क्विंटल इमली बीज निकाले गए।इससे लगभग 1 लाख 33 हजार 59 लोगों को काम मिला और उन्हें 1.66 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। इमली की देश के दक्षिण के राज्यों में भारी मांग है और छत्तीसगढ़ के उच्च गुणवत्ता वाली इमली उन राज्य में अधिक पसंद किया जाता है।